केंद्र सरकार अपने पहले रुख से पलटते हुए मुनाफा कमाने वाले उपक्रमों के निजीकरण नीति पर आगे बढ़ सकती है। इससे पहले सरकार ने घाटे वाली सार्वजनिक इकाइयों को बंद करने या विलय करने की बात कही थी।
सरकार की वैचारिक संस्था नीति आयोग निजीकरण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की सूची तैयार करने की प्रक्रिया में है। इसकी संभावना जताई जा रही है कि पहली सूची में गैर-रणनीतिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ वे कंपनियां शामिल हो सकती हैं जिनमें हिस्सा बेचने के लिए मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल गई है।
मामले की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘छांटी गई कंपनियों को 3-4 किस्तों में लाया जाएगा और पहली सूची में गैर-रणनीतिक क्षेत्र की फर्में होंगी। उसके बाद रणनीतिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण या विनिवेश पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।’ उन्होंने कहा कि इस बारे में पहली रिपोर्ट अप्रैल के पहले हफ्ते में आने की उम्मीद है।
नीति आयोग का दृष्टिकोण विनिवेश और संपत्तियों के मुद्रीकरण नीति के लिए सरकार की नई रणनीति के अनुरूप है, जिसमें निजीकरण पर स्पष्ट ध्यान रहेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निजीकरण के पक्ष में बयान देने के बाद कंपनियों को छांटे जाने की प्रक्रिया में तेजी आई है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि सरकार का काम कारोबार चलाना नहीं है और उन्होंने ‘मुद्रीकरण तथा आधुनिकीकरण’ का मंत्र दिया था।
सूत्रों के अनुसार नीति आयोग की रिपोर्ट में सरकार के लिए बहुलांश हिस्सेदारी बेचने, रणनीति विनिवेश, चुनिंदा संपत्तियों का मुद्रीकरण या शेयर पुनर्खरीद की योजना और समयसीमा का खाका होगा। सूत्रों ने कहा कि इस योजना को अगले वित्त वर्ष में 1.75 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य को ध्यान में रखकर तैयार किया जाएगा।
मंत्रिमंडल द्वारा रणनीतिक बिक्री के मंजूर फर्में इस रिपोर्ट में शामिल हो सकती हैं, जिनमें आईडीबीआई बैंक, बीपीसीएल, शिपिंग कॉर्पोरेशन, कंटेनर कॉर्पोरेशन, नीलाचल इस्पात निगम, पवन हंस और एयर इंडिया प्रमुख हैं। इनका विनिवेश वित्त वर्ष 2022 में पूरा होने की उम्मीद है। आईडीबीआई बैंक के अलावा सरकार अगले वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और वित्तीय संस्थानों, दो बैंकों और एक बीमा कंपनी में भी हिस्सा बेच सकती है।
नीति आयोग रणनीतिक क्षेत्र का मूल्यांकन करेगा और उसके अनुसार सूची तैयार करेगा। उक्त अधिकारी ने कहा, ‘रणनीतिक क्षेत्र की कंपनियों की सूची काफी लंबी है, जिसे छोटा करने की जरूरत होगी और कुछ फर्मों को इससे बाहर किया जा सकता है।’
नीति आयोग के सूत्रों ने कहा, ‘इस कदम का मकसद कंपनी का मूल्य पता करना और बेहतर मूल्यांकन एवं बेहतर इस्तेमाल के लिए संपत्तियों को सार्वजनिक करना है। इन कंपनियों का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने और वैश्विक कार्यप्रणाली लाने के लिए निजी क्षेत्र के लिए जगह बनाने की सख्त जरूरत है।’
सूत्रों ने कहा कि कंपनियों के नामो ंपर अभी चर्चा चल रही है और दो-तीन हफ्ते में इसे अंतिम रूप दिया जा सकता है। नीति आयोग के नेतृत्व में एक कार्यबल वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को इस बारे में रिपोर्ट सौंपे सकता है।
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि नीति आयोग पिछले छह महीने से इस पर काम कर रहा है और इसके लिए योजना बना रहा है जिससे निजीकरण या रणनीतिक विनिवेश के जरिये गैर-रणनीतिक क्षेत्र से सरकार के पूरी तरह बाहर निकलने का रास्ता साफ हो सकता है। केंद्र का लक्ष्य गिने-चुने सार्वजनिक उपक्रमों को ही रणनीतिक क्षेत्र में रखने की है, जिसमें रक्षा, बैंकिंग, बीमा, पेट्रोलियम, स्टील और उर्वरक शामिल हो सकते हैं।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि घाटे वाले सार्वजनिक उपक्रमों को शीघ्रता से बंद करने के लिए संशोधित नीति लाई जाएगी और राज्य पीएसयू में हिस्सा बेचने वाले राज्यों को प्रोत्साहन पैकेज दिया जाएगा। केंद्रीय पीएसयू की जमीन को बेचने के लिए विशेष उद्देश्यीय इकाई बनाई जाएगी। पिछले साल के बजट में निजीकरण और सार्वजनिक उपक्रमों में अल्पांश हिस्सेदारी बेचकर 2.1 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन संशोधित अनुमान को काफी कम कर 30,000 करोड़ रुपये कर दिया गया।