प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
भारत में छोटे उपग्रहों के बाजार को सशक्त करते हुए सरकार ने आज ऐलान किया कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) की तकनीक को सार्वजनिक क्षेत्र की एरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र की प्रमुख कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को हस्तांतरित करेगा। प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के जरिये 511 करोड़ रुपये के सौदे में ऐसा किया जा रहा है।
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के चेयरमैन पवन गोयनका ने कहा कि उम्मीद है कि अग्निकुल कॉसमॉस और स्काईरूट एयरोस्पेस जैसी कंपनियों के प्रक्षेपण वाहनों के साथ एचएएल कुछ वर्षों में भारत से हर दो सप्ताह में लगभग तीन रॉकेट लॉन्च करेगी। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हो रहा है, जब एचएएल एलऐंडटी के सहयोग से जल्द ही ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के उत्पादन से जुड़ी हुई है।
यह पहली बार है, जब उद्योग पर एसएसएलवी रॉकेट को शुरू से आखिर तक बनाने का जिम्मा दिया गया है। एसएसएलवी के लिए बोली की इस प्रक्रिया में पात्रता और मूल्यांकन का सख्त ढांचा शामिल था। सावधानीपूर्वक जांच के बाद तकनीकी रूप से योग्य तीन बोलीदाताओं – बेंगलूरु की अल्फा डिजाइन टेक्नॉलजीज लिमिटेड (अग्निकुल कॉसमॉस और वालचंद इंडस्ट्रीज लिमिटेड वाले कंसोर्टियम की नेतृत्वकर्ता कंपनी), हैदराबाद की भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (स्काईरूट एयरोस्पेस, केलट्रॉन और बीएचईएल वाले कंसोर्टियम की नेतृत्वकर्ता) और एचएएल को छांटा गया था।
गोयनका ने कहा, ‘चूंकि भारत साल 2033 के लिए निर्धारित 44 अरब डॉलर की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने की उम्मीद कर रहा है। इसलिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी का दमदार प्रारूप सक्षम करना अनिवार्य है। एसएसएलवी प्रौद्योगिकी का यह हस्तांतरण भारत के परिवर्तनकारी वाणिज्यिक अंतरिक्ष खंड के लिए बेहद अहम क्षण है, क्योंकि यह किसी अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा किसी कंपनी को संपूर्ण प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का पहला उदाहरण है। इस प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते के तहत एचएएल के पास स्वतंत्र रूप से एसएसएलवी प्रक्षेपणों के लिए निर्माण, स्वामित्व और व्यावसायीकरण की क्षमता होगी।’
इस प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते पर एचएएल, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल), इसरो और इन-स्पेस के बीच करार किया जाएगा। समझौते में अगले दो वर्षों में दो एसएसएलवी को पूरा करने और उनका प्रक्षेपण करने के लिए इसरो तथा एचएएल दोनों की ही इकाइयों में इसरो की टीमों द्वारा एचएएल कर्मियों को व्यापक प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करना शामिल है।