किशोर पाटिल, नैसकॉम की ईआरऐंडडी परिषद के चेयरमैन
नैसकॉम की ईआरऐंडडी परिषद के चेयरमैन किशोर पाटिल का कहना है कि भारत का इंजीनियरिंग शोध एवं विकास (ER&D) क्षेत्र इस दशक के अंत तक करीब 100 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है, जो पिछले वित्त वर्ष तक 56 अरब डॉलर था। यह क्षेत्र भारत के प्रौद्योगिकी उद्योग में सबसे तेजी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में से एक रहा है, जिसमें सालाना आधार पर 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें ऑटोमोटिव, सेमीकंडक्टर, औद्योगिक, ऊर्जा एवं यूटिलिटीज, दूरसंचार, हेल्थकेयर, लाइफ साइंसेज और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं।
तुलनात्मक रूप से सबसे बड़ा उद्योग आईटी कमजोर वृहद आर्थिक परिवेश के कारण लगभग 4 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। कमजोर वृहद आर्थिक परिदृश्य की वजह से ग्राहकों के खर्च पर असर पड़ा है।
पाटिल केपीआईटी टेक्नोलॉजीज के मुख्य कार्याधिकारी भी हैं। उन्होंने पिछले सप्ताह नैसकॉम के एक कार्यक्रम से इतर बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अगर आप गणना करें तो तार्किक रूप से यह वृद्धि दर समान प्रतिशत के अनुरूप नहीं है। लेकिन अगले पांच वर्षों में सभी क्षेत्रों में ईआरऐंडडी पर कुल खर्च 10 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ने की उम्मीद है। बस फर्क इतना है कि आंकड़ों को देखकर उत्साहित न हों। ये नए क्षेत्र और प्रौद्योगिकियां हैं और बिजनेस मॉडल और प्रतिस्पर्धा बहुत अलग हैं।’
उन्होंने कहा कि वृद्धि की रफ्तार बढ़ाने के लिए कुछ बदलाव लाने की जरूरत होगी। पहला है एआई का औद्योगिक इस्तेमाल, जो अभी भी निवेशकों की उम्मीदों से कम है।
उन्होंने कहा, ‘एआई को अपनाने के मामले में ज्यादातर कंपनियां उत्पादन कार्यक्रम में पीछे हैं। इसमें और प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट (पीओसी) में अंतर है। हमें उत्पादन और एम्बेडेड इंजीनियरिंग में उस टेक्नोलॉजी की अधिक आवश्यकता है। यदि हम प्रोडक्टाइजेशन, प्लेटफॉर्म-प्ले और समाधान-उन्मुख दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करें, तो वह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।’
साथ ही, उद्यमों, स्टार्टअप्स और डीप-टेक कंपनियों का एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाए जाने की भी जरूरत है, जो कैलिफोर्निया और चीन में उपलब्ध है, जहां कंपनियां एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करती हैं। भारत के वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) भी इसमें भूमिका निभा सकते हैं, क्योंकि इनमें से कई हाई-वैल्यू सेवाओं में लगे हुए हैं।
यूरोप भारतीय ईआरऐंडडी कंपनियों के लिए एक पसंदीदा क्षेत्र बन गया है क्योंकि इस क्षेत्र के वाहन निर्माता चीनी प्रतिद्वंद्वियों से मिल रही प्रतिस्पर्धा को भांप रहे हैं। चीनी प्रतिस्पर्धियों ने बाजार में सस्ती लेकिन ज्यादा उन्नत तकनीक वाली कारों की बाढ़ ला दी है। भारतीय कंपनियां भी यूरोप में विस्तार की योजना बना रही हैं।
टाटा टेक्नोलॉजीज ने हाल में दुनिया के प्रमुख ऑटोमोबाइल बाजारों में से एक में अपनी उपस्थिति बढ़ाने और ग्राहक आधार में विविधता लाने के लिए जर्मनी की ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग सेवा प्रदाता ईएस-टेक को 7.5 करोड़ यूरो में खरीदा है। इसके अलावा, जेनरेटिव एआई (जेन एआई) भी इस क्षेत्र में तेजी से बदलाव ला रही है, जिससे इंटेलीजेंस ऑटोमेशन, एक्सलरेटेड इनोवेशन और क्रॉस-फंक्शनल कॉलेबरेशन जैसे क्षेत्रों में एक नया युग शुरू हो रहा है।