उद्योग

Prepack scheme: MSME की कम दिलचस्पी और वसूली से प्रीपैक योजना में सुस्ती

सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (MSME) की सीमित दिलचस्पी और सामान्य कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया के मुकाबले कम वसूली के कारण इसमें तेजी नहीं आई है।

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रुचिका चित्रवंशी   
Last Updated- May 27, 2024 | 6:07 AM IST

Prepackaged insolvency resolution: प्रीपैकेज्ड दिवालिया समाधान प्रक्रिया के शुरू होने के तीन साल बाद भी इसकी रफ्तार सुस्त बनी हुई है। सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (MSME) की सीमित दिलचस्पी और सामान्य कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया के मुकाबले कम वसूली के कारण इसमें तेजी नहीं आई है। एमएसएमई को दिवालिया होने से बचाने के लिए कोविड वै​श्विक महामारी के दौरान प्रीपैक योजना शुरू की गई थी। प्रीपैक समाधान एक फास्ट ट्रैक प्रक्रिया है जो राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट की प्रक्रिया शुरू होने से पहले मामले का समाधान करती है।

आईबीसी विशेषज्ञों के अनुसार, पर्याप्त प्रचार न होने, जागरूकता का अभाव और अपेक्षा से अधिक औपचारिक ढांचे के कारण इसके अधिक खरीदार नहीं मिल पाए। दिल्ली की नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और आईबीबीआई के पूर्व प्रमुख एमएस साहू ने कहा, ‘हमने प्रीपैक प्रक्रिया को शुरू करने के लिए लेनदारों और शेयरधारकों से मंजूरी की बेवजह सीमा निर्धारित करते हुए इस क्रिया के अनौपचारिक हिस्से को सख्त बना दिया। प्रीपैक से संबंधित वैधानिक प्रावधानों को अनौपचारिक प्रक्रिया माना जाता है। इसे कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया के मामले में काफी लंबा खींच दिया गया है।’

IBBI के आंकड़ों के अनुसार, प्रीपैकेज्ड दिवालिया योजना के तहत महज 10 आवेदन प्राप्त हुए हैं। इनमें से आधे को लेनदारों के दावों के मुकाबले करीब 25 फीसदी वसूली के साथ सफलतापूर्वक निपटाया गया है। ऐसा लगता है कि सीआईआरपी के मुकाबले आपसी सहमति वाले फास्टट्रैक मॉडल वाली प्रीपैक प्रणाली के तहत लेनदारों को अपेक्षाकृत अ​धिक वसूली होनी चाहिए। सीआईआरपी के तहत बड़ी तादाद में विवादित दावे होने के बावजूद लेनदारों के लिए वसूली करीब 32 फीसदी रही है।

शुरुआती दिनों में हितधारकों के साथ व्यापक तालमेल ने कॉरर्पोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद की। उद्योग विशेषज्ञों का मानना ​​है कि प्रीपैक प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए भी उसी तरह के तालमेल की जरूरत है।

साहू ने कहा कि फिलहाल प्रीपैक एमएसएमई के लिए उपलब्ध है। यह प्रकिया आईबीसी की जटिलताओं को नहीं समझती है, जबकि लेनदारों के लिए कोई ऐसा प्रोत्साहन नहीं है जिससे वह प्रीपैक को आगे बढ़ा सकें।

अब तक दायर किए गए 10 आवेदनों में से केवल एक को वापस लिया गया है, जबकि 5 आवेदनों को सफलतापूर्वक निपटा दिया गया है। फिलहाल महज 4 पीपी-आईआरपी की प्रक्रिया जारी है। ये सभी 6 महीने से भी कम पुराने हैं।

लक्ष्मीकुमारन ऐंड श्रीधरन अटॉर्नीज के पार्टनर योगेंद्र अल्डक ने कहा, ‘जागरूकता सबसे महत्त्वपूर्ण है। कई कंपनियों और वित्तीय ऋणदाताओं को अब तक प्रीपैकेज्ड दिवालिया प्रक्रिया के ढांचे और प्रावधानों के बारे में जानकारी नहीं है। इसकी अनिवार्य प्रक्रिया में कुछ बदलाव भी इसे अधिक व्यवहार्य विकल्प बना सकते हैं।’

सरकार ने 4 अप्रैल, 2021 को एक अध्यादेश जारी करते हुए सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों के लिए प्रीपैकेज्ड समाधान प्रक्रिया उपलब्ध कराने के लिए दिवालिया कानून में संशोधन किया था।

इंडिया लॉ एलएलपी के एसोसिएट पार्टनर यश वर्धन ने कहा, ‘पीपीआईआरपी के फायदे के बारे में जागरूकता न होने के कारण पीआरआईपी को पूरी क्षमता के साथ लागू नहीं किया जा सका है। अ​धिकतर मामलों में अगर एमएसएमई डिफॉल्ट करता है तो ऋणदाता समाधान के बजाय वसूली पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसलिए समाधान की गुंजाइश धूमिल हो जाती है।’ आईबीसी के विशेषज्ञों का मानना ​​है कि बाजार में फिलहाल झिझक दिख रही है और वह प्रीपैकेज्ड दिवाला प्रक्रिया को अपनाने से पहले उस पर नजर रख रहा है।

डेलॉयट इंडिया के पार्टनर (कॉरपोरेट फाइनैंस एवं रिस्ट्रक्चरिंग लीडर) सुमित खन्ना ने कहा, ‘प्रक्रिया एवं कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं को तत्काल निपटाने की जरूरत है। अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो सभी तरह की कंपनियों तक प्रीपैक के विस्तार में खास दिलचस्पी नहीं होगी।’

विशेषज्ञ इसमें कई बदलावों का सुझाव देते हैं ताकि प्रीपैकेज्ड दिवालिया प्रक्रिया को अधिक आकर्षक बनाया जा सके। उदाहरण के लिए, इस प्रक्रिया को शुरू करने की पूर्व शर्त के तहत टालमटोल वाले लेनदेन की घोषणा को छोड़ा जा सकता है।

शार्दुल अमरचंद मंगलदास ऐंड कंपनी की पार्टनर मिशा ने कहा, ‘हमें प्रीपैक के डिजाइन को सरल बनाने की जरूरत है। प्रीपैक प्रक्रिया शुरू होने के बाद मामले को एनसीएलटी की सुनवाई से स्वतंत्र होना चाहिए।’प्रीपैकेज्ड समाधान एक फास्ट ट्रैक प्रक्रिया है जो नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया शुरू होने से पहले मामले का समाधान करती है।

First Published : May 27, 2024 | 6:06 AM IST