राज्यों की माली हालत और उनके खजानों पर कोविड-19 महामारी का गहरा असर होता दिख रहा है और उसके कारण पनपी दिक्कतों को देखते हुए अगले कुछ साल ज्यादातर राज्यों के लिए चुनौती भरे साबित हो सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने राज्यों की वित्तीय स्थिति पर आज जारी रिपोर्ट में यह बताते हुए आगाह किया है कि मांग लुढ़कने से राजस्व में कमी आई है और महामारी के कारण विभिन्न स्तरों पर सरकारी खर्च बढ़ा है। इसके कारण राज्य गहरे संकट में फंस सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कर राजस्व में आई कमी और व्यय में अचानक बेतहाशा वृद्धि होने से राज्यों की माली हालत पूरी तरह चरमरा गई है।’ रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अब अहम बात यह हो गई है कि खर्च किस तरह का किया जा रहा है और राज्यों के बजट कितने भरोसेमंद हैं।
आरबीआई की रिपोर्ट में राज्यों के बजट का अध्ययन किया गया है। ज्यादातर राज्यों ने महामारी फैलने से पहले ही बजट पेश कर दिए थे। आरबीआई ने अपने विश्लेषण में यह बताने की कोशिश की है कि महामारी से निपटने के बाद राज्यों के लिए हालात कैसे रह सकते हैं। उदाहरण के लिए जिन राज्यों ने महामारी से पहले अपने बजट पेश किए थे, उनमें औसत सकल राजकोषीय घाटा (जीएफडी) सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 2.4 प्रतिशत था। लेकिन रिपोर्ट के अनुसार जिन राज्यों ने महामारी के बाद अपने बजट पेश किए हैं उनका औसत राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 4.6 प्रतिशत हो गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस तरह वित्तीय लिहाज से राज्यों के संयुक्त सकल राजकोषीय घाटे एवं सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात करीब 4 प्रतिशत रह सकता है और आंकड़ा इससे ऊपर भी जा सकता है। यह 2.8 प्रतिशत के अनुमान से कहीं अधिक होगा। वैसे सभी राज्यों के आंकड़े थोड़े अलग रह सकते हैं।’
वित्त वर्ष 2020-21 के लिए देश के आधे से अधिक राज्यों ने राजस्व अधिशेष का अनुमान जताया था, लेकिन कोविड-19 संकट इस पर पानी फेर सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘राज्यों की वित्तीय स्थिति पर कोविड संकट का प्रभाव कितने समय तक दिखेगा, यह लॉकडाउन की अवधि और संक्रमण में नए सिरे से इजाफे (अगर ऐसा हुआ तो) पर निर्भर करेगा। यह सब देखते हुए कर प्राप्ति में आनुपातिक वृद्धि की गणना करने का मानदंड बेजा साबित हो सकता है।’
मौजूदा वित्तीय तंगी से निपटने के लिए राज्य जलापूर्ति एवं स्वच्छता, ग्रामीण एवं शहरी विकास, ऊर्जा एवं परिवहन आदि के मद में व्यय घटा सकते हैं। अमूमन राज्य हरेक वर्ष पहली तिमाही में बजट आवंटन का 20 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त एवं खर्च करते हैं। वर्ष 2020-21 में भी उन्होंने खर्च पिछले वर्ष के स्तरों पर ही रखा है जबकि उन्हें बजट आवंटन का 12-13 प्रतिशत ही प्राप्त हुआ है। ऐसे में अतिरिक्त राजस्व का इंतजाम करने के लिए 22 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने पेट्रोल और डीजल पर शुल्क बढ़ा दिए हैं।
