निर्मल कोटेचा एक ऐसा शख्स है, जो खुद ही ऐलान करता रहा है कि वह न सिर्फ हर्षद मेहता का मुरीद है बल्कि उसके ‘कौशल’ का लोहा मानकर अंधभक्ति से उसी राह पर चलता रहा है।
एक ऐसे एलआईसी एजेंट का बेटा होकर, जिसके पास कोच्चि में बस एक मेडिकल स्टोर ही रहा हो, निर्मल कोटेचा ने जो मुकाम हासिल किया, उसे बेशक काबिले-तारीफ तो माना ही जाएगा। तभी तो 32 साल की उम्र में ही वह 500 करोड़ रुपये की संपत्ति का मालिक बन गया।
उसे जानने वाले लोग उसे ढेरों विशेषणों से नवाजते हैं-कोई उसे अत्यंत बुध्दिमान कहता है तो कोई शेयर बाजार का ऐसा दीवाना बताता है, जिसे जल्दी से जल्दी बस पैसा ही बनाना है। पिछले हफ्ते तो उसे एक नया ही विशेषण मिला-‘पिरामिड साइमीरा घोटाले का सूत्रधार और इससे सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाला शख्स’ -और यह विशेषण दिया उसे खुद बाजार नियामक सेबी ने।
23 अप्रैल को अपने एक आदेश में सेबी ने बताया कि वह कोटेचा ही था, जिसने सेबी के नाम से भेजे गए फर्जी पत्र की रचना की। पत्र में थिएटरों की श्रृंखला चलाने वाली कंपनी पिरामिड के निदेशकों को यह आदेश दिया गया था कि वे शेयरधारकों के लिए खुली पेशकश लेकर आएं।
इस धोखाधड़ी के पीछे मकसद कंपनी के शेयर की कीमतों में कृत्रिम उतार-चढ़ाव पैदा करना था, लिहाजा सेबी ने 230 व्यक्तियों एवं संस्थाओं के बाजार में सौदे करने पर रोक लगा दी। वैसे, कोटेचा की इस कलाकारी से बहुत से लोगों को हैरत भी नहीं हुई। क्योंकि कोटेचा महाशय सेबी की निगरानी सूची में इस घोटाले से पहले से ही मौजूद थे।
उन पर आरोप था कि उन्होंने अटलांटा लि. और एसईएल मैन्यूफैक्चरिंग नाम की दो कंपनियों के शेयरों में भी कृत्रिम उतार-चढ़ाव पैदा किया था। दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों कंपनियों में भी घोटाले के तौर-तरीके कमोबेश वही थे, जो कि पिरामिड घोटाले में पाए गए।
सेबी की जांच में यह पाया गया कि कोटेचा ने पहले तो इन सभी कंपनियों के शेयर प्रवर्तकों से कौड़ी के भाव में खरीदे, उनके दामों में कृत्रिम उतार-चढ़ाव पैदा किया और फिर उनसे छुटकारा पा लिया। वैसे तो देखने में यह कुछ दकियानूसी और बोरिंग चालबाजी लगती है, जिसे भारतीय शेयर बाजार में आमतौर पर कई खिलाड़ी करते रहते हैं।
लेकिन कोटेचा की यह चाल बाकियों से अलग हो जाती है क्योंकि उसने इसे जिस अंदाज में अंजाम दिया, उसे देखकर तो उसके ‘गुरू’ हर्षद मेहता को भी फख्र होता। उसने 1993 में महज 16 साल की किशोरावस्था में ही शेयर बाजार में पैसे लगाने शुरू कर दिए थे और गौर करने वाली बात यह है कि यही वह वक्त था, जब हर्षद मेहता के घोटाले की परतें खुलने लगी थीं।
जैसे-जैसे घोटाले की परतें खुलने लगीं, उसके मुरीदों की बढती जमात में उस वक्त का किशोर कोटेचा भी शामिल होने लगा। जब तक मेहता के घोटाले पर से पूरा पर्दा उठा, कोटेचा शेयर बाजार में गहराई से उतर चुका था और कोची स्टॉक एक्सचेंज में महज 18 साल की उम्र में सब ब्रोकर का दर्जा भी पा चुका था।
कोटेचा ने अपनी पहली सबसे बड़ी कमाई 2000 में देश में आए तकनीकी बूम के दौर में की। उसके बाद वह मुंबई की मायानगरी की ओर निकल पड़ा। वहां पैर जमाते ही उसने कई कंपनियां खोलीं। स्काई फाइनैंशियल कंसल्टेंट और कोटेचा कैपिटल ऐसी ही दो कंपनियां थीं। जैसा कि सेबी को जांच में पता चला, वह अपने सौदों के लिए ढेरों बैंक खातों का भी इस्तेमाल कर रहा था।
इनमें उसके कई रिश्तेदारों के खाते भी शामिल थे। इन्हीं के जरिए वह न सिर्फ शेयर बाजार में खेल कर रहा था बल्कि विभिन्न स्तरों से पैसों का भी हेर-फेर करने में जुटा हुआ था। इसी वजह से सेबी ने भारतीय रिजर्व बैंक, वित्तीय सतर्कता शाखा और आयकर विभाग से अनुरोध किया है कि वे इस बात की भी जांच करें कि इस घोटाले में अवैध नकदी का लेन-देन किया गया है या नहीं।
वैसे तो उसे छोटी कंपनियों के आईपीओ से बड़ा माल कमाने वाले खिलाड़ी के तौर पर जाना जाता रहा है लेकिन उसने इस बार जो बेहद बड़ा जाल बिछाया, उसमें वह खुद ही फंस गया। पहले तो उसने सेबी के नाम से एक फर्जी पत्र लिखा, जिसमें सेबी के हवाले से पिरामिड के प्रवर्तकों को खुली पेशकश जारी करने का निर्देश था, फिर उसने और उसके सहयोगियों ने एक फर्जी कंपनी सेक्रेटरी खड़ा करके उन पत्रकारों को उसका फोन नंबर मुहैया कराया, जिन्हें सेबी के फर्जी पत्र की प्रतिलिपि भेजी गई थी।
जब पत्रकारों ने इस फर्जी शख्स से संपर्क किया तो उसने उन्हें इस बात का यकीन भी दिलाया कि पिरामिड को वाकई सेबी से इस बाबत पत्र हासिल हुआ है। जाहिर है, पत्र की बात बाजार में फैलते ही पिरामिड के शेयर उछल गए और कोटेचा ने महज तीन महीनों के भीतर अपनी 24 फीसदी हिस्सेदारी को घटाकर 0.24 फीसदी पर पहुंचाया और मोटी रकम कमा ली।
