वैश्विक अनिश्चितताओं के दौर में वित्त वर्ष 2023-24 में विदेशी मुद्रा की आवक से रुपया और बॉन्ड स्थिर रहे। वित्त वर्ष 24 में घरेलू बाजार को शुद्ध रूप से 3.23 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई जबकि वित्त वर्ष 23 में 45,365 करोड़ रुपये विदेश भेजे गए थे।
घरेलू आर्थिक स्थितियां अनुकूल रहीं। मुख्य महंगाई आमतौर पर RBI के सुविधाजनक दायरे 2 से 6 फीसदी (अप्रैल 2023 से फरवरी 2024 के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक दो अवसरों पर 6 फीसदी से अधिक रहा था) में थी। इसके कारण मौद्रिक नीति समिति ने रीपो दर को आगे नहीं बढ़ाया था और यह वित्त वर्ष 24 में 6.50 फीसदी पर ही टिकी रही।
वित्त वर्ष 2023-24 में अमेरिकी डॉलर की तुलना में हॉन्गकॉन्ग डॉलर और सिंगापुर डॉलर के बाद एशिया की तीसरी सबसे स्थिर मुद्रा रुपया रहा। इसका प्रमुख कारण आरबीआई का समय पर हस्तक्षेप करना था।
जून, 2024 में जेपी मॉर्गन सूचकांक में भारत के बॉन्ड को शामिल किए जाने की शुरुआत की वजह से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने ऋण खंडों में पूंजी का निवेश बढ़ाया। इससे सरकारी बॉन्ड के यील्ड में 26 आधार अंक की गिरावट आई। एक साल में रुपये में 1.5 फीसदी की गिरावट आई, जबकि बीते वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 23) में 7.8 फीसदी की गिरावट आई थी।
वित्त वर्ष के प्रमुख हिस्से में स्थानीय मुद्रा ने मजबूती प्रदर्शित की और इसमें गिरावट कुछ अंतिम कारोबारी सत्रों में ही हुई। एशिया की समकक्ष मुद्राओं के कमजोर होने और स्थानीय आयातकों की डॉलर की नियमित मांग के कारण 22 मार्च को डॉलर के मुकाबले रुपया 83.43 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया था।
करुर वैश्य बैंक के ट्रेजरी प्रमुख वीआरसी रेड्डी के अनुसार, ‘यदि हम आकलन करते हैं तो अन्य उभरती मार्केट की मुद्राओं की तुलना में रुपया करीब पूरे वर्ष स्थिर रहा था। हमने केवल वित्त वर्ष के अंत में रुपये में उतार- चढ़ाव देखा।’ उन्होंने कहा, ‘येन के टूटने और डॉलर के मजबूत होने के कारण अंतिम कारोबारों में उतार-चढ़ाव रहा था।’
वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही ने रुपये और बॉन्ड मार्केट के लिए महत्त्वपूर्ण चुनौती पेश की थी। अगस्त में रुपये के कमजोर होने का प्रमुख कारण चीनी मुद्रा युआन का टूटना था। पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने के कारण कच्चे तेल के दाम बढ़ने से विदेश को धन भेजा जाने लगा था। इससे अक्टूबर की शुरुआत में मुद्रा पर दबाव बढ़ गया था।