केंद्र सरकार द्वारा लघु बचत से जुटाई जाने वाली राशि जुलाई के बजट अनुमान 4.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने की संभावना नहीं है। इस अनुमान को सरकार ने अंतरिम बजट के बाद पहले ही घटा दिया था। वित्त मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी।
सूत्र ने कहा, ‘हमने पहले ही भांप लिया है कि यह (लघु बचत जमा) अंतरिम बजट के स्तर से नीचे रह सकता है। नवीनतम संग्रह जुलाई बजट के निचले अनुमान से ऊपर नहीं जाएगा।’ सूत्रों ने कहा कि बचत का बड़ा हिस्सा मार्च में आएगा। वित्त वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में 4.7 लाख करोड़ रुपये के शुद्ध संग्रह का अनुमान लगाया गया था, जिसे जुलाई 2024 में घटाकर 4.2 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया।
क्वांटइको रिसर्च में अर्थशास्त्री विवेक कुमार ने कहा, ‘सरकार की उधारी घटने की कुछ गुंजाइश है। अगर लघु बचत कम पड़ जाती है तो वे इसकी भरपाई जी-सेक उधारी से करने में सक्षम होंगे।’ नई व्यक्तिगत आयकर व्यवस्था की तरफ करदाताओं की संख्या बढ़ रही है, जिससे कुछ निवेशों से जुड़े कर लाभ खत्म हो जाएंगे। यह भी एक वजह है कि सरकार लघु बचत योजनाओं से कम प्राप्तियों के अनुमान लगा रही है।
सरकार अपने राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के लिए नकदी अधिशेष निकासी, लघु बचत संग्रह और बॉन्ड बाजार से उधारी की मिश्रित व्यवस्था अपनाती है। लघु बचत योजनाओं के सबस्क्राइबरों की संख्या 40 करोड़ से ज्यादा है। इसके एनएसई, पीपीएफ, एसएसए और किसान विकास पत्र सहित 12 साधन हैं। एनएससी, एसएसए और पीपीएफ उन योजनाओं में हैं, जिन पर कर छूट का लाभ मिलता है।
सरकार ने 1 अक्टूबर 2024 से शुरू हुई तिमाही में पीपीएफ और एनससी सहित विभिन्न लघु योजनाओं की ब्याज दर में लगातार तीसरी तिमाही कोई बदलाव नहीं किया है। महिला सम्मान बचत पत्र योजना मार्च 2025 में समाप्त हो रही है, जिससे अब तक 30,000 करोड़ रुपये आए हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2024 के बजट में योजना की घोषणा की थी, जिसका मकसद भारत की महिलाओं में बचत की आदत को प्रोत्साहित करना है। इस लघु बचत योजना में 7.5 फीसदी की निश्चित ब्याज दर मिलती है और इसमें आंशिक रूप से निकासी का विकल्प होता है।
वित्त वर्ष 2023-24 की आर्थिक समीक्षा में भारत की अर्थव्यवस्था के अतिशय वित्तीयकरण को लेकर चिंता जताई गई है। इसमें कहा गया है, ‘डेरिवेटिव उत्पादों, सिंगल स्टॉक फ्यूचर्स की शुरुआत ऐसी चीजें हैं जो इस तरह के प्रति व्यक्ति आय वाले देश के लिए साफतौर पर अच्छा वित्तीय नवोन्मेष है, लेकिन बचत की आदतों और उन बचतों को पूंजी निर्माण में लगाने के हिसाब से यह शायद थोड़ी जल्दबाजी है।’