उद्योग

ऑटो क्षेत्र में महिलाएं: वेतन कम, चोट का खतरा अधिक

चोटों के साथ वेतन में भारी विसंगति की चुनौती से भी जूझ रहीं ऑटो क्षेत्र से जुड़ीं महिलाएं

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शिखा चतुर्वेदी   
Last Updated- January 02, 2025 | 10:35 PM IST

पिछले पांच वर्षों के दौरान ऑटो क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं को चोट लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। सबसे ज्यादा मामले काम के दौरान उंगलियां कटने या दबाव पड़ने पर उनके पंजे से अलग होने के सामने आए हैं। सेफ इन इंडिया फाउंडेशन (एसआईआईएफ) की हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में केवल 19 महिलाओं के साथ ऐसे हादसे हुए थे, वहीं 2024 में इनकी संख्या कई गुना बढ़कर 321 दर्ज की गई। यही नहीं, इस अवधि में अन्य प्रकार की चोटों में 8 से बढ़कर 126 तक की वृद्धि हुई है। यह फाउंडेशन ऑटो सेक्टर के कर्मचारियों पर पिछले छह साल से अध्ययन रिपोर्ट जारी कर रही है।

‘क्रश इंजरीज’ नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि अधिकांश महिलाएं पावर प्रेस जैसी खतरनाक मशीनरी को चलाने के दौरान घायल और विकलांग हो रही हैं। सुरक्षा चिंताओं के अलावा यहां कार्यरत महिलाओं के समक्ष दूसरी चुनौती आर्थिक असमानता की है। ऑपरेटर और हेल्पर जैसे पदों पर कार्यरत बड़ी संख्या में महिलाओं को 9,000 रुपये प्रति माह से कम मेहनताना मिलता है। पुरुषों के मुकाबले यह बहुत कम है। पुरुष और महिला दोनों तरह के कर्मचारियों को 10,001 से 15,000 रुपये प्रति माह तनख्वाह मिलती है। इस क्षेत्र में 42 प्रतिशत महिलाएं और 58 प्रतिशत पुरुष ऑपरेटर के तौर पर कार्य करते हैं जबकि 30 महिलाएं और 44 प्रतिशत पुरुष हेल्पर हैं।

दोनों तरह के पदों पर महिलाओं और पुरुषों के वेतन में अंतर है। ऑपरेटर के पद पर कार्यरत 18 प्रतिशत महिलाओं का वेतन 8,001 से 9,000 रुपये के बीच है जबकि केवल 7 पुरुष ही इस दायरे में वेतन पाते हैं। इसी प्रकार हेल्पर के मामले में 29 प्रतिशत महिलाओं को 8,001 से 9,000 रुपये के बीच वेतन मिलता है जबकि इसी पद पर इतना वेतन पाने वाले पुरुषों का आंकड़ा 20 प्रतिशत है। यही नहीं, हेल्पर और ऑपरेटर पदों पर 8000 रुपये से कम वेतन पाने वालों में भी महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले बहुत अधिक है।

वेतन में यह विसंगति उस लिहाज से बहुत मायने रखती है जब गंभीर चोट के मामले सीधे आय के स्तर से जुड़े हैं। रिपोर्ट में पता चला है कि कम वेतन वाले, अकुशल और कम पढ़े-लिखे कर्मचारी उन कर्मचारियों के मुकाबले अधिक चोटों का शिकार होते हैं, जो अधिक पढ़े-लिखे, कुशल और अच्छा वेतन पाते हैं।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि जिन कर्मचारियों को 8,000 रुपये या इससे कम मिलते हैं, उनकी उंगलियां कटने का औसत 2.27 है जबकि 20,000 रुपये से अधिक वेतन वाले कर्मचारियों में इस तरह की चोट का औसत 1.54 है। जो कर्मचारी केवल पांचवीं तक पढ़े हैं, उनकी औसतन 2.23 उंगलियां काम के दौरान कटीं जबकि डिप्लोमाधारी कर्मियों का औसत 1.72 उंगली पाया गया है।

First Published : January 2, 2025 | 10:35 PM IST