इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारायण मूर्ति ने आज कहा कि कंपनियां अगले चरण के लिए रकम जुटाने के वास्ते आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) का सहारा लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह चलन सही नहीं है।
इंडिया ग्लोबल इनोवेशन कनेक्ट सम्मेलन में मूर्ति ने कहा, ‘मेरे विचार से यह सही नहीं है क्योंकि आईपीओ के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी आ जाती है।’ उन्होंने इन्फोसिस के आईपीओ को याद करते हुए कहा, ‘मैं, नंदन निलेकणी, गोपालकृष्णन और अन्य सभी साथ बैठे थे और कहा था कि आईपीओ के साथ जिम्मेदारियां भी ज्यादा होंगी। कई ऐसे लोग हैं थे जिनके पास कम पैसे होते थे, लेकिन उन्होंने हम पर भरोसा कर पैसा लगाया था। ऐसे में उन्हें वाजिब रिटर्न दिलाना हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। आज वेंचर कैपिटल के दबाव के बीच कंपनियां आईपीओ को रकम जुटाने का नया तरीका मान रही हैं।’
मूर्ति को भारत के आईटी क्षेत्र का जनक भी कहा जाता है। 1981 में स्थापित हुई इन्फोसिस 1999 में नैस्डैक पर सूचीबद्ध होने वाली पहली भारतीय आईटी कंपनी बनी।
इस समय कई स्टार्टअप के संस्थापक और कंपनियां आईपीओ लाने की योजना बना रहे हैं। मूर्ति ने कहा, ‘हम सात लोग (सह-संस्थापक) थे। लेकिन जिस दिन हमने इसमें किसी बाहरी व्यक्ति से एक पैसा लिया, स्थितियां बदल गईं। ऐसे में आपको बाहर के लोगों के पैसे का ट्रस्टी बनकर काम करना पड़ता है।’ उन्होंने कहा कि हमने परिवार और दोस्तों से करीब 60 लाख रुपये जुटाए थे। कंपनी में मैंने 75 फीसदी और नंदन ने 35 फीसदी पूंजी लगाई थी। लेकिन जब भी हम कथित संपन्न लोगों के पास जाते तो वे हमसे पूछते कि क्या हम उन्हें रिटर्न की गारंटी दे सकते हैं? दूसरी ओर जब मैं अपनी बहनों और दोस्तों के पास गया तो कम जानकारी रखने वाले उन लोगों ने केवल यह पूछा कि पैसा फिजूल में तो खर्च नहीं होगा। जवाब में मैं कहता कि इसे अपने पैसों से भी ज्यादा मानकर इस्तेमाल करेंगे। ये सभी निम्न मध्यवर्ग के लोग थे, जिन्होंने पैसे दिए थे। इसलिए आईपीओ से पहले मैंने अपने सहकर्मियों के साथ बैठक की और कहा कि जब तक इन लोगों से किया वादा पूरा नहीं होता तब तक हम चैन से नहीं सो सकते हैं।
मूर्ति ने कहा, ‘आईपीओ लाना मजाक नहीं है। मैंने कई लोगों को ऊपर चढ़ते और गिरते देखा है। आईपीओ लाने से पहले हमें खुदरा निवेशकों के बारे में सोचना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि बाजार के आकार का अनुमान बढ़ा-चढ़ाकर लगाया गया है। देश में संभवत: बाजार का शोध करने वाली अच्छी कंपनियां नहीं हैं, जो बाजार में अवसर का सटीक अनुमान दे सकें।
स्टार्टअप संस्थापकों, निवेशकों और उद्योग से जुड़े प्रमुखों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘आपकी लागत बढ़ जाती है लेकिन राजस्व नहीं बढ़ता है, जिससे आपको नुकसान होता है।’
मूर्ति का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कई कंपनियों का मूल्यांकन घट रहा है, पूंजी जुटाने की रफ्तार धीमी हो गई है और नकदी बचाने के लिए कई स्टार्टअप कर्मचारियों की छंटनी तक कर रही हैं। सिकोया और सॉफ्टबैंक जैसे निवेशकों ने भी स्टार्टअप के मुनाफे को लेकर चिंता जताई है और अब उनका निवेश कम हो सकता है।
सिकोया भारत में काफी सक्रिय है और बैजूज, ओयो, ओला, जोमैटो, मीशो, कार्स 24, पाइनलैब्स, अनअकैडमी जैसी यूनिकॉर्न में उनका निवेश है। सिकोया ने हाल ही में अपनी कंपनियों के संस्थापकों और सीईओ से कहा था कि किसी भी कीमत पर तेजी से आगे बढ़ने का दौर जल्द खत्म हो जाएगा और निवेशक उन कंपनियों का रुख करेंगे जो मुनाफा कमा रही हैं।
अनअकैडमी के सह-संस्थापक और सीईओ गौरव मुंजाल ने हाल ही में कहा था कि एडटेक यूनिकॉर्न को कम से कम अगले 12 से 18 महीने तक पूंजी जुटाने के लिए जूझना होगा और इस दौरान लागत घटानी होगी। कंपनी ने हाल ही में करीब 600 कर्मचारियों की छंटनी की थी।
मूर्ति ने कहा कि कंपनियों को बुरी खबरें भी समय से पहले सार्वजनिक करनी चाहिए। पारदर्शिता का मतलब अच्छी खबरों का खुलासा करना ही नहीं होता।