भारतीय रुपया उभरते बाजार की मुद्राओं की तुलना में तो सबसे स्थिर मुद्रा बन रहा है। इसमें उतार चढ़ाव का स्तर 2008 से सबसे कम स्तर पर है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अर्थव्यवस्था की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट में यह कहा है।
मुद्रा में निहित अस्थिरता वह पैमाना है, जिससे उसके बाजार मूल्य में उतार-च़ढ़ाव का पता चलता है। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल देवव्रत पात्र की अगुवाई वाली टीम के लिखे इस लेख में कहा गया है, ‘प्रमुख मुद्राओं में भारतीय रुपया कम अस्थिरता वाली मुद्रा बनकर उभरा है, जिसमें 2023 के सिर्फ 1 महीने के दौरान उतार-चढ़ाव रहा है।’ हालांकि यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस लेख में व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं और यह रिजर्व बैंक के विचारों को नहीं दर्शाता है।
वित्त वर्ष 23 में डॉलर के मुकाबले 7.8 प्रतिशत लुढ़कने के बाद भारतीय रुपया इस वित्त वर्ष में स्थिर हो गया और उसके बाद मुद्रा उतार चढ़ाव मामूली हुआ व 0.2 प्रतिशत की मजबूती आई। गिरावट की प्रमुख वजह यूरोप में युद्ध और वैश्विक केंद्रीय बैंकों की सख्ती रही है। 2023 में डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा 0.95 प्रतिशत मजबूत हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मई 2023 में पिछले माह की तुलना में 40 मुद्रा के रियल प्रभावी विनिमय दर (REER) के हिसाब से रुपया 1.2 प्रतिशत मजबूत हुआ है। मई 2023 में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 0.4 प्रतिशत कमजोर हुआ है, जो ज्यादातर ईएमई मुद्राओं की तर्ज पर है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कैलेंडर वर्ष 2023 (9 जून तक) के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 31 अरब डॉलर बढ़ा है, जो विदेशी मुद्रा रखने वाले प्रमुख देशों में दूसरा सबसे बड़ा भंडार है।’
जून में मौद्रिक नीति को विराम देने को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि नीतिगत दर में बदलाव न होने से मौद्रिक नीति से प्रभावी तरीके से कम अवधि के हिसाब से रियल नीतिगत दर में सख्ती आई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगाई दर अधिक रहने से निजी खपत पर होने वाले खर्च में कमी आ रही है जिसका नतीजा कंपनियों की बिक्री में सुस्ती और क्षमता निर्माण में निजी निवेश में गिरावट के रूप में सामने आ रहा है। बुलेटिन में कहा गया है कि महंगाई दर कम करने की जरूरत है, जिससे उपभोक्ता व्यय में वृद्धि करने के साथ कंपनियों के राजस्व एवं लाभप्रदता को बढ़ाया जा सके।
इस लेख के मुताबिक, ‘हाल में आए आर्थिक आंकड़ों और कंपनियों के नतीजों को एक साथ जोड़कर देखें तो यह साफ दिखता है कि महंगाई दर निजी उपभोग पर होने वाले व्यय को कम कर रही है। इसकी वजह से कंपनियों की बिक्री घट रही है और क्षमता निर्माण में निजी निवेश भी कम हो रहा है।’
लेख में कहा गया है कि महंगाई दर नीचे लाने और इससे जुड़ी उम्मीदों को स्थिर करने से उपभोग व्यय बहाल होगा और कंपनियों की बिक्री एवं लाभप्रदता भी बढ़ेगी। ऋण बाजार पर प्रतिक्रिया देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि वृद्धि दर और बैंक ऋण व जमा के बीच अंतर अब कम होने लगा है। इससे पता चलता है कि ऋण में वृद्धि अब स्थिर होकर धन जुटाने के अन्य आधारों को जगह दे
रही है।