Representative Image
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) 3 से 5 दिसंबर 2025 तक बैठक करेगी। यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब देश की आर्थिक वृद्धि छह तिमाहियों के उच्च स्तर पर है और महंगाई मासिक आधार पर रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है।
आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय समिति इस बैठक में रीपो रेट, तरलता की स्थिति, मुद्रास्फीति के रुझान और आर्थिक विकास के अनुमान पर विचार करेगी। पिछली बैठक में समिति ने रीपो रेट को 5.50% पर स्थिर रखा था। गवर्नर ने बताया कि मुख्य मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जिससे MPC को मौजूदा दर बनाए रखने का आत्मविश्वास मिला।
अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों का मानना है कि दिसंबर 2025 की मौद्रिक नीति बैठक में RBI के सामने दरें घटाने या यथास्थिति बनाए रखने का सवाल है। ICICI बैंक के अनुसार, इस साल खुदरा मुद्रास्फीति कम होने और निर्यात पर बाहरी चुनौतियाँ होने के कारण दरें घटाने का तर्क है, लेकिन मजबूत आर्थिक वृद्धि, कमजोर मुद्रा और उच्च क्रेडिट-डिपॉज़िट अनुपात के कारण यथास्थिति बनाए रखना उचित माना जा रहा है। अदिती गुप्ता, अर्थशास्त्री, बैंक ऑफ़ बड़ौदा, बताती हैं कि Q2 FY26 में GDP वृद्धि 8.2% रही और शहरी व ग्रामीण खपत में सुधार हुआ है, जबकि CPI मुद्रास्फीति 0.25% तक कम हुई है। कोर मुद्रास्फीति 4% से ऊपर है, लेकिन इसका मुख्य कारण सोना और GST में कटौती है, जो मांग आधारित नहीं है। इसलिए दर में कटौती की गुंजाइश होने के बावजूद RBI फिलहाल सतर्क रहने की नीति अपनाएगा। वहीं, अशोक कपूर, चेयरमैन, कृष्णा ग्रुप और क्रिसुमी कॉर्पोरेशन, मानते हैं कि मुद्रास्फीति कम होने के कारण RBI 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर सकता है, जिससे हाउसिंग और उससे जुड़े सेक्टरों को लाभ मिलेगा और मौजूदा आर्थिक वृद्धि को और मजबूती मिलेगी। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि फिलहाल दरें यथास्थिति पर रखकर आर्थिक संकेतकों और मुद्रास्फीति के विकास को और समझना बेहतर रहेगा, ताकि भविष्य में आवश्यकतानुसार कदम उठाए जा सकें।
विशेषज्ञों का मानना है कि दिसंबर की बैठक में मौद्रिक नीति समिति (MPC) अपने रुख को स्थिर रखते हुए तटस्थ (Neutral) नीति अपनाएगी और सावधानीपूर्ण ढंग से ढीला रुख (Dovish) अपना सकती है। बिज़नेस स्टैंडर्ड के सर्वेक्षण में शामिल 12 वित्तीय संस्थानों के अर्थशास्त्रियों ने भी यही अनुमान लगाया है।
अधिकांश अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि दिसंबर बैठक में रेपो रेट स्थिर रह सकता है। इसके पीछे मुख्य कारण मजबूत दूसरी तिमाही का GDP आंकड़ा और कम मुद्रास्फीति है। SBI के प्रमुख अर्थशास्त्री सौम्या कांति घोष ने कहा कि Q2 में मजबूत वृद्धि और मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए इस बार दर में कटौती की संभावना कम है।
वहीं, IDFC FIRST बैंक की अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता के अनुसार, बैंकिंग प्रणाली की तरलता और क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात को देखते हुए तत्काल दर में कटौती करना कठिन होगा। भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जमा का हिस्सा लगभग 78% है और क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात 80% के आसपास है। इस कारण से, यदि रीपो दर घटाई भी जाती है, तो इसका पूरा लाभ क्रेडिट पर नहीं पहुंचेगा।
अनुभूति सहाय, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की हेड ऑफ इंडिया इकॉनॉमिक्स ने कहा कि मौजूदा समय में नकदी की उपलब्धता बढ़ाना और मुद्रा स्थिरता बनाए रखना अधिक प्राथमिकता है, न कि दर में कटौती। विशेषज्ञों का अनुमान है कि MPC इस बार तटस्थ रुख अपनाएगी, लेकिन तरलता को पर्याप्त बनाए रखने के लिए ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) जैसी योजनाओं का सहारा लिया जा सकता है।