भारत के राज्य पैसे की भारी कमी का सामना कर रहे हैं और महत्त्वपूर्ण विकास कार्यक्रमों के लिए धन मुहैया कराने की उनकी क्षमता प्रभावित हो रही है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट ‘राज्यों के वित्त की स्थिति 2025’ में कहा गया है कि ऐसी स्थिति इसलिए बनी, क्योंकि वित्त वर्ष 2024 में उनकी राजस्व प्राप्तियों का 62 प्रतिशत वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी जैसी पहले से तय प्रतिबद्धताओं पर खर्च किया गया था।
सभी राज्यों और चुनिंदा केंद्रशासित प्रदेशों के बजट दस्तावेजों और ऑडिट खातों के आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2024 में 53 प्रतिशत राजस्व प्राप्तियां वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान से खर्च हो गईं, जबकि सब्सिडी का हिस्सा 9 प्रतिशत था। पंजाब कुल राजस्व प्राप्तियों से अधिक 107 प्रतिशत प्रतिबद्ध व्यय कर रहा है, जो इस मामले में पहले स्थान पर है। इसके बाद हिमाचल प्रदेश (85 प्रतिशत), तमिलनाडु (77 प्रतिशत), केरल (75 प्रतिशत) और हरियाणा (71 प्रतिशत) हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2025-26 में राज्यों ने अपने राजस्व प्राप्तियों का 50 प्रतिशत वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर खर्च करने का अनुमान लगाया है। असम, हिमाचल प्रदेश, केरल, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने प्रतिबद्ध मदों पर 60 प्रतिशत से अधिक खर्च करने का अनुमान लगाया है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिबद्ध व्यय अधिक होने की वजह से कई राज्यों को तात्कालिक खर्चों के लिए भी उधार लेने को मजबूर होना पड़ा है। इससे कुल ऋण जीडीपी के 27.5 प्रतिशत तक पहुंच है, जो 20 प्रतिशत की अनुशंसित सीमा से काफी ऊपर है। बढ़ते ऋण ने ब्याज देनदारी बढ़ा दी है, जो वित्त वर्ष 2024 में राजस्व प्राप्तियों का 13 प्रतिशत था। वहीं 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के कारण बिना शर्त हस्तांतरण में आई गिरावट की वजह से राज्यों की खर्च स्वायत्तता और कम हो गई है।
इसी तरह की चिंता व्यक्त करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में कहा कि कई राज्य अपनी आय का लगभग 70 प्रतिशत वेतन और पेंशन पर खर्च कर रहे हैं, जिससे विकास संबंधी जरूरतों के लिए केवल 30 प्रतिशत रकम ही बच पाती है। उन्होंने कहा कि यह संरचनात्मक कठोरता विकास को बाधित करती है और राज्यों को उधार लेना पड़ता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक और उभरती चुनौती महिलाओं के लिए बिना शर्त नकद हस्तांतरण (यूसीटी) योजनाओं का प्रसार है। अब 12 राज्य ऐसे कार्यक्रम चला रहे हैं, जबकि वित्त वर्ष 2023 ऐसे राज्यों की संख्या 2 थी। इन 12 राज्यों का इस मद में लगभग 1.68 लाख करोड़ रुपये खर्च है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन योजनाओं को लागू करने वाले आधे राज्यों का राजस्व घाटा इस वजह से बढ़ा है।
पीआरएस रिपोर्ट में राज्यों के बीच बढ़ती राजकोषीय असमानता का भी उल्लेख किया गया है। ज्यादा आय वाले राज्यों में प्रति व्यक्ति राजस्व सृजन गरीब राज्यों की तुलना में बहुत अधिक हो गई है।