अर्थव्यवस्था

रुख में किसी बदलाव से अटकलों को मिलेगा बढ़ावा : आशिमा गोयल

भारत में बढ़ती मुद्रास्फीति की चिंताओं के बीच RBI ने रेपो रेट को 6.5% पर अपरिवर्तित रखा

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मनोजित साहा   
Last Updated- March 04, 2024 | 10:10 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में रीपो रेट को 6 .5 फीसदी पर बरकरार रखा है। मौद्रिक नीति समिति की बाह्य सदस्य आशिमा गोयल का कहना है कि रिजर्व बैंक सहित ज्यादातर अनुमानों में यह माना जा रहा है कि वित्त वर्ष 25 की तीसरी तिमाही में महंगाई फिर से बढ़ने लगेगी।

मनोजित साहा के साथ ईमेल साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि इस बढ़त की आशंका की वजह से ही एमपीसी यह चाहती है कि दरों में कमी लाने से पहले मुद्रास्फीति टिकाऊ रूप से 4 फीसदी के लक्ष्य के आसपास रहे। संपादित अंश:

आपने समायोजन रुख को वापस लेने का समर्थन किया है, जबकि इस दृष्टिकोण से भी आप सहमत हैं कि यह रुख दरों के अनुरूप है।

रिजर्व बैंक के महंगाई के अनुमान से ऐसा लगता है कि रीपो रेट अब नहीं बढ़ने वाली है। ऐसे में, आखिर इस रुख में क्यों न बदलाव कर इसे तटस्थ किया जाए? आखिर किस परिस्थिति में यह रुख बदलेगा?

ऐसा किसी भी तरह का बदलाव अटकलबाजी को बढ़ावा देगा और बाजारों में अस्थिरता आएगी। ‘रुख से हटना’ इस लिहाज से सही नहीं होगा कि रीपो दर अवस्फीतिकारी बनी हुई है और इसका उद्देश्य मुद्रास्फीति को लक्ष्य की ओर लाना है, भले ही तरलता यानी नकदी की हालत में नरमी हो जाए। इसलिए यह बेहतर है कि फिलहाल संकेतों को बाधित न किया जाए।

भारत जैसी अर्थव्यवस्था के लिए वास्तविक ब्याज दर क्या होनी चाहिए?

वास्तविक रीपो रेट को संतुलन (इक्विलिब्रियम) स्तर के आसपास रहना चाहिए जिससे महंगाई पर अंकुश लगे और आर्थिक वृदि्ध टिकाऊ बनी रहे। फिलहाल ये दोनों चीजें हो रही हैं, इसलिए वास्तविक ब्याज दर इस स्तर पर है। जब आर्थिक वृदि्ध में तेजी आती है तो संतुलन वास्तविक ब्याज दर (अल्पकालिक वास्तविक ब्याज दर) बढ़ती है और जब इसमें गिरावट आती है तो दर भी घटने लगती है।

क्या आप इस दृष्टिकोण से सहमत हैं कि वृदि्ध अभी अपनी क्षमता से कम है और किसी भी तरह की ओवरहीटिंग की स्थिति नहीं है?

भारत जैसे देश के लिए जहां इतने बड़े पैमाने पर बेरोजगारी हो, संभावित वृदि्ध या विकास को महंगाई के लिहाज से ही देखना होगा। जब तक महंगाई स्वीकार्य स्तर पर है, यह अपनी क्षमता से नीचे ही है। लागत को कम करने के लिए आपूर्ति पक्ष पर लगातार काम करने और अवरोधों को दूर करने से संभावित विकास में बढ़त हो सकती है।

आरबीआई ने वित्त वर्ष 25 की दूसरी या तीसरी तिमाही में औसत सीपीआई मुद्रास्फीति 4 फीसदी के आसपास रहने का अनुमान लगाया है। क्या आपको लगता है कि

एमपीसी को रीपो रेट में कटौती शुरू करने से पहले मुद्रास्फीति के लक्ष्य तक पहुंचने का इंतजार करना चाहिए?

महंगाई 4 फीसदी के आसपास पहुंच सकती है, लेकिन रिजर्व बैंक सहित ज्यादातर अनुमानों में यह कहा जा रहा है कि तीसरी तिमाही में मुद्रास्फीति फिर बढ़ेगी। तो एमपीसी को यह देखना होगा कि मुद्रास्फीति टिकाऊ रूप से लक्ष्य के आसपास रहे।

ऐसा हुआ तो आपूर्ति के झटकों का भी असर भी क्षणिक साबित होगा। आर्थिक वृदि्ध काफी मजबूत बनी हुई है और भूराजनीतिक हालात नाजुक बने हुए हैं, तो हम यह सुनिश्चित करने के लिए इंतजार कर सकते हैं।

आपने कहा है कि भारित औसत कॉल दर (डब्ल्यूएसीआर) को काफी हद तक रीपो दर पर सुनिश्चित करने के उपायों की आवश्यकता है। इस संदर्भ में आपने कहा था: ‘मुद्रा बाजार के समय अवधि को बढ़ाना चाहिए और बाजार के सूक्ष्म ढांचे को इस तरह से विकसित करना चाहिए कि बैंक एक दूसरे को कर्ज दे सकें।’

क्या आप इसका मतलब समझा सकती हैं?

मुझे नहीं लगता कि बैंकों को अपनी पूरे हफ्ते और चौबीसों घंटे की बैंकिंग की जरूरत को पूरा करने के लिए नकदी के भंडारण की जरूरत होनी चाहिए, अगर वे हर समय उधार लेकर भी काम चला सकते हैं। अपने विविध प्रकृति के कारण भारतीय बैंक एक-दूसरे को ऋण देने में अनिच्छुक हो सकते हैं।

लेकिन क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) पूरे हफ्ते और चौबीसों घंटे के लिए एक ऐसा प्लेटफॉर्म विकसित कर सकता है जिसमें कि प्रतिपक्ष जोखिम को समाप्त किया जा सकता है। अमेरिका के मुद्रा बाजारों में तरलता बढ़ाने के लिए एसईसी ने ऐसा ही एक मंच लाने का प्रस्ताव किया है।

First Published : February 26, 2024 | 11:32 PM IST