परिवार द्वारा संचालित उद्यमों में मदद करने या खुद अपना कारोबार चलाने से देश की महिला श्रमबल को सबसे ज्यादा काम मिल रहा है। आवधिक श्रम बल सर्वे (पीएलएफएस) के जुलाई 2023 से जून 2024 के ताजा आंकड़ों में हर 3 में से 2 से ज्यादा महिलाओं ने अपने को ‘स्वरोजगार’ की श्रेणी में रखा है।
हाल में पीएलएफएस द्वारा जारी आंकड़ों के बिज़नेस स्डैंडर्ड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि रोजगार में शामिल कुल कामकाजी महिलाओं में स्वरोजगार वाली महिलाओं की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है। 2023-24 में स्वरोजगार करने वाली महिलाओं का हिस्सा बढ़कर 67.4 फीसदी हो गया है, जो 2017-18 के दौरान 51.9 फीसदी था। साल 2017-18 से राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने सालाना पीएलएफएस जारी करना शुरू किया है।
ग्रामीण इलाकों में स्वरोजगार करने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी इस अवधि के दौरान 57.7 फीसदी से बढ़कर 73.5 फीसदी हो गई है, जबकि शहरी इलाकों में 34.7 फीसदी से बढ़कर 42.3 फीसदी हो गई है।
वहीं इस दौरान महिलाओं की श्रम बल हिस्सेदारी दर (एलएफपीआर) तेजी से बढ़कर 2023-24 में 41.7 फीसदी हो गई है, जो 2017-18 के दौरान 23.3 फीसदी थी। इससे ऐसी महिलाओं की हिस्सेदारी का पता चलता है, जो या तो काम कर रही हैं, या काम की तलाश में हैं।
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) के पूर्व कार्यवाहक चेयरमैन पीसी मोहनन ने कहा कि हाल के वर्षों में महिला एलएफपीआर में लगातार वृद्धि देखी जा रही है, खासकर ग्रामीण इलाकों में यह 2017-18 के 24.6 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 47.6 फीसदी हो गई है। शायद इसका कारण यह है कि पाइप से पेयजल और स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच में पर्याप्त विस्तार के कारण महिलाओं का समय बच रहा है।
उन्होंने कहा, ‘इन गतिविधियों को सर्वे में रोजगार के रूप में नहीं गिना जाता है। अब महिलाएं इन दायित्वों से मुक्त हैं, ऐसे में वे परिवार के किसी कामकाज या कृषि में हाथ बटा सकती हैं, जिसे सर्वे में शामिल किया जाता है। यह अतिरिक्त रोजगार के सृजन में नहीं आता है और यह सिर्फ अतिरिक्त श्रमबल के रूप में नजर आता है, जिससे पहले ही कृषि क्षेत्र दबा हुआ है।’
इस साल की शुरुआत में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन की अध्यक्षता में वित्त मंत्रालय के अर्थशास्त्रियों के समूह ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए थे। इसमें कहा गया था कि महिला एलएफपीआर में वृद्धि की कई वजहें हैं, जिसमें कृषि क्षेत्र के उत्पादन में तेज वृद्धि और बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के कारण महिलाओं के समय की बचत है।
हालांकि बाथ यूनिवर्सिटी के विजिटिंग प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि कृषि श्रमिकों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ने या परिवार के कामकाज में महिलाओं द्वारा बगैर भुगतान वाले काम करने से दबाव का पता चलता है, जो महामारी और आर्थिक सुस्ती की वजह से आई है। इसकी वजह से महिलाओं को परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए काम करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है, न कि उन्हें उनके कौशल के आधार पर काम मिल रहा है।