भाऱत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर बढ़े गतिरोध के बीच हजारों सोशल मीडिया पोस्ट लिखे जाने, मोबाइल फोन फैक्टरियों के गेट के बाहर नाराज होकर विरोध प्रदर्शन करने और चीनी स्मार्टफोन के विज्ञापनों वाले बिलबोर्ड को तोडऩे के बावजूद देश के प्रमुख हैंडसेट ब्रांडों में चीन के स्मार्टफोन ब्रांड का दबदबा कायम है। सभी तरफ से हमले बढऩे, आपूर्ति शृंखला में बाधा तथा स्थानीय उपभोक्ताओं के बीच नकारात्मक धारणा बढऩे के बावजूद इस साल अप्रैल-जून की तिमाही में चीन के प्रमुख स्मार्टफोन ब्रांडों की बाजार हिस्सेदारी बढ़ी है।
सलाहकार सेवा कंपनी इंटरनैशनल डेटा कॉरपोरेशन (आईडीसी) के आंकड़ों के मुताबिक, स्थानीय बाजार में शीर्ष पांच स्मार्टफोन ब्रांडों में से चार ब्रांड चीन के हैं और उनकी कुल बाजार हिस्सेदारी अप्रैल-जून की तिमाही के दौरान बढ़कर 66.4 फीसदी हो गई जो पिछले साल की इसी तिमाही में 60.9 फीसदी थी। 2017 के मध्य से ही श्याओमी बाजार की प्रमुख कंपनी है और 29.4 फीसदी हिस्सेदारी के साथ यह पहले पायदान पर है। अन्य तीन कंपनियों में विवो (17.5 फीसदी), रियलमी (9.8 फीसदी) और ओप्पो (9.7 फीसदी) क्रमश: तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर है।
भारत में शीर्ष चार चीन के ब्रांडों की कुल बाजार हिस्सेदारी इससे पिछली तिमाही के मुकाबले घट गई जो जनवरी-मार्च में 75 फीसदी थी। इसके साथ ही भारत में एक साथ सभी चीनी ब्रांडों की कुल हिस्सेदारी अप्रैल-जून में कम होकर 72 फीसदी हो गई जो इससे पिछली तिमाही में 81 फीसदी रह गई थी। हालांकि विश्लेषकों को अभी इसमें ज्यादा खतरा नहीं दिख रहा है। वे कहते हैं कि बाजार हिस्सेदारी में गिरावट का ताल्लुक चीन के खिलाफ हुई बयानबाजी के बजाय मांग को पूरा करने में अक्षमता का ज्यादा योगदान है।
आईडीसी इंडिया के शोध निदेशक नवकेंदर सिंह के मुताबिक ऐसे कोई विश्वसनीय विकल्प नहीं हैं जो स्थानीय बाजार में चीनी स्मार्टफोन ब्रांडों की जगह ले सकें। ये ब्रांड किफायती कीमतों पर बेहतर पेशकश कर रहे हैं और पिछले चार सालों में इनके ब्रांडों का व्यापक वितरण नेटवर्क तैयार हुआ है और लाखों ग्राहक संतुष्ट हैं। इन्हीं वजहों से ये ब्रांड इतनी मजबूती से अपनी जगह बना चुके हैं कि छोटे झटकों से ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।
काउंटरप्वाइंट रिसर्च की शोध विश्लेषक शिल्पी जैन ने कहा कि कुल हिस्सेदारी में गिरावट की वजह कई कारक और ओप्पो, विवो तथा रियलमी जैसे कुछ प्रमुख चीनी ब्रांडों की आपूर्ति में बाधा का नतीजा था। वह कहती हैं, ‘स्थानीय स्तर पर होने वाला निर्माण, अनुसंधान और विकास की प्रक्रिया, कीमतों की आकर्षक किफायती पेशकश और चीन के ब्रांडों के मजबूत चैनल की वजह से उपभोक्ताओं के पास कम ही विकल्प बच गए। इसके अलावा, वैश्वीकरण के इस दौर में यह बताना बेहद मुश्किल है कि कोई उत्पाद पूरी तरह से किस देश का है क्योंकि उसके कई कलपुर्जे विभिन्न देशों से मंगाए जाते हैं।’ दरअसल, तिमाही के दौरान शीर्ष पांच में से चार मॉडल श्याओमी के थे मसलन रेडमी नोट 8 ए ड्यूअल, नोट 8, नोट 9 प्रो और रेडमी 8। इस तिमाही के दौरान आयात किए गए कुल स्मार्टफोन में से इनकी हिस्सेदारी 21.8 फीसदी तक थी। आईडीसी ने कहा कि इसकी फैक्टरी के बंद होने से स्टॉक की बड़ी कमी रही और ओप्पो ने अपनी पोजिशन को मजबूत बनाए रखा।
