कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्रों – रियल एस्टेट, वाहन और रिटेल को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन क्षेत्रों को पिछले दशकों में पहली बार इस तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। भारत की जीडीपी में इन क्षेत्रों का योगदान करीब एक-चौथाई है। जीडीपी में योगदान के संदर्भ में कृषि के बाद दूसरे नंबर पर शामिल रिटेल व्यवसाय घटकर सामान्य स्तरों के 25 प्रतिशत से कम रह गया है।
रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और एनारॉक द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार जहां तेजी से बढ़ रहे इस आधुनिक व्यापार में व्यवसाय 20 प्रतिशत से नीचे बना हुआ है, वहीं प्रमुख आउटलेटों को लगातार 61 प्रतिशत नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय तौर पर लॉकडाउन से रिटेलर प्रभावित हुए, वहीं अपैरल, रेस्टोरेंट और पर्सनल केयर पर ज्यादा प्रभाव पड़ा और इनकी बिक्री 65 प्रतिशत से ज्यादा घट गई। स्थानीय ग्रोसरी, ज्यादातर किराना दुकानों पर यह प्रभाव कम देखा गया। इनके व्यवसायों में सिर्फ 25 प्रतिशत की कमजोरी दर्ज की गई है।
महामारी से पहले भी, भारत के सबसे बड़े निर्माण क्षेत्रों में से एक वाहन उद्योग (जीडीपी का 7.5 प्रतिशत) ने 2019 के मध्य से लगभग हर महीने सालाना आधार पर बिक्री में दो अंक की गिरावट दर्ज की।
अप्रैल में यह बिक्री घटकर शून्य रह गई। यात्री वाहनों का उठाव घटकर आधा रह गया और दोपहिया बिक्री अप्रैल और अगस्त के बीच सालाना आधार पर 49 प्रतिशत घटकर 552,429 और 4,134,132 वाहन रह गई। मारुति सुजूकी इंडिया में बिक्री एवं विपणन के कार्यकारी निदेशक शशांक श्रीवास्तव जैसे उद्योग दिग्गजों का कहना है कि हालांकि अगस्त के लिए आंकड़े उत्साहजनक थे, लेकिन इनसे संपूर्ण रिकवरी का संकेत नहीं हो सकते। यात्री वाहन बाजार में 50 प्रतिशत की भागीदारी वाली मारुति सुजूकी ने अगस्त में 20 प्रतिशत की वृद्घि दर्ज की। श्रीवास्तव कहते हैं, ‘लेकिन यह वृद्घि बेहद न्यून आधार से जुड़ी हुई थी।’
मैक्वेरी रिसर्च के विश्लेषकों का कहना है कि मौजूदा संकट सभी वाहन खंडों में सबसे ज्यादा गंभीर है। वाहन उद्योग को कोविड से पहले जैसी स्थिति में आने में लंबा समय लग सकता है।
लंबे समय से प्रभावित रियल एस्टेट क्षेत्र (जीडीपी में 6 प्रतिशत योगदान) भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। जून में आवासीय इकाइयों की बिक्री 49 प्रतिशत तक घटकर 58,000 से नीचे रह गई। यह न सिर्फ 2016 की दूसरी छमाही (जब नोटबंदी का प्रभाव महसूस किया गया था) के मुकाबले 37 प्रतिशत कम थी बल्कि एक दशक में सबसे कम थी।