प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
भारत में सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा डेवलपर्स में से एक हीरो फ्यूचर एनर्जीज (एचएफई) के मुख्य कार्याधिकारी श्रीवत्सन अय्यर ने एक साक्षात्कार में सुधीर पाल सिंह को बताया कि भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी समस्या, डिस्कॉम्स का बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना था जिससे उनकी संख्या तेजी से बढ़ती गई। लेकिन अब यह सुलझ रही है। बातचीत के अंश:
फर्म ऐंड डिस्पैचेबल रिन्यूएबल एनर्जी (एफडीआरई)) टेंडरों की बढ़ती संख्या पर आप क्या कहना चाहेंगे?
नीति-निर्माताओं और उद्योग जगत के लोगों के बीच इस बात पर काफी चर्चा हुई है कि हम ग्रिड पर दबाव बढ़ने से पहले कितनी नवीकरणीय ऊर्जा जोड़ सकते हैं, क्योंकि नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन कम-ज्यादा होता है। अब यह समझ आ गया है कि एक ऐसी रणनीति होनी चाहिए जिसमें 24 घंटे बिजली आपूर्ति के लिए कई तकनीकों का मेल हो,ताकि ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चर का अधिकतम उपयोग हो सके। इससे ग्रिड पर