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Indian brands: सव्यसाची से ताज तक; भारतीय ब्रांड कैसे बना रहे हैं दुनिया में पहचान?

अपनी समृद्ध विरासत, शानदार टेक्स्टाइल एवं शिल्प कौशल के बावजूद देश ने विश्व स्तर पर कुछ ही प्रख्यात ब्रांड बनाए हैं।

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वीनू संधू   
अक्षरा श्रीवास्तव   
Last Updated- December 30, 2024 | 10:08 PM IST

सदी की शुरुआत से ठीक पहले 1999 में सव्यसाची मुखर्जी नाम के एक युवा डिजाइनर ने अपना खुद का विशिष्ट लेबल पेश किया था। अपने गृहनगर कोलकाता से काम करते हुए उन्होंने भारतीय टेक्सटाइल, बुनाई और तकनीकों में बदलाव लाने पर जोर दिया। यह सब उन्होंने महज तीन कर्मचारियों की मदद के जरिये किया। बहुत जल्द ही उन्हें ‘मिलान फैशन वीक’ में शामिल होने का मौका मिला। ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय डिजाइनर बन गए।

सव्यसाची 25 साल बाद भारत के सबसे चर्चित ब्रांडों में से एक बन गया है। इस ब्रांड ने मैनहट्टन में बर्गडॉर्फ गुडमैन में अपने आभूषण प्रदर्शित किए हैं और एस्टी लॉडर, क्रिस्चन लूबितन तथा पॉटरी बार्न जैसे नामों के साथ भागीदारी की है। दुबई और न्यूयॉर्क में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। उनके डिजाइन को पसंद करने वाली हस्तियों में जेनिफर लोपेज और रिहाना भी शामिल हैं।

हालांकि, वह भारत से निकला अकेला वैश्विक ब्रांड नहीं है। भारत अपनी ‘अतिथि देवो भव:’ परंपरा के लिए जाना जाता है, जिसने दुनिया को ताज और द ओबेरॉय जैसे कुछ सबसे मजबूत होटल ब्रांड दिए हैं। भारत की वैश्विक ब्रांड गाथा अभी शुरू ही हुई है। देश को अभी भी अपना लुई वितां (एलवी), हर्मीज या शनेल में कुछ समय लगेगा।

हालांकि इस साल के शुरू में नई दिल्ली में बिजनेस स्टैंडर्ड के ‘मंथन’ समिट के उदघाटन कार्यक्रम में एक पैनल परिचर्चा के दौरान अलेक्सा डी डुक्ला इंटरनैशनल एलएलपी के संस्थापक अलेक्सिस डी डुक्ला ने कहा था, ‘अगला शनेल भारत से होगा।’ संयोगवश, चैनल का संचालन एक ब्रिटिश-भारतीय महिला लीना नायर कर रही हैं।

रीडिफ्यूजन के चेयरमैन संदीप गोयल कहते हैं, ‘2000 में हम वैश्विक मंच पर जगह पाने की आकांक्षा भी नहीं रखते थे।’ हालांकि सुधारों के कारण कई वैश्विक ब्रांड भारत में आ गए, लेकिन भारतीय ब्रांडों का विदेश जाना अभी भी संभव नहीं था। वह कहते हैं, ‘लेकिन 2000 के दशक में एयरटेल (जो कि एक सच्चा भारतीय ब्रांड था) ने अफ्रीका में अपनी बड़ी उपस्थिति दर्ज की। तब तक जी टीवी 100 से ज्यादा देशों में छा चुका था।’ विश्व स्तर पर चर्चा में रहने वाले अन्य भारतीय ब्रांडों की उनकी सूची में बजाज, मारुति, टाटा मुख्य रूप से शामिल हैं।

सार्वभौमिक पहचान

कई मायनों में मजबूत भारतीय ब्रांड भारत के भीतर ही देखते रहे हैं। यह उनके लिए काफी हद तक कारगर रहा है क्योंकि देश का घरेलू बाजार बहुत बड़ा है। हालांकि वैश्विक होने के लिए उस दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है।

ताज समूह के होटलों का परिचालन करने वाली इंडियन होटल्स कंपनी (आईएचसीएल) के एमडी एवं सीईओ पुनीत चटवाल कहते हैं, ‘यदि ब्रांड राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर सकें तो वे वैश्विक बन सकते हैं। हमारे संस्थापक जमशेदजी टाटा ने हमें ऐसे समय एक होटल दिया था जब भारतीयों को किसी होटल में घुसने की भी इजाजत नहीं थी।’ उन्होंने कहा कि ताज ने कई चीजें पहली बार संभव की हैं। जैसे, भारत का पहला इलेक्ट्रॉनिक एलिवेटर और बार का पहला लाइसेंस। यह उस विरासत को कायम रखे हुए है।

पहुंच का विस्तार

वैश्विक ब्रांड बनाना कोई आसान काम नहीं है। गोयल कहते हैं कि इसके लिए बड़े निवेश, दृढ़ता, उद्देश्य और निरंतर प्रयासों की जरूरत होती है। वह कहते हैं, ‘भारतीय कंपनियां न तो उतनी आश्वस्त रही हैं, न ही उतनी ज्यादा साहसी। जापानियों ने 1970-80 के दशक में ऐसा किया था। कोरियाई लोगों ने 1990 के दशक के अंत में ऐसा कर दिखाया। चीनियों ने 20 साल पहले यही रास्ता अपनाया। भारत को वैश्विक ब्रांड बनने में अभी 10-15 साल और लगेंगे।’

गोयल का मानना है कि फिलहाल भारत के लिए सबसे अच्छा दांव टेक ब्रांडों पर है। टीसीएस, एचसीएल, इन्फोसिस का आकार और महत्वाकांक्षा दोनों ही व्यापक हैं। उनकी पहले से ही वैश्विक उपस्थिति है। उन्हें बस अपना मार्केटिंग गेम मजबूत बनाने की जरूरत है। दुनिया के बाजार भारत ने विश्व बाजार की ओर देखना शुरू कर दिया है। अगले 25 साल बदलावकारी साबित हो सकते हैं।

First Published : December 30, 2024 | 10:08 PM IST