उद्योग के लोगों का कहना है कि अप्रैल के बाद से ही आपूर्ति में बाधा की वजह से प्राथमिक स्तर पर नुकसान पहुंचा। श्याओमी इंडिया के एक प्रवक्ता का कहना है, ‘यह साल चुनौतीपूर्ण रहा है और मई के बाद से पूरी आपूर्ति शृंखला में बाधा की स्थिति बनी रही है। हालांकि, हम अपने आपूर्तिकर्ताओं और फैक्टरियों के साथ कड़ी मेहनत करना जारी रख रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हम इस दिवाली मी फोन के अपने उपयोगकर्ताओं और प्रशंसकों के लिए पर्याप्त मात्रा में स्मार्टफोन मुहैया करा सकें।’
श्याओमी इंडिया के मुख्य कारोबार अधिकारी रघु रेड्डी के मुताबिक जुलाई से बाजार की स्थिति में सुधार हो रहा है। वह कहते हैं, ‘हम सभी चैनलों में इस वृद्धि को देख रहे हैं। पिछले महीने से ही आपूर्ति की स्थिति में सुधार जारी है और मई तथा जून में मांग की पूर्ति नहीं होने की वजह से भी आंकड़े बेहतर हुए हैं।’
प्रमुख चीनी ब्रांड मसलन ओप्पो और वन प्लस से जुड़े अधिकारी और चैनल अधिकारी रेड्डी से सहमत हैं। इन दिनों घर से काम करना और ऑनलाइन पढ़ाई का रुझान बढ़ा है ऐसे में ग्राहक अब पहले के मुकाबले स्मार्ट उपकरणों पर ज्यादा निर्भर हैं। इसकी वजह से 12,000 रुपये से कम के स्मार्टफोन की बिक्री बढ़ गई है। रेड्डी कहते हैं, ‘सभी बाजारों के धीरे-धीरे खुलने की वजह से श्याओमी के 15,000-20,000 के दायरे वाले फोन और महंगे फोन की ज्यादा मांग बढ़ी है।’
वास्तव में सड़कों और सोशल मीडिया मंचों पर विरोध के बावजूद सभी प्रमुख ब्रांडों ने इस अवधि के दौरान लगभग आधा दर्जन नए मॉडल लॉन्च किए। ज्यादातर कंपनियां और उद्योग पर नजर रखने वालों का मानना है कि बुरा दौर पीछे छूट चुका है। टेकआर्क में प्रमुख विश्लेषक फैसल कावूसा के अनुसार इन विरोध प्रदर्शनों का प्रभाव लंबे समय तक कभी नहीं हो सकता है।
इसके अलावा चीनी कंपनियों ने इस संकट के दौरान जो त्वरित प्रतिक्रिया दी उससे भी उन्हें नुकसान को नियंत्रित करने में मदद मिली है। ग्रेटर नोएडा में ओप्पो के संयंत्र के गेट पर विरोध प्रदर्शन होने के बाद सभी प्रमुख कंपनियों ने काम को स्थगित कर दिया गया। सोशल और डिजिटल मीडिया अभियान टीमों से लेकर संचार विशेषज्ञों से जुड़े सभी उपयोगी संसाधनों को सतर्क किया गया और सभी पोस्ट या अभियान पर नजर रखी गई क्योंकि ताकि संकट बढऩे की स्थिति का जायजा लिया जा सके।
उन्होंने खुद ही एक जागरुकता अभियान की शुरुआत की। खुदरा साझेदारों से लेकर फैक्टरी के कर्मचारियों तक श्याओमी, विवो, वनप्लस और रियलमी जैसे ब्रांडों ने विभिन्न हितधारकों को इससे जोड़ा। चीन की एक प्रमुख कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘विचार यह संदेश देने का था कि हम चीन के मुकाबले भारतीय कंपनी अधिक हैं। हमारे 90 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी और 100 फीसदी खुदरा विक्रेता भारतीय हैं। हमारे अधिकांश सोर्सिंग साझेदार भारत से हैं और हमने निर्माण के साथ-साथ अनुसंधान और विकास के केंद्र तैयार करने के लिए भारत में अहम निवेश किया है।’
हरीश बिजूर कंसल्ट्स के संस्थापक और ब्रांड सलाहकार हरीश बिजूर के मुताबिक चीन के ब्रांडों ने ठहरकर इंतजार करने की रणनीति अपनाई है। वह कहते हैं, ‘स्मार्टफोन जैसी श्रेणियों में विकल्पों की कमी को देखते हुए ये कंपनियां इस तरह के हमले से अछूती रहेंगी।’
