अर्थव्यवस्था

IBC: दीवाला प्रक्रिया में अभी विधायी बदलाव की जरूरत- RBI डिप्टी गवर्नर

स्वामीनाथन ने कहा कि इसी तरह से वित्तीय सेवा प्रदाताओं जैसे बैंकों, गैर बैंकिग वित्तीय कंपनियों और बीमा कंपनियों के लिए समग्र समाधान ढांचे का एजेंडा अभी पूरा नहीं हुआ है।

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अभिजित लेले   
Last Updated- January 17, 2024 | 10:30 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर स्वामीनाथन जे ने कहा कि ऋण शोधन अक्षमता और दीवाला संहिता (IBC) के तहत व्यावसायिक समूहों के मामलों के समाधन के लिए और विधायी बदलाव करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि समूह में जटिल संरचनाओं की वजह से व्यक्तिगत इकाई के साथ निपटने में समस्या आ सकती है।

आईबीसी के लिए सुधार के एजेंडे के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि अक्सर ऐसे समूहों में जटिल कॉर्पोरेट संरचना होती है, जिसमें एक दूसरे से जुड़े पक्षों के रिश्ते जटिलता बढ़ाते हैं।

स्वामीनाथन ने कहा कि इसी तरह से वित्तीय सेवा प्रदाताओं जैसे बैंकों, गैर बैंकिग वित्तीय कंपनियों और बीमा कंपनियों के लिए समग्र समाधान ढांचे का एजेंडा अभी पूरा नहीं हुआ है।

उन्होंने 10 जनवरी, 2023 को मुंबई में सीएएफआरएएल द्वारा दबाव वाली संपत्तियों के समाधान और आईबीसी पर आयोजित एक सम्मेलन के दौरान यह कहा। स्वामीनाथन का भाषण बुधवार को अपलोड किया गया।

उन्होंने कहा कि वित्तीय संस्थानों के लिए आईबीसी जैसा विधायी ढांचा न होने के कारण एनबीएफसी के मामलों के समाधान में भी आईबीसी का इस्तेमाल होता रहा है।

उन्होंने कहा कि नए कानूनों की शुरुआत होने पर अक्सर समायोजन और व्याख्या होती है, जिसमें वक्त लगता है। इस दौरान हितधारक, कानूनी पेशेवर और न्यायपालिका कानून की जटिलताओं से जूझते हैं। उन्होंने बताया कि आईबीसी को देखें तो इससे जुड़े जोखिम बढ़ गए हैं।

दीवाला प्रक्रिया में शामिल पक्ष निचली अदालत के फैसलों के खिलाफ अपील और समीक्षा याचिका दाखिल कर सकते हैं।

First Published : January 17, 2024 | 10:30 PM IST