जेफरीज के वैश्विक प्रमुख (इक्विटी रणनीति) क्रिस्टोफर वुड (Chris Wood) ने कहा कि दुनिया में (खास तौर पर एशिया में) भारत की वृद्धि की कहानी सबसे अच्छी है।
उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई समिट 2023 में कहा कि इसके बावजूद वैश्विक निवेशकों ने भारतीय इक्विटी में न के बराबर निवेश किया है। उनके मुताबिक उभरते बाजारों के निवेशक तक भारत पर हलके रूप से ही ओवरवेट हैं।
वुड ने कहा कि निवेशकों को सुसंगठित रूप से निवेशित रहना चाहिए क्योंकि बाजारों ने रणनीतिक रूप से बेहतर प्रदर्शन किया है। निश्चित तौर पर मिडकैप महंगे हैं और भारत में तब तब करेक्शन आ सकता है जब जब वॉल स्ट्रीट में करेक्शन आएगा क्योंकि दोनों के बीच सहसंबंध हैं। इसका कारण बॉन्ड का उच्च प्रतिफल रहा है।
वुड ने कहा कि भारत में बाजार नियामक के लिए अहम काम यहां विदेशी निवेशकों का निवेश आसान बनाने का है। ज्यादातर उभरते बाजारों में भारत के मुकाबले विदेशी निवेशकों के लिए निवेश करना आसान होता है।
BJP हारी तो बाजार में आएगी गिरावट: वुड
वुड का मानना है कि अगर 2024 के आम चुनाव में मोदी की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी सत्ता में नहीं लौटती है तो शेयर बाजारों में 2024 में 25 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है।
भारतीय शेयर बाजारों के लिए अभी तो यही सबसे बड़ा जोखिम है। उनका सुझाव है कि रणनीति के तौर पर निवेशकों को अभी निवेशित रहना चाहिए और गिरावट में खरीदारी करनी चाहिए।
हालांकि उनका मानना है कि उभरते बाजारों में भारत की इक्विटी की कहानी सबसे अच्छी है, जो चीन में समस्या के कारण भारत के लिए बेहतर हुई है। उनका कहना है कि आम चुनाव से पहले वे कारोबार करके फायदा उठाने की कोशिश नहीं करेंगे।
वुड ने कहा, अगर 2004 के आम चुनाव की तरह अप्रत्याशित नतीजे आते हैं तो मुझे 25 फीसदी की गिरावट की आशंका है। लेकिन रफ्तार के चलते बाजारों में गिरावट की स्थिति तेजी में बदल जाएगी। इस सरकार के सत्ता में नहीं लौटने की स्थिति में बड़ी गिरावट का जोखिम है। इसकी संभावना हालांकि कम है, लेकिन जोखिम बरकरार है।
उन्हें उम्मीद है कि अगर सरकार की वापसी होती है तो उत्पादन से जुड़ाव वाली योजनाओं (PLI Scheme) की रफ्तार जोर पकड़ेगी और इससे भारत के विनिर्माण क्षेत्र में निवेश आकर्षित होगा।
वुड ने कहा कि ऐपल समेत अन्य बड़ी कंपनियों को चीन में उत्पादन के मुकाबले बचाव का तरीका तलाशना होगा। अगले 25-30 वर्षों के लिए भारत घरेलू मांग की अगली सबसे बड़ी कहानी होगी। ऐसे में विनिर्माण कारोबार पाने के लिए उसे वियतनाम, थाइलैंड, मलेशिया की तरह महज 70-80 फीसदी अच्छा बनना होगा। इसके लिए सरकार का दोबारा सत्ता में आना जरूरी है और नीतिगत निरंतरता बनी रहनी चाहिए।
बॉन्ड बाजारों को लेकर चिंता
वुड के मुताबिक शेयर बाजार के नजरिये से पिछले तीन महीने में दुनिया भर में सबसे बड़ी घटना अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल में हुई तीव्र बढ़ोतरी है।
उन्होंने कहा कि आम राय यह है कि अमेरिकी दरें लंबे समय तक ऊंची रहेगी या आपूर्ति से जुड़े अवरोध हालिया बिकवाली के कारण हैं। निवेशक अमेरिका में बढ़ते राजकोषीय घाटे को लेकर चिंतित होने लगे हैं। प्राइवेट इक्विटी व प्राइवेट क्रेडिट के क्षेत्र (खास तौर से अमेरिका में) पर नजर रखने की जरूरत है। क्रेडिट को लेकर जोखिम अब बढ़ रहा है।
वुड का कहना है कि बाजार यह नहीं मान रहा है कि युद्ध में तेजी आएगी। इसे कच्चे तेल की कीमतों में रुझान से देखा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि बाजार यह मानकर चल रहा है कि यह युद्ध पश्चिम एशिया को अपनी लपेट में नहीं लेगा। तेल की कीमतों में खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। ऐसे में स्पष्ट तौर पर युद्ध का दायरा बढ़ने की आशंका को बाजार नहीं मान रहा।
वुड ने कहा कि इस बीच चीन में इस साल जापान जैसा ही हाल दिख रहा है जहां वृद्धि नरम हो रही है। लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या स्थायी तौर पर ऐसा होने जा रहा है या फिर चीन फिर से उभरेगा।
उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि चीन की वृद्धि वापस लौटेगी। लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि अगले 10 साल में उसकी वृद्धि करीब 3 फीसदी रहेगी जबकि भारत की वृद्धि दर 6-7 फीसदी होगी। वैश्विक निवेशकों के लिए भारत अगला सबसे बड़ा वैश्विक मौका होगा।
इसके बावजूद वुड ने सतर्क किया है कि भारत में विदेशी रकम उतनी नहीं आ रही है, जितनी आनी चाहिए। इसकी वजह विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए मुश्किल या बोझिल प्रक्रिया है। उनके मुताबिक चीन में निवेशित रकम में से ज्यादातर भारत आने की संभावना है।
वुड ने कहा, इस साल हालांकि ज्यादा वैश्विक रकम जापान चली गई। सभी वैश्विक फंड अब भारत की ओर देख रहे हैं लेकिन मसला यह है कि उन्हें एफआईआई दर्जे के लिए आवेदन करना होता है। भारतीय बाजार तेजी के उस चक्र को दोहराएगा, जो हमने 2002 से 2009 के दौरान देखा था। यह हाउसिंग में तेजी और निजी क्षेत्रों के पूंजीगत खर्च से आगे बढ़ेगा। सात साल की मंदी के बाद भारतीय प्रॉपर्टी बाजार तेजी के तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है। अभी इसमें मंदी के कोई संकेत नहीं हैं।