बढती कीमतों ने किस कदर प्रभाव डाला है कि इस बार क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा की रेटिंग में ज्यादातर कंपनियों की अपग्रेडिंग की जगह डाउनग्रेडिंग हुई है।
ऐसा क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के इतिहास में पहली बार हुआ है। इससे यह साफ हो जाता है कि बढ़ती कीमतों का असर कंपनी के कैस फ्लो पर पड़ रहा है और कारपोरेट द्वारा जारी किए गये वित्तीय इंस्ट्रूमेंट में भी इस महंगाई का असर साफ दिख रहा है और रेटिंग में मंदी साफ झलकती है।
इक्रा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और वाइस चेयरमैन पी के चौधरी का कहना है कि काफी कुछ चक्रीय कीमतों की बढ़ोत्तरी पर निर्भर करता है और यह कि कंपनी इन बढ़ी कीमतों को असर को कितना कम कर पाती हैं।
बिजनैस स्टैंडर्ड से बात करते हुए इक्रा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने कहा कि बढ़ती कीमतों के कारण सभी क्षेत्रों पर दबाव का असर दिख रहा है। जैसे जैसे उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता बढ़ती है वैसे वैसे मांग में भी इजाफा होता है। रोचक बात तो यह है कि कीमतों के बढ़ने के बावजूद ब्रिकी बढ़ रही है। लेकिन इससे कंपनियों के लाभ पर अवश्य असर पड़ेगा।
ऊंची महंगाई दर के दबाव की वजह से औद्योगिक इकाइयों और उनके वित्तीय अधिसंरचना की रेटिंग उनकी इंक्रीमेंटल कॉस्ट को खपाने की क्षमता पर निर्भर करेगी। औद्योगिक ईकाईयों की कुशलता सांख्यिकीय आकड़ों से नहीं जांची जानी चाहिए। राजस्व में बढ़त और कुल बिक्री को सांख्यिकीय आकड़ों से बिल्कुल नहीं मापना चाहिए। दूसरे अन्य मानकों को अन्य महत्व देना चाहिए जैसे प्रबंधन की क्वालिटी और सिस्टम की कुशलता।
क्रेडिट रेटिंग सेक्टर के सूत्रों का कहना है कि सांख्यिकीय आंकड़ों को 30 फीसदी महत्व दिया जा रहा है जबकि दूसरे अन्य क्वालिटी मानकों को ज्यादा महत्व दिया जाए। खुले बाजार की नीति की वजह से घरेलू इकाइयों विदेशी प्रतियोगियों का दबाव पड़ रहा है जो अभी तक कुशलता, कीमत और सभी दूसरे क्षेत्रों में लाभ की स्थिति में थे।
हालिया रेटिंग ट्रांजीशन दिखाती है कि इस बार कंपनियों की डाउनग्रेडिंग 2007 में कंपनियों की अपग्रेडिंग से अधिक है।
कीमतें बढ़ने का असर सभी सेक्टर पर दबाव दिखाई दे रहा है।
ऊंची महंगाई दर के दबाव की वजह से औद्योगिक ईकाईओं और उनकी रेटिंग उनके इंक्रीमेंटल लागत को खपाने की क्षमता पर निर्भर करेगा।