अल्पावधि के पूंजीगत लाभ (एसटीसीजी) कर में 33 फीसदी की बढ़ोतरी से पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज (पीएमएस) कंपनियां मुश्किल में हैं। इससे उनके लिए म्युचुअल फंडों और ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंडों (एआईएफ) से प्रतिस्पर्धा और चुनौतीपूर्ण बन जाएगी। ज्यादातर पीएमएस फर्में रणनीति के तहत लंबी अवधि के लिए निवेश करती हैं लेकिन फंड मैनेजर अल्पावधि में निवेश में फेरबदल करते हैं और विभिन्न सेक्टर में इनका रोटेशन होता है।
ऐसे कदम पर अब 15 फीसदी की बजाय 20 फीसदी कर लगेगा। फंड और एआईएफ उद्योग के उलट पीएमएस कंपनियां को पास थ्रू स्टेटस भी नहीं मिला हुआ है। इससे पीएमएस फंड मैनेजरों के लिए म्युचुअल फंडों और एआईएफ के रिटर्न को मात देना और मुश्किल हो जाएगा। पीएमएस कंपनियों ने कहा कि उनकी अल्पावधि का पोजीशन घटेंगी और थोड़ी लंबी अवधि का पोर्टफोलियो बनाने के लिए सोच-समझकर विचार किया जाएगा।
मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी सौरभ मुखर्जी ने कहा कि निवेश में फेरबदल पर म्युचुअल फंडों पर कर नहीं लगता लेकिन पीएमएस को इस पर कर देना होगा। हमें लगता है कि यह मूल रुप से गलत है लेकिन हम यह भी समझते हैं कि ऐसा क्यों होता है। अगर आप म्युचुअल फंड उद्योग के तौर पर निवेश में करमुक्त फेरबदल कर सकते हैं और हमारे लिए अगर पूंजीगत लाभ कर बढ़ा देते हैं तो फिर मसला खड़ा होता है। लेकिन पीएमएस और फंडों से कर पश्चात रिटर्न में फंडामेंटल के लिहाज से कोई अंतर नहीं होता।
उद्योग के प्रतिभागियों ने कहा कि हालांकि कर एक अहम बात होती है, लेकिन रिटर्न और निवेश का सही फैसला उसे पीछे छोड़ देते हैं। पीएमएस कंपनियों ने कहा कि बाजार की मौजूदा तेज हलचल में जब शेयर एक साल के भीतर 50-60 फीसदी का रिटर्न दे रहे हों तो क्लाइंट मुनाफावसूली से खुश होंगे भले ही कर कितना भी देना पड़े। उनका कहना है कि पीएमएस फंडों (जो धनाढ्य निवेशकों के लिए होते हैं) का लक्ष्य 10 से 15 फीसदी रिटर्न सृजित करने का होता है।
पीजीआईएम इंडिया एमएफ के सीआईओ-अल्टरनेट्स अनिरुद्ध नाहा ने कहा कि कराधान में अंतर चुनौतीपूर्ण है लेकिन हम एक वित्तीय योजना के तौर पर उभरने के लिहाज से अभी शुरुआती अवस्था में हैं। इस प्रक्रिया में कमजोर फंड शायद उद्योग से बाहर निकल जाएंगे। बेहतर और मजबूत टिके रहेंगे और उद्योग एक हद तक एकीकरण की ओर बढ़ेगा। अगर कोई जोखिम समायोजित रिटर्न सृजित करने में अच्छा है तो वह निवेशकों को आकर्षित करता रहेगा।
अबांस इन्वेस्टमेंट मैनजर्स के सीईओ भाविक ठक्कर ने कहा कि कई बार फंड मैनेजर का किसी प्रतिभूति को बेचने का फैसला इस पर निर्भर नहीं करता कि इस पर कितना कर चुकाने की दरकार होगी। ठक्कर ने कहा कि यह उस पर निर्भर करता है कि फंड मैनेजर क्या सोचता है, कि उसे उस खास शेयर के साथ बने रहना चाहिए या नहीं। साथ ही यह भी हो सकता है कि फंड मैनेजर किसी खास शेयर पर कराधान के निहितार्थ को देखते हुए ज्यादा सतर्क रहेंगे और यह भी कि आप उसमें एक साल से ज्यादा या एक साल से कम समय से निवेशित हैं।
पीएमएस उद्योग पहले ही बाजार नियामक सेबी की तरफ से प्रस्तावित निवेश की नई श्रेणी की तपिश झेल रहा है। इस श्रेणी के लिए सेबी ने निवेश का न्यूनतम आकार 10 लाख रुपये रखने का प्रस्ताव रखा है जबकि पीएमएस उध्योग के लिए यह सीमा 50 लाख रुपये है। नए परिसंपत्ति वर्ग को लेकर स्पष्टता नहीं है, लेकिन यह पीएमएस ढांचे से ज्यादा लचीलेपन की पेशकश करेगा।