भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) तेजी से फैलती जा रही मुद्रास्फीति पर फिलहाल कोई कदम नहीं उठा सकता है।
केंद्रीय बैंक की 29 अप्रैल को अपनी वार्षिक नीति की समीक्षा आने तक मौद्रिक दृष्टिकोण में किसी तरह का बदलाव आने की संभावना नहीं है।मुद्रास्फीति की दर तीन साल के उच्चतम स्तर 7 प्रतिशत पर पहुंच गई है जो आरबीआई द्वारा लक्षित मुद्रास्फीति की सालाना दर (5 फीसदी) से काफी अधिक है। हालांकि केंद्रीय बैंक का मानना है कि मुद्रास्फीति की सालाना औसत दर 5 फीसदी के आसपास ही मंडराएगी।
गौरतलब है कि शुरुआत में मुद्रास्फीति में तेजी आने के बावजूद देश की आर्थिक विकास दर 8.5 फीसदी की मजबूत स्तर पर थी। अगर मौजूद परिस्थिति का आकलन किया जाए तो मुद्रास्फीति की दर पहले की तरह ही उच्चतम स्तर पर बनी हुई है, लेकिन इस वक्त विकास की गति पर ब्रेक लगा हुआ है और इसका मुख्य कारण वैश्विक बाजार में आई आर्थिक मंदी है।
आरबीआई का मानना है कि इस साल विकास दर (8.5 फीसदी) की तुलना में वित्तीय वर्ष 2008-09 में विकास दर करीब 8.1 से 8.2 फीसदी के आसपास रहेगी।विकास की दर को संतुलित करने और बढ़ते मुद्रास्फीति पर काबू पाने की दुविधा को लेकर बैंकिंग नियामक फिलहाल दरों में कोई तब्दीली नहीं करना चाहता है बल्कि इसके इतर वह विदेशी मुद्रा प्रवाह के सही-सही आकलन तक इंतजार करना चाहते हैं।
बहरहाल, बाजार के विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दरों में बढ़ोतरी कर आगे दिए जाने वाले ऋण दरों में इजाफा कर सकता है। इसके अलावा विश्लेषक यह भी मानते हैं कि आरबीआई रिवर्स रेपो दर को बढ़ा कर प्रत्यक्ष ब्याज दर का संकेत दे सकता है।
उल्लेखनीय है कि रेपो और रिवर्स रेपो एक तरह का लिक्विडिटी मैनेजमेंट टूल्स है। आरबीआई रेपो के तहत सिस्टम में फंड को पहुंचाएगा और रिवर्स रेपो के जरिए फंड को निकाल लेगा।
इंतजार की घड़ी
आरबीआई का मानना है कि इस साल की विकास दर (8.5 फीसदी) की तुलना में वित्तीय वर्ष 2008-09 में विकास दर करीब 8.1 से 8.2 फीसदी के आसपास रहेगी।मुद्रास्फीति की दर 3 साल के उच्चतम स्तर 7 फीसदी पर पहुंच गई थी जो आरबीआई द्वारा लक्षित मुद्रास्फीति की सालाना दर (5 फीसदी) से काफी अधिक है।
गौरतलब है कि शुरुआत में मुद्रास्फीति में आई तेजी के बावजूद देश की आर्थिक विकास दर 8.5 फीसदी की मजबूत स्तर पर थी।बाजार के विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दरों को बढ़ा कर आगे दिए जाने वाले ऋण दरों में इजाफा कर सकता है या फिर रिवर्स रेपो दरों में बढ़ोतरी कर प्रत्यक्ष ब्याज दर का संकेत दे सकता है।