देश की सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज को कॉलेस्ट्रॉल घटाने वाली दवा लिपिटॉर से संबंधित विवाद में दुनिया की नंबर एक दवा कंपनी फाइजर इंक के खिलाफ अदालत से मिला जुला फैसला मिला है।
ऑस्ट्रेलिया की संघीय अदालत ने 18 देशों में इस दवा के पेटेंट के बारे में अपना फैसला दिया। अदालत ने रैनबैक्सी की प्रस्तावित जेनरिक दवा के बारे में निचली अदालत के एक आदेश को बरकरार रखा, जिसके मुताबिक रैनबैक्सी को पेटेंट का अधिकार नहीं मिला। लेकिन उसने एटोर्वास्टैटिन लिपिटोर के कैल्शियम साल्ट पर फाइजर के दूसरे पेटेंट को अवैध करार दिया, जो भारतीय कंपनी के लिए राहत की बात है।
सूत्रों के मुताबिक पहला पेटेंट मई 2012 तक वैध है और दूसरा पेटेंट सितंबर 2012 को खत्म हो रहा है। रैनबैक्सी और फाइजर, दोनों कंपनियां इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकती हैं। लिपिटोर दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा है। दुनिया भर में इसकी सालाना बिक्री 52,000 करोड़ रुपये से भी अधिक है।
रैनबैक्सी ने इस बारे में बयान जारी कर बताया कि विक्टोरिया की अदालत ने फाइजर के पेटेंट को अवैध करार दिया क्योंकि उनकी कोई उपयोगिता नहीं थी। इसके अलावा अदालत ने ऑस्ट्रेलिया में पेटेंट हासिल करने के लिए गलत सूचना देने के लिए भी फाइजर को दोषी बताया।
रैनबैक्सी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष वैश्विक बौद्धिक संपदा जय देशमुख ने कहा कि कंपनी इस फैसले से वाकई खुश है। कंपनी ने कहा कि बेसिक यानी पहले पेटेंट को वैध करार देने के अदालती फैसले के खिलाफ अपील करने का उसका पूरा इरादा है।