कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के पेरोल के आंकड़ों से भले ही अगस्त महीने में पंजीकरण में 34 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी नजर आ रही है, लेकिन जरूरी नहीं है कि यह औपचारिक क्षेत्र की नौकरियों में बहाली का एक संकेतक हो। देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान पेरोल के आंकड़ों में बहुत उतार चढ़ाव रहा है, जो मार्च में 3 महीने के लिए लागू हुआ था।
उदाहरण के लिए अप्रैल 2020 के पेरोल आंकड़े को लेते हैं। जब जून में पहली बार आंकड़े जारी किए गए तब शुद्ध पंजीकरण 1,33,080 था। लेकिन जब मंगलवार को नए आंकड़े जारी किए गए तो इसमें भारी बदलाव हुआ। इससे पता चलता है कि अप्रैल महीने में पेरोल में 1,04,608 की कमी आई। इसका मतलब यह है कि पेरोल के आंकड़ों में करीब दोगुने की कमी आई। साथ ही संभवत: यह पहली बार हुआ है कि ईपीएफओ के आंकड़े में पेरोल में शुद्ध कमी नजर आ रही है।
पेरोल के आंकड़ों में बड़ा उतार चढ़ाव क्यों है? इस सवाल को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि ईपीएफओ पेरोल आंकड़े किस तरह से एकत्र करता है, जो हर महीने की 20 तारीख को जारी होता है।
कुछ प्रतिष्ठानों में (सभी में नहीं) 20 कर्मचारी होते हैं, जिन्हें अपने कर्मचारियों के भविष्य निधि में अंशदान देना होता है। प्रतिष्ठान हर महीने रिटर्न दाखिल करते हैं, जिसे इलेक्ट्रॉनिक कम चालान (ईसीआर) के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कर्मचारियों की संख्या, उनके वेतन और पीएफ अंशदान आदि का ब्योरा होता है। इस सूचना को पेरोल के आंकड़ों में शामिल किया जाता है।
ईपीएफओ में शुद्ध पंजीकरण कैसे आता है? दरअसल यह काम पर लगने वाले कर्मचारियों की संख्या और ईपीएफओ के दायर हुए कॢमयों की संख्या का अंतर होता है। साथ ही में इसमें ईपीएफओ की सदस्यता छोड़कर फिर से औपचारिक क्षेत्र में शामिल होने वाले भी होते हैं। ईपीएफओ औपचारिक क्षेत्र के कामगारों के नौकरी पकडऩे या छोडऩे से जुड़ी सूचनाएं ईसीआर से प्राप्त करता है, जैसा कि ऊपर कहा गया है।
ईपीएफओ के मानकों के मुताबिक कंपनियों को हर महीने 15 तारीख को ईसीआर दाखिल करना होता है।
