प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
यह रणनीतिक कदम रिलायंस को देश की पहली निजी कंपनी बनाता है जो किसी मूल निर्माता (OEM) के बिना स्वतंत्र रूप से पूर्ण विमान अपग्रेड कार्यक्रम को अंजाम दे रही है। एक ऐसा क्षेत्र जो अब तक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और विदेशी कंपनियों के नियंत्रण में रहा है।
रिलायंस ने Hindustan Aeronautics Ltd (HAL) के साथ मिलकर अमेरिका की एवियोनिक्स कंपनी Genesys के सहयोग से 55 डॉर्नियर-228 विमानों का सफलतापूर्वक अपग्रेड किया है। पहले 37 विमानों का अनुबंध था, जिसमें सफल प्रदर्शन के बाद 18 और विमानों का ऑर्डर मिला। यह अनुबंध कुल ₹350 करोड़ का रहा। ये अपग्रेडेड विमान अब भारतीय वायुसेना, नौसेना और कोस्ट गार्ड के पास सेवा में हैं।
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सैन्य विमान और हेलीकॉप्टर सामान्यतः 30-40 वर्षों तक सेवा में रहते हैं। इसलिए एवियोनिक्स, मिशन सिस्टम और सुरक्षा उपकरणों का समय-समय पर अपग्रेड जरूरी होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इन अपग्रेड्स और MRO (Maintenance, Repair, Overhaul) में प्लेटफॉर्म की मूल लागत का 200-300% तक निवेश हो सकता है।
वैश्विक स्तर पर सैन्य विमान और हेलीकॉप्टर अपग्रेड बाजार वर्तमान में ₹5 लाख करोड़ प्रतिवर्ष है, जो अगले 7 वर्षों में ₹7 लाख करोड़ तक बढ़ने की संभावना है।भारत के पास पुराने प्लेटफॉर्म्स की बड़ी संख्या है, जो अपग्रेड के लिए आदर्श बनाती है, विशेषकर जब सशस्त्र बल नेक्स्ट-जेन वारफेयर के लिए तैयार हो रहे हैं।
रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर, फ्रांस की Thales कंपनी के साथ साझेदारी में भारत में राफेल फाइटर जेट्स के लिए परफॉर्मेंस-बेस्ड लॉजिस्टिक्स (PBL) कार्यक्रम का भी हिस्सा है।
कंपनी की यह रणनीति ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की सोच के अनुरूप है। रिलायंस अब वैश्विक साझेदारों के साथ मिलकर उच्च गुणवत्ता वाले अपग्रेड समाधान विकसित कर रही है।
रक्षा उत्पादन और सेवाओं के क्षेत्र में रिलायंस की यह रणनीति निवेशकों के लिए एक दीर्घकालिक लाभ का अवसर प्रस्तुत करती है — जिसमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग, पुनरावर्ती राजस्व और नवाचार की संभावनाएं शामिल हैं।
(एजेंसी इनपुट के साथ)