बीसीजी एक्स के प्रबंध निदेशक एवं वरिष्ठ साझेदार और ग्लोबल लीडर सिल्वैन डुरंटन तथा बीसीजी एक्स इंडिया के प्रबंध निदेशक एवं साझेदार और प्रमुख निपुण कालरा ने बीसीजी के मुंबई कार्यालय में शिवानी शिंदे के साथ बातचीत में कहा कि उद्यमों में जनरेटिव एआई का कार्यान्वयन केवल तकनीक और उपकरणों के संबंध में ही नहीं है, बल्कि इसका 70 प्रतिशत भाग लोगों से भी संबंधित है। उन्होंने इस बारे में बात की कि जेनेरेटिव एआई के मामले में भारत किस तरह लाभ की स्थिति में है। संपादित अंश:
जनरेटिव एआई (जीएआई) चक्र में भारत कहां है?
हमने हाल ही में वैश्विक स्तर पर और भारत में एआई और अन्य सभी तकनीकों पर एक सर्वेक्षण किया और पाया कि भारत की स्थिति अलग है। भारत उन शीर्ष तीन देशों में शामिल है, जहां लोग एआई और जीएआई को लेकर आशावादी हैं। जब एआई और जीएआई की तैनाती के संबंध में चिंताओं और चुनौतियों की बात आती है, तो भारत नीचे के तीन देशों में से एक है। मुझे लगता है कि यह भारत के लिए एक सकारात्मक चीज होगी, जो अच्छी रह सकती है।
अब तक तकनीक की चर्चा क्लाउड के इर्द-गिर्द रहती थी। अब इसका केंद्र जीएआई की ओर स्थानांतरित हो गया है। कारोबार को तकनीकी परिदृश्य कैसे देखना चाहिए?
क्या कंपनियों ने क्लाउड की ओर जाना शुरू कर दिया है? हां। क्या उन्हें वह फायदा हुआ है, जिसका उनसे वादा किया गया था? नहीं। मुझे लगता है कि क्लाउड में अच्छा स्थानांतरण हुआ है और कंपनियों को इस पर ध्यान देना चाहिए। फिर भी एआई और जीएआई डेटा प्रबंधन वगैरह में सिर्फ दक्षता प्रदान करने से इतर है। यह कारोबार परिचालन के परिवर्तन के संबंध में है। इसलिए एआई की तैनात चुनौतीपूर्ण है।
लेकिन ज्यादातर कंपनियां जो सोच रही हैं, उससे ज्यादा वक्त लगेगा। बहुत से लोग सोचते हैं कि चैट जीपीटी की तैनाती बहुत आसान है और शायद ही कोई इंजीनियरिंग हो। वह एक मिथक है। अगर आप इसे कंपनियों में बड़े स्तर पर तैनात करना चाहते हैं, तो आपको इंजीनियरिंग की पूरी ताकत की जरूरत होगी।
जीएआई की तैनाती में क्या कुछ चुनौतिया क्या हैं?
जब हम पारंपरिक एआई की तैनाती पर नजर डालते हैं, तो पाते हैं कि लगभग 70 प्रतिशत कंपनियां विफल हो चुकी हैं। हम कह रहे हैं कि एआई कोई जादुई बटन नहीं है, इसमें तकनीकी चुनौतियां हैं। कंपनियों को नई तकनीक का निर्माण करना होगा और इसे पुरानी प्रणालियों में भी लाना होगा। कंपनियों और मुख्य कार्याधिकारियों को मेरी सलाह है कि उन्हें कुछ ऐसे क्षेत्रों को चुनने की जरूरत है जो वास्तव में बाधा पहुंचाएंगे। अगर कंपनियां इसे हर चीज में तैनात करना चाहती हैं, तो वे खो जाएंगी। उन्हें कारोबार पर उनके प्रभाव के आधार पर प्रक्रिया चुनने की जरूरत है।
कालरा : हां, पारंपरिक एआई के नजरिए से 70 प्रतिशत लोगों ने पैसा नहीं बनाया है। जीएआई को काफी डेटा की जरूरत होती और यह एक यात्रा है। हमने हाल ही में भारत में 45 मुख्य कार्याधिकारियों से मुलाकात की और एक बात दोहराई गई कि कर्मचारी आधार उत्पादक कैसे हो सकता है। वे छोटे-छोटे मामले देख रहे हैं।
जनरेटिव एआई द्वारा नौकरियों को प्रभावित करना एक बात है, लेकिन कर्मचारियों के लिए इसका उपयोग करने का क्या मतलब है?
डुरंटन : सही तकनीक या सही डेटा प्राप्त करना जीएआई का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही है, 70 प्रतिशत हिस्सा इस संबंध में है कि लोग इसे कैसे अपनाएंगे। बहुत से लोग सोचते हैं कि जीएआई केवल टेक खरीदने और उसे लागू करने के संबंध में ही है। नहीं, लोगों जो काम करते हैं, यह उसमें परिवर्तन के संबंध में है।
दुनिया भर में 36 प्रतिशत कर्मचारियों को लगता है कि एआई उनकी नौकरियां ले लेगा। भारत में यह संख्या 50 प्रतिशत है। मैं नहीं मानता कि ये संख्याएं सही हैं। कार्यक्षेत्र में भारी चिंता है, जिसे दूर करने की जरूरत है।