टाटा समूह ने विदेशों में सक्रिय अपनी सहयोगी कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाने की योजना बनाई है।
समूह अपनी आधा दर्जन कंपनियों का मूल्य बढ़ाने और उन्हें विदेशों में अधिग्रहण की किसी भी कोशिश से बचाने के लिए इन कंपनियों में प्रमोटरों की हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है।
अधिकारियों का कहना है कि समूह की विभिन्न कंपनियां जैसे कि टाटा स्टील, टाटा केमिकल्स, टाटा मोटर्स, टाटा पावर कंपनी और टाटा टी जैसी समूह कंपनियों में प्रमोटर अपना नियंत्रण बढ़ाए जाने की संभावना तलाश रहे हैं। ये प्रमोटर चालू वित्तीय वर्ष में अधिग्रहणों के जरिये और बॉन्ड एवं वारंट जारी कर हिस्सेदारी को 35-40 प्रतिशत करना चाहते हैं।
कंपनियों की मौजूदा हालत
फिलहाल टाटा टी को छोड़ कर वैश्विक कंपनियों में प्रमोटर हिस्सेदारी 35 प्रतिशत से कम है। प्रवर्तक इस वर्ष 5 प्रतिशत की अधिग्रहण सीमा के तहत इन कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी 3-4 प्रतिशत तक बढ़ाने की संभावना तलाश रहे हैं।
इसके अलावा मौजूदा बाजार हालात भी कम कीमत पर शेयरों की पुनर्खरीद के लिए उपयुक्त दिख रहे हैं। जब बाजार तेजी से बढ़ रहा है, यह कदम कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। यदि जरूरत पड़ी तो कंपनियां पूंजीगत विस्तार को लेकर कोष जुटाने के लिए हिस्सेदारी बेच सकती है।
अधिकारियों के मुताबिक, ‘वैसे, इन कंपनियों के लिए फिलहाल अधिग्रहण की चुनौती प्रतिकूल नहीं है। समूह यह स्पष्ट करना चाहता है कि समूह कंपनियां किसी तरह के हमले से असुरक्षित नहीं हैं।’ इस संबंध में संपर्क किए जाने पर समूह के प्रवक्ता ने बताया, ‘टाटा संस ऐसी अटकलों पर टिप्पणी नहीं करना चाहता है।’
कंपनी के नियम बोलें…
प्रवर्तकों की ओर से अधिग्रहणों के जरिये खरीदी जाने वाली हिस्सेदारी की मात्रा किसी भी वित्तीय वर्ष के लिए 5 प्रतिशत है। इससे ज्यादा हिस्सेदारी के लिए उन्हें ओपन ऑफर के साथ आगे आने की जरूरत है। इसके अलावा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के दिशा-निर्देशों के मुताबिक प्रवर्तकों को अधिग्रहणों और तरजीही आवंटन के जरिये अपनी हिस्सेदारी 55 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने की अनुमति नहीं है।
पिछले सप्ताह टाटा पावर ने घोषणा की थी कि वह 1.03 करोड़ वारंट के कन्वर्जन से अपने प्रवर्तक टाटा संस को शेयर जारी कर 1400 करोड़ रुपये जुटाएगी। पिछले वर्ष टाटा पावर के बोर्ड ने 98.9 लाख इक्विटी शेयरों और टाटा संस के 1.03 करोड़ वारंट के आवंटन की मंजूरी दी थी।
अर्न्स्ट ऐंड यंग के भागीदार जयेश देसाई ने बताया, ‘वैश्विक रूप से पूंजीगत आवश्यकतओं के कारण एकल प्रवर्तक हिस्सेदारी घट रही है। इसके उलट समूह कंपनियों में टाटा समूह अपना नियंत्रण बढ़ा रहा है।’
समूह का रहे बोलबाला
1980 के दशक के अंत में टाटा समूह का अपनी प्रमुख कंपनियों में तकरीबन 10 प्रतिशत का नियंत्रण था। बाद में समूह ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का फैसला किया। 2006 में टाटा संस के अध्यक्ष रतन टाटा ने कहा था कि टाटा स्टील में प्रवर्तक तरजीही शेयरों के जरिये अपनी हिस्सेदारी तकरीबन 7 प्रतिशत तक बढ़ाएंगे।
यह कदम इस्पात उद्योगपति एल. एन. मित्तल के आर्सेलर अधिग्रहण के बाद उठाया गया। अगस्त 2006 में टाटा टी की सालाना आम बैठक में उन्होंने इसी तरह के विचारों को दोहराया, लेकिन उन्होंने ओपन ऑफर की संभावना से इनकार कर दिया था।