आप मानें या न मानें मगर इस साल अक्टूबर में जितनी संख्या में ऐप डाउनलोड हुए, उससे आधी संख्या में ऐप इंस्टॉलेशन से जुड़ी धोखाधड़ी दर्ज की गई। जब देश में सेल का सीजन अपने चरम पर था तब ई-कॉमर्स से जुड़े ऐप को इंस्टॉल करने वाले धोखाधड़ी के खूब शिकार हुए। भारत में स्थित वैश्विक डिजिटल विज्ञापन एवं धोखाधड़ी पहचान तथा सुरक्षा कंपनी एमफिल्टरइट के अध्ययन से यह पता चलता है। यह कंपनी देश में 50 फीसदी से ज्यादा ई-कॉमर्स ग्राहकों वाली साइटों का काम संभालती है। इनमें बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां हैं।
ऐप इंस्टॉल धोखाधड़ी का हिस्सा अक्टूबर में बढ़कर 51 फीसदी पर पहुंच गया। इनमें फर्जी इंस्टॉल के लिए सस्ते मानव श्रम या स्वचालित टूल का इस्तेमाल किया जाता है और इंस्टॉल किए गए ऐप का कभी इस्तेमाल ही नहीं होता। अप्रैल से 14 नवंबर के बीच इंस्टॉल धोखाधड़ी का औसत 47 फीसदी रहा।
इतना ही नहीं जिन धोखाधड़ी में किसी ऐप को खोला जाता है और कुछ उत्पादों को कार्ट में रखा या हटाया जाता है मगर लेनदेन नहीं होता, उनकी हिस्सेदारी भी अक्टूबर में सभी डाउनलोड में 63 फीसदी हो गई। इसका औसत 56 फीसदी है। इन आकंड़ों का कारोबार पर बुरा असर पड़ रहा है क्योंकि ऐप डाउनलोड की संख्या को (सक्रिय उपयोगकर्ताओं के अलावा) किसी स्टार्टअप के मूल्यांकन एवं निवेश का एक मानदंड माना जाता है। इसमें संलिप्त धोखेबाजों को विज्ञापनदाताओं से अच्छी खासी आमदनी होती है।
स्थापित ई-कॉमर्स कंपनियां मुख्य सीजन में प्रदर्शन विपणन के लिए अपने विज्ञापन और बिक्री बजट को बढ़ाकर भारी धनराशि खर्च करते हैं। यह खर्च बेकार जाता है क्योंकि इससे वास्तविक ग्राहक नहीं आते हैं।
एमफिल्टरइट के सह-संस्थापक अनिल रेलन ने रुझान के बारे में कहा, ‘त्योहारी सीजन के दौरान कोई ब्रांड एक सीमित अवधि में करीब 45 फीसदी विज्ञापन बजट खर्च करता है ताकि साल की 50 फीसदी से ज्यादा बिक्री की जा सके। इस दौरान गलती में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। ब्रांडों को विज्ञापन खर्च के सदुपयोग और ब्रांड सुरक्षा के बीच एक संतुलन साधना होता है ताकि वह खुद को डिजिटल तंत्र को प्रभावित करने वाले खराब क्रियाकलापों से बचा सके।’
विज्ञापन धोखाधड़ी केवल ऐप और उनकी संख्या एवं इस्तेमाल तक सीमित नहीं है। एमफिल्टरइट का कहना है कि वर्ष 2021 में देश में डिजिटल विज्ञापन खर्च 28,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। मगर इसमें से 12 से 13 फीसदी डिजिटल विज्ञापन खर्च बेकार चला जाएगा क्योंकि यह बॉट, डोमेन स्पूफिंग (साइबर धोखाधड़ी के चलते विज्ञापनदाताओं को नकल कर बनाई गई वेबसाइट पर विज्ञापनों के लिए ज्यादा पैसा चुकाना पड़ सकता है), क्लिक इंजेक्शन (विज्ञापन क्लिक सृजित करने के लिए डिवाइस में मालवेयर डाल दिया जाता है) द्वारा सजित किया जाता है। उदाहरण के लिए एमफिल्टरइट के मुताबिक 2021 मेें विज्ञापनदाताओं द्वारा सोशल मीडिया पर खर्च कुल विज्ञापन खर्च का 15 फीसदी बरबाद चला गया। हालांकि इस साल 28,000 करोड़ रुपये के डिजिटल विज्ञापन में सोशल मीडिया का हिस्सा 29 फीसदी है।
