देश के कुल निर्यात में लगभग 15 फीसदी का योगदान देने वाला भारतीय कपड़ा उद्योग भी मौजूदा वैश्विक वित्तीय संकट की मार से ग्रस्त है।
लेकिन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 8 करोड़ से अधिक लोगों की रोजी-रोटी का जरिया रहे इस उद्योग की दशा सुधारने के लिए केंद्र सरकार ने कोई भरोसेमंद उपाय नहीं अपनाया है।
टेक्स्टाइल कंपनी बीएसएल के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अरुण चूरीवाल ने कहा, ‘डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट ने वस्त्र उद्योग पर नकारात्मक असर डाला है। भारतीय वस्त्र के लिए प्रमुख बाजार अमेरिका से कई बड़े निर्यात ऑर्डरों के रद्द हो जाने से कुल वस्त्र निर्यात में कमी आई है।’
उन्होंने कहा कि निर्यात में कमी आने के कारण पिछले 6 महीनों में पूरे देश में 30 फीसदी से अधिक कताई क्षमता में गिरावट आई है। वित्तीय संकट के कारण कई बुनाई, कपड़ा निर्माण और अन्य इकाइयां बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं।
उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ, जहां लगभग 70 फीसदी भारतीय कपड़ा निर्यात किया जाता है, में मौजूदा ऋण संकट ने इस क्षेत्र में मंदी को बढ़ा दिया है। इसके अलावा इस उद्योग की दुर्दशा के लिए कुछ घरेलू कारक भी जिम्मेदार हैं। रेडीमेड कपड़ों और धागे के निर्यातकों ने पिछले साल की तुलना में इस बार मांग में कोई इजाफा दर्ज नहीं किया है।