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कालाजार के इलाज के लिए Zydus की दवा को मंजूरी

WHO की इस सूची में जोड़े जाने के बाद इस दवा की वैश्विक स्तर तक पहुंच हो सकेगी।

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सोहिनी दास   
Last Updated- February 25, 2024 | 10:58 PM IST

दवा बनाने वाली कंपनी जायडस लाइफसाइंसेज को लीशमैनियासिस अथवा कालाजार के उपचार की प्रमुख दवा मिल्टेफोसिन के लिए कच्चे माल यानी एपीआई को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा प्री क्वालिफिकेशन मंजूरी मिल गई है।

प्री क्वालिफिकेशन से यह सुनिश्चित होता है कि खरीद एजेंसी द्वारा सप्लाई की गई दवा क्वालिटी और सुरक्षा के मानकों पर खरी है। अहमदाबाद की कंपनी ने एक बयान जारी कर यह जानकारी दी। डब्ल्यूएचओ की इस सूची में जोड़े जाने के बाद इस दवा की वैश्विक स्तर तक पहुंच हो सकेगी।

लीशमैनियासिस प्रोटोजोआ परजीवियों के कारण होती है और यह संक्रमित मादा फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाइज काली मक्खी के काटने से फैलती है। यह बीमारी कुपोषण,विस्थापन, रहने की खराब स्थिति, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता और पैसों की तंगी वाले दुनिया के सबसे गरीब लोगों को होती है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस बीमारी के तीन मुख्य रूप हैं- क्यूटैनियस लीशमैनियासिस (सीएल), विसरल लीशमैनियासिस (वीएल) जिसे कालाजार भी कहा जाता है और म्युकोक्यूटैनियस लीशमैनियासिस (एमसीएल)। सीएल सबसे ज्यादा पाई जाने वाली बीमारी है, वीएल सबसे गंभीर है और एमसीएल में आदमी अपने रोजमर्रा के काम भी नहीं कर पाता।

अगर सही समय पर वीएल का इलाज नहीं कराया जाए तो 90 फीसदी मामलों में मरीज की जान चली जाती है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल 70 हजार से 1 लाख मामले आते हैं और इनमें वीएल के 30 हजार मामले होते हैं।

साल 2018 में सीएल और वीएल के लिए क्रमशः 92 और 82 देशों या क्षेत्रों को महामारी के लिहाज से संवेदनशील माना गया था। आज 1 अरब से अधिक लोग लीशमैनियासिस की आशंका वाले क्षेत्रों में रहते हैं और संक्रमण के जोखिम में हैं।

उल्लेखनीय है कि जायडस लाइफसाइंसेज के टीका प्रौद्योगिकी केंद्र (वीटीसी) के दो आरऐंडडी केंद्र लीशमैनियासिस रोधी टीका विकसित कर रहे हैं। ये केंद्र इटली के कैटेनिया और अहमदाबाद में हैं। इस बीच जायडस लाइफसाइंसेज का शेयर पिछले सप्ताह उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।

First Published : February 25, 2024 | 10:58 PM IST