भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने कहा है कि डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) सेवा के लिए पे-चैनल बुके की दर निश्चित की जा सकती है।
जैसा कि दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में जहां कंडिशनल एक्सेस सिस्टम (कैस) लागू है, हर एक पे चैनल के लिए 5 रुपये प्रतिमाह की दर से शुल्क लिया जाता है। इस सिलसिले में पे-चैनल के प्रसारणकर्ताओं और ट्राई के बीच बैठक आज से शुरू हो गई है।
डीटीएच ग्राहकों के लिए इसका मतलब होगा कि उन्हें कम शुल्क देना पड़ेगा। वहीं प्रसारणकर्ताओं के ऊपर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि डीटीएच कंपनियां उन्हें कम शुल्क देंगी। इस नियम का सबसे ज्यादा लाभ डीटीएच सेवा के क्षेत्र में प्रवेश करने वाली नई कंपनियों को मिलेगा। इसमें रिलायंस एडीए ग्रुप की बिग टीवी, भारती, सन डायरेक्ट, और वीडियोकॉन शामिल हैं।
उन्हें डीटीएच सेवाओं के लिए कम शुल्क का भुगतान करना पड़ेगा। वर्तमान में डीटीएच सेवाएं प्रदान कर रही कंपनियां जैसे डिश टीवी और टाटा स्काई के लिए प्रसारणकर्ताओं की फीस कुछ समय के लिए समझौतों के मुताबिक यथावत बनी रहेगी। इनके समझौते सामान्यत: 3 से 5 साल के लिए हैं।
नियामक दूरसंचार सेवा प्रदाताओं पर लागू नियमों की ही तरह की नीति अपनाने पर विचार कर रहा है जिससे शुल्क में बढ़ोतरी को नियंत्रण में रखा जा सके। बहरहाल इस समय संचार सेवा में ऑपरेटर ही शुल्क की दरें तय करते हैं। वर्तमान में ईएसपीएन, स्टार इंडिया, जी समूह, सन नेटवर्क अन्य पे चैनलों की तुलना में जिन इलाकों में कैस लागू है उन्हें छोड़कर केबल ऑपरेटरों की अपेक्षा डीटीएच सेवा में अधिक शुल्क वसूलते हैं।
कुल मिलाकर पूरे देश में 7.6 करोड़ घरों में केबल सेवा है जबकि केवल 50 लाख लोगों ने डीटीएच सेवाएं ले रखी है। ट्राई ने पहले ही डीटीएच सेवाओं के लिए प्राइसिंग का सुझाव दिया है। इस फार्मूले के मुताबिक पे-चैनलों के प्रसारणकर्ता, जिन क्षेत्रों में कैस लागू नहीं है (करीब 7 करोड़ उपभोक्ता) उन क्षेत्रों के केबल आपरेटरों से बुके के लिए जो शुल्क लेते हैं, उसका आधा डीटीएच सेवा प्रदाताओं से वसूल करेंगे।
उद्योग जगत से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सन नेटवर्क, स्टार इंडिया, जी, ईएसपीएन-स्टार स्पोर्टस और सोनी-वन एलायंस जैसे प्रसारणकर्ता हर इलाके में 55 से 115 प्रतिशत बढ़ाकर कंटेट का पैसा डीटीएच कंपनियों से लेते हैं।
एक प्रसारणकर्ता समूह से जुड़े सूत्र ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘ट्राई ने हमसे कहा है कि डीटीएच के लिए बुके की कीमतें सुझाव दिए गए फार्मूले के मुताबिक कम करें अन्यथा बुके के शुल्क के लिए बाध्यकारी नियम बनाए जाएंगे।’
लेकिन सूत्रों ने कहा कि कुछ आला प्रसारणकर्ताओं के पास ढेर सारे पे चैनल्स हैं, जो इस नियम का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रसारण का स्तर बरकरार रखने के लिए उन्हें अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है। अगर नियामक डीटीएच के लिए कोई बाध्यकारी शुल्क लागू करता है तो वे न्यायालय की शरण में जा सकते हैं।