देश की तीन प्रमुख दूरसंचार कंपनियों ने मिड बैंड 3300-3670 में 5जी नीलामी के लिए आधार कीमत 90 से 95 फीसदी तक घटाने को कहा है। इस क्षेत्र के नियामक ने पहले देश भर में स्पेक्ट्रम के लिए 492 करोड़ रुपये प्रति मेगाहट्र्ज कीमत की सिफारिश की थी, जिसे दूरसंचार कंपनियों ने बहुत अधिक बताया। उन्होंने कहा है कि इतनी ऊंची कीमत से 5जी सेवाएं व्यवहार्य नहीं होंगी।
दूरसंचार कंपनियों- रिलायंस जियो भारती एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और उनके संघ सीओएआई ने यह भी कहा कि अहम मिलीमीटर बैंड (24.25 गीगाहट्र्ज-28.5 गीगाहट्र्ज) के लिए आधार कीमत मिड बैंड स्पेक्ट्रम की केवल 1-2 फीसदी होनी चाहिए। यह बैंड 5जी में हाई स्पीड और लगभग शून्य लेटेंसी सुनिश्चित करने के लिए अहम है। यही 5जी और 4जी में अंतर है।
दूरसंचार कंपनियों ने कल रात निर्धारित तिथि के आखिरी दिन ट्राई को अलग से अपने प्रस्ताव सौंपे। ट्राई को आगामी 5जी नीलामी के लिए मिड बैंड में अपनी ऊंची आधार कीमत पर पुनर्विचार करने और मिलिमीटर बैंड के लिए आधार कीमत तय करने पर अपनी सिफारिशें देने को कहा गया है। ट्राई के मार्च में सिफारिशें देने के आसार हैं।
तीनों ऑपरेटरों में नीलामी के स्पेक्ट्रम के भुगतान की योजना पर भी मामूली अंतर के साथ लगभग सहमति है।
भारती ने वोडाफोन आइडिया की तरह नीलामी के लिए कोई अग्रिम भुगतान नहीं होने और भुगतान पर छह साल के स्थगन की सिफारिश की है। यह चाहती है कि स्पेक्ट्रम किस्त पर कोई ब्याज नहीं वसूला जाए, जबकि वीआईएल ने कहा है कि आरबीआई रीपो दर पर ब्याज वसूला जाए। भारती ने 24 साल की सालाना किस्त योजना की सिफारिश की है, जबकि वीआईएल ने 20 साल की सिफारिश की है। रिलायंस जियो 10 फीसदी अग्रिम भुगतान करने को तैयार है। यह 5 साल का स्थगन चाहती है, लेकिन शेष राशि का 25 वर्षों में भुगतान करना चाहती है। इसका मानना है कि ईएमआई का भुगतान 4 फीसदी आरबीआई रीपो दर पर होना चाहिए।
रिलायंस जियो ने 28.5 गीगाहट्र्ज से 29.5 गीगाहट्र्ज के मिलिमीटर बैंड में अतिरिक्त 1 गीगाहटर्ज बैंड दूरसंचार कंपनियों के लिए आरक्षित करने और इसे सैटेलाइट ब्रॉडबैंड कंपनियों को नहीं देने के अपने पूववर्ती रुख में बदलाव किया है। इसने अब सुझाव दिया है कि पूरा 1गीगाहट्र्ज टेरेस्ट्रियल और उपग्रह नेटवर्र्कों के लिए टीएसपी द्वारा मिश्रित उपयोग की खातिर नीलामी के जरिये आवंटित किया जाए। इसने सुझाव दिया है कि खरीदार को किसी भी जगह सैटेलाइट कंपनियों के गेटवे परिचालन के लिए 1गीगाहट्र्ज के हिस्से को उप-पट्टे पर देने की मंजूरी दी जाए। हालांकि 1गीगाहट्र्ज को आरंक्षित करने के कदम का संभावित उपग्रह ऑपरेटरों ने विरोध किया है। इन ऑपरेटरों में सुनील मित्तल की वन वेब भी शामिल है, जो सरकार से कह रही है कि यह नॉमिनल दर पर प्रशासित कीमत पर मुहैया कराया जाए।
जियो की एयरटेल जैसी अन्य दूरसंचार कंपनियों से इस मुद्दे पर भी मतभेद है कि स्पेक्ट्रम सीमा कितनी होनी चाहिए, जो 35 फीसदी अनुमानित है। कंपनी ने कहा है कि तीन कंपनियों की मौजूदगी वाले बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए 35 फीसदी की सीमा उपयुक्त नहीं है और इसे 50 फीसदी किया जाए। दूरसंचार कंपनियों ने इस बात पर भी सहमति जताई है कि ई बैंड स्पेक्ट्रम अनिवार्य रूप से मिड बैंड स्पेक्ट्रम के साथ दिया जाए और इसकी नीलामी में पेशकश हो।
