विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) भारतीय दवा कंपनियों द्वारा धड़ल्ले से उसके लोगो का इस्तेमाल किए जाने से बहुत खफा है। डब्ल्यूएचओ ने भारतीय दवा कंपनियों द्वारा बिना पेटेंट कराए गए नामों की.
दवाओं के बाजार में खुलेआम बेचे जाने से भी नाखुश है। साल की शुरुआत में ही डब्ल्यूएचओ भारत के औषधि नियंत्रक को भी भारतीय दवा कंपनियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय पेटेंट कानूनों के उल्लंघन के बारे में लिख चुका है।
इसी सिलसिले में डब्ल्यूएचओ ने दो हफ्ते पहले ही दवा कंपनी वोकहार्ड को लिखित रुप से अपने लोगो का इस्तेमाल करने से मना किया है। दरअसल यह कंपनी अपनी रेबीज की दवा बेचने के लिए डब्ल्यूएचओ के लोगो का इस्तेमाल कर रही थी। कंपनी के विज्ञापनों में इस दवा को डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रमाणित बताया जा रहा था। विज्ञापन में डब्ल्यूएचओ का लोगो भी साफ दिखाया जा रहा था। जबकि डब्ल्यूएचओ के नियमों के मुताबिक संगठन की आज्ञा के बगैर ऐसा करना मना है। संगठन द्वारा भेजे गए पत्र में बताया गया है कि व्यवसायिक मामलों में अक्सर ऐसी आज्ञा नही दी जाती। कंपनी का यह विज्ञापन पूरी तरह से व्यवसायिक था इसीलिए इस विज्ञापन को बंद करने के लिए कहा गया था। कंपनी को आगे भी ऐसा करने से मना किया गया है। संगठन ने कं पनी को विज्ञापन में से डब्ल्यूएचओ का नाम हटाकर विज्ञापन को जारी करने की अनुमति दे दी है।
भारतीय दवा कंपनियों के इतिहास में ऐसा पहली बार नही हो रहा है। गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, नागपुर के फार्मा शोधकर्ता विजय थवानी ने अपने सर्वेक्षण में ऐसे 40 मामले ढूंढ निकाले हैं। इन मामलों में छोटी दवा कंपनियों के अलावा रेनबैक्सी और सनोफी अवेंतिस जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं। बड़ी कंपनियां भी अपनी वैक्सीन, एड्स की दवा और सामान्य तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले ओआरएस के घोल को बेचने के लिए भी डब्ल्यूएचओ के लोगो का इस्तेमाल करती हैं।
