रियल एस्टेट

जल्द मुश्किल से उबरेंगी रियल्टी परियोजनाएं, IBBI ने उठाए नए संशोधन में अहम कदम

इसके तहत रियल एस्टेट क्षेत्र में अलग-अलग परियोजनाओं के ऋणशोधन की इजाजत दे दी गई है।

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रुचिका चित्रवंशी   
अनीका चटर्जी   
Last Updated- February 16, 2024 | 11:28 PM IST

भारतीय ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड (आईबीबीआई) ने मुश्किल में फंसी रियल एस्टेट कंपनियों को उबरने में मदद करने के लिए कंपनी ऋणशोधन अक्षमता समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के नए संशोधन में एक अहम कदम उठाया है। इसके तहत रियल एस्टेट क्षेत्र में अलग-अलग परियोजनाओं के ऋणशोधन की इजाजत दे दी गई है।

आईबीबीआई की अ​धिसूचना में कहा गया है, ‘ऋणदाताओं की समिति से मंजूरी मिलने के बाद समाधान पेशवर कर्जदार कंपनी की हरेक रियल एस्टेट परियोजना या परियोजनाओं के समूह के लिए अलग-अलग समाधान योजना आमंत्रित कर सकता है।’

संशोधन की अधिसूचना यह कहकर प्रक्रिया को और सरल बनाती है कि दिवालिया प्रक्रिया में जा रही कंपनी के पास यदि कोई रियल एस्टेट परियोजना है तो समाधान पेशेवर को हरेक रियल एस्टेट परियोजना के लिए अलग-अलग बैंक खाता खोलना होगा।

वि​धि फर्म आरनेस में पार्टनर (इन्सॉल्वेंसी ऐंड रीस्ट्रक्चरिंग प्रै​क्टिस) अंजलि जैन ने कहा, ‘कई परियोजनाओं को एक साथ लेकर समाधान करने के मुकाबले अलग-अलग परियोजना का समाधान किया जाए तो बेहतर कीमत मिलेगी, बोली में होड़ लगेगी और समाधान भी जल्दी होगा। कर्जदार कंपनी की कई परियोजनाएं हो सकती हैं और उन्हें पूरा करने का काम भी अलग-अलग चरणों में हो सकता है। उनके लिए अलग-अलग रकम की जरूरत भी हो सकती है। मौजूदा नियम परियोजनाओं की ऐसी जरूरतों को पूरा करने में कारगर नहीं थे।’

सितंबर 2023 में शुरू हुए सीआईआरपी मामलों में से 21 फीसदी रियल एस्टेट क्षेत्र के हैं। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि रियल एस्टेट कंपनियों के 18 फीसदी मामलों में परिसमापन होता यानी कारोबार बिकता या खत्म होता दिख रहा है, जबकि ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के तहत समाधान की संभावना 15 फीसदी मामलों में ही दिख रही है।

बीसीडी समूह के प्रबंध निदेशक अंगद बेदी ने कहा, ‘यह मान लिया गया है कि हर परियोजना की अपनी अलग चुनौतियां होती हैं और उसे डेवलपर की ब्रांड वैल्यू का आइना नहीं माना जा सकता। कंपनी और बैंक गारंटी होती हैं मगर परियोजना की समीक्षा अलग से करने का काफी फायदा हो सकता है।’

रियल एस्टेट नियामक प्रा​​धिकरण (रेरा), 2016 के अनुसार हरेक प्रवर्तक को अपनी हरेक परियोजना के लिए अलग-अलग बैंक खाते रखने पड़ते हैं। सभी वित्तीय लेनदेन इसी खाते के जरिये होते हैं और जवाबदेही तय करने के लिए इसकी ऑडिट रिपोर्ट भी सौंपनी पड़ती है।

ऋणशोधन अक्षमता नियामक ने मकान खरीदारों को फायदा देने के लिए सीआईआरपी नियमों के अंतर्गत वोट देने के कायदे भी बदले हैं। अब बहुमत नहीं होने पर वोटिंग एक से सात दिन तक बढ़ाने की इजाजत दे दी गई है।

ऋणदाताओं की समिति समाधान योजना लागू करने के लिए निगरानी समिति गठित कर सकती है।

First Published : February 16, 2024 | 10:43 PM IST