छोटी जगह से शुरू हुआ सीरम इंस्टीट्यूट का सफर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 10:06 AM IST

उद्योगपति साइरस पूनावाला को वर्ष 1967 में 12,000 डॉलर का निवेश करते समय शायद ही यह पता होगा कि टिटनस का टीका बनाने के लिए लगाया जा रहा यह संयंत्र कोविड-19 महामारी के टीके के उत्पादन में वैश्विक स्तर पर काफी अहम भूमिका निभाएगा। एक छोटी प्रयोगशाला के तौर पर शुरू हुआ यह संयंत्र आज इतना बड़ा हो चुका है कि दुनिया भर में बनने वाले टीकों का 50 फीसदी उत्पादन वह अकेले करता है। पुणे को सोलापुर से जोडऩे वाले रास्ते पर स्थित हड़पसार में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) इसकी पहली इकाई 1966 में लगी थी। आज के समय में एसआईआई को भारत की अग्रणी जैव-प्रौद्योगिकी कंपनियों में गिना जाता है।
जब देश में प्रतिरोधक क्षमता से जुड़े जैविक पदार्थों की भारी किल्लत हुआ करती थी और उन्हें विदेश से महंगे दामों पर आयात करना पड़ता था, उस समय भी पूनावाला ने जीवन बचाने वाली दवाओं के लागत-सक्षम उत्पादन में कारोबार की संभावनाएं देख ली थीं। यही वजह है कि वर्ष 2013 में ब्रिटिश राजघराने के प्रिंस ऑफ वेल्स ने इस कंपनी के संयंत्र का निजी दौरा किया था। उनकी यात्रा का मकसद यह जानना था कि यह कंपनी किफायती दाम पर भी गुणवत्तापरक टीकों का उत्पादन किस तरह कर लेती है। सीरम ने अपने सफर की शुरुआत टिटनस के टीके के उत्पादन के साथ की थी। जल्द ही उसने कई अन्य जीवन-रक्षक दवाओं का उत्पादन भी शुरू कर दिया। वर्ष 1974 आते-आते कंपनी डीपीटी के सम्मिलित टीके का उत्पादन भी करने लगी। उसने 1981 में सांप के काटने पर लगाए जाने वाले टीके और अस्सी-नब्बे के दशकों में चेचक एवं रुबेला का टीका भी तैयार किया।
सीरम को टीकों की दुनिया में आगे रखने वाली खास बात यह रही है कि यह बाजार की जरूरत का अंदाजा बहुत जल्द लगा लेती है और फिर उच्च गुणवत्ता वाले टीके का विकास कर उसे किफायती दर पर मुहैया कराती है। कोविड-19 महामारी के समय भी यह बात सही साबित हुई है। उसने हेपेटाइटिस-बी एवं बीसीजी टीकों के दाम भी कम रखे थे। सीरम इंस्टीट्यूट ने किफायती टीकों के उत्पादन के अलावा वर्ष 2004 में दुनिया का इकलौता तरल एचडीसी रैबीज टीका भी तैयार किया था। उसके छह साल बाद कंपनी ने एच1एन1 इन्फ्लूएंजा (स्वाइन फ्लू) का टीका भी पेश किया था। इसी तरह भारत में पोलियो के उन्मूलन के लिए जारी प्रयासों के बीच सीरम इंस्टीट्यूट ने 2014 में पिलाने वाले पोलियो टीके को भी उतारा था। किफायती टीकों के उत्पादन एवं विपणन के सिलसिले में एसआईआई ने कभी-कभी अधिग्रहण का भी रास्ता अख्तियार किया है। सीरम ने 2012 में नीदरलैंड्स की कंपनी बिल्थोवेन बॉयोलॉजिकल्स का अधिग्रहण किया था जिससे सुई के तौर पर लगाई जा सकने वाले पोलियो टीके के निर्माण का रास्ता साफ हुआ था। इस अधिग्रहण से कंपनी बच्चों के लिए कई टीके बनाने की स्थिति में पहुंच गई। आज सीरम इंस्टीट्यूट दुनिया के करीब 170 देशों में हर साल करीब 1.5 अरब टीका खुराक की बिक्री करता है। टीका खुराकों के उत्पादन के मामले में यह पूरी दुनिया में सबसे आगे है। सितंबर 2019 में इसने 3,000 करोड़ रुपये की लागत से एक आधुनिक उत्पादन संयंत्र भी जोड़ा था। तीन साल के भीतर यह संयंत्र सालाना 50 करोड़ टीका खुराकें बनाने की स्थिति में पहुंच जाएगा।  एसआईआई के मुख्य कार्याधिकारी अदर पूनावाला के मुताबिक नए संयंत्र के सक्रिय होने की स्थिति में उसकी उत्पादन क्षमता करीब 1.95 अरब टीका खुराक प्रति वर्ष हो जाएगी। कंपनी ने टीका उम्मीदवारों के परीक्षण के लिए करीब 20 करोड़ डॉलर का निवेश भी किया था। 

First Published : January 1, 2021 | 11:39 PM IST