भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के बाहरी सदस्य जयंत वर्मा का कहना है कि मौद्रिक नीति 3 से 5 तिमाही बाद असर दिखाती है, ऐसे में दर संबंधी कार्रवाई महंगाई के अनुमान के आधार पर की जानी चाहिए, न कि महंगाई दर बढ़ने के बाद। मनोजित साहा के साथ बातचीत के अंश…
मौद्रिक सख्ती के चक्र में पहली बार आपने तटस्थ रुख का समर्थन किया है, इसकी क्या वजह है?
जैसा कि मैंने अपने बयान में कहा है, मुझे लगता है कि हम हम उस बिंदु के करीब हैं, जब अतिरिक्त रियल ब्याज दर को रोकने के लिए ब्याज दरों में कटौती होनी चाहिए। मैं केवल इस बात के पुख्ता सबूत का इंतजार कर रहा हूं कि अनुमानित महंगाई दर स्थाई आधार पर कम हो रही है। अगर दर में कटौती की संभावना है तो मौद्रिक रुख उसके अनुरूप होना चाहिए। इसीलिए मैंने तटस्थ रुख की सिफारिश की है।
रीपो रेट में अब पहली कटौती कब होगी?
मैं कोई खास समय सीमा नहीं बांधना चाहता, लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा है कि इसके लिए पुख्ता साक्ष्य की जरूरत है कि महंगाई दर में गिरावट के मौजूदा अनुमान बने रहेंगे।
क्या आपको लगता है कि अगर मुख्य महंगाई 4 प्रतिशत तक गिरकर नहीं आती, तब भी रीपो रेट कम किया जा सकता है?
मौद्रिक नीति का असर दिखने में 3 से 5 तिमाही लग जाती है। ऐसे में दरों संबंधी कार्रवाई महंगाई के अनुमान के आधार पर होनी चाहिए, न कि बढ़ी हुई महंगाई के आंकड़े आने के बाद। दर में कटौती के लिए आंकड़े आने का इंतजार करने पर कटौती लागू होने में 3 से 5 महीने देरी हो जाती है।
वृद्धि मजबूत है, लेकिन चिंता है कि ज्यादा रियल दरों के कारण आगे वृद्धि प्रभावित हो सकती है?
यही मेरी चिंता का विषय है। रियल दरें ऐसी होनी चाहिए कि महंगाई दर 4 प्रतिशत के दायरे में रहे लेकिन रियल दरों को वृद्धि में व्यवधान नहीं बनने देना चाहिए।
क्या आपको लगता है कि खाद्य महंगाई में वृद्धि अस्थाई प्रकृति की है और इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए? या इस तरह के झटकों से महंगाई बढ़ने के खतरे को लेकर चिंता है?
खाद्य कीमतों के झटके अब तक क्षणिक रहे हैं, जिन्हें तुरंत ठीक कर लिया गया। जब तक मौद्रिक नीति महंगाई की उम्मीदों को नियंत्रित रखने के अनुरूप है, मुझे नहीं लगता कि दूसरे दौर में इसका असर होगा और खाद्य महंगाई में तेजी आएगी।