नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में अपना पहला बजट पेश करने की तैयारी कर रही है। सभी लोगों की निगाहें ग्रामीण और कृषि क्षेत्र पर हैं, जिसे इस बार लोक सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कम हुई सीटों का जिम्मेदार माना जा रहा है। जाने-माने कृषि अर्थशास्त्री और भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (आईसीआरआईईआर) में इन्फोसिस चेयर प्रोफेसर अशोक गुलाटी ने संजीव मुखर्जी से बातचीत में कहा कि इस बार चुनावी झटके के कारण भाजपा केंद्रीय बजट को लोकलुभावन बना सकती है। मुख्य अंशः
ग्रामीण और कृषि क्षेत्र के लिए इस बार के बजट से मेरी काफी उम्मीदे हैं। खासकर, साल 2024 के चुनावों में सरकार के प्रदर्शन को देखते हुए। सरकार को ग्रामीण इलाकों में आने वाली चुनौतियों को स्वीकारने की जरूरत है। वित्त वर्ष 2024 में कृषि वृद्धि दर गिरकर 1.4 फीसदी तक पहुंच जाने के कारण ही ग्रामीण इलाकों में सीटें कम हुई हैं।
सरकार को दो प्रमुख क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी चाहिए। सबसे पहले जलवायु उपायों के लिए और स्मार्ट कृषि के लिए पर्याप्त आवंटन होना चाहिए। इसमें कृषि अनुसंधान और विकास के लिए बजट को कृषि सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 1 फीसदी तक बढ़ाना शामिल है, जो फिलहाल 0.5 फीसदी है। इसके लिए कृषि अनुसंधान और विकास के लिए बजट में भारी वृद्धि की जरूरत होगी, जो संभावित रूप से दो से तीन वर्षों के भीतर दोगुना हो जाएगी।
इसके अलावा सरकार को खाद्य मुद्रास्फीति खासकर सब्जियों और दलहन की महंगाई पर ध्यान देने की जरूरत है। टमाटर, प्याज और आलू जैसी जरूरी सब्जियों की महंगाई दरें अभी चिंता बढ़ाती हैं।
चुनावी झटके के कारण यह लोकलुभावन बजट हो सकता है। झटके का एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है, जिससे अल नीनो के कारण वृद्धि दर में कमी आई है। जलवायु कृषि अनुसंधान में निवेश बढ़ाकर इसका हल निकाला जा सकता है। चुनावी झटके से निपटने का दूसरा तरीका मुफ्त चीजें बांटना है। इसे पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री किसान योजना को 8,000 रुपये सालाना तक बढ़ाया जा सकता है।
अगर हम कीमतों को नियंत्रित करने के लिए गेहूं और चावल की डंपिंग जैसी प्रतिबंधात्मक प्रथाओं की भरपाई करना चाहते हैं तो हमें और ज्यादा कुछ करने की जरूरत है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने गेहूं की आर्थिक लागत से काफी कम कीमत पर 1 करोड़ टन गेहूं उतारा, जिससे किसानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
हमारी गणना से पता चलता है कि इस डंपिंग की वजह से किसानों को केवल गेहूं के कारण करीब 40,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए पीएम किसान योजना को बढ़ाकर 10 हजार रुपये प्रति परिवार किया जाना चाहिए।
बजट मुख्य तौर पर संसाधनों खासकर वित्तीय संसाधनों के आवंटन के लिए होता है। आपने जिस चीज के बारे में बातें की हैं वह बहुत महत्त्वपूर्ण है और इसे देश की कृषि नीति को एकीकृत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे किसानों को नुकसान पहुंच रहा है और यह किसानों की कीमत पर उपभोक्ताओं का पक्ष में जा रहा है।
उदाहरण के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत 50 और 60 के दशक के नियम हैं, जो समस्याएं पैदा कर रहे हैं। भंडारण सीमा की शुरुआत और आयात शुल्क में कमी के कारण बाजार की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे आ रही हैं। हमें अपनी व्यापार नीति को घरेलू मूल्य नीति के अनुरूप बनाते हुए किसानों और उपभोक्ताओं के हितों के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है।
मौजूदा मसला एक सरकारी संरचना दिखाता है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को उन उपभोक्ताओं के लिए कीमतें कम करने का काम सौंपा गया है, जो चाहते हैं कि सब कुछ मुफ्त मिले या काफी कम कीमतें पर मिले। दूसरी ओर, कृषि मंत्रालय किसानों के लिए उच्च कीमतें सुनिश्चित करने पर ध्यान दे रहा है। ये दोनों लक्ष्य विरोधाभासी हैं। इसके अच्छे परिणाम तभी सामने आएंगे जब दोनों मंत्रालय के एक ही मंत्री रहें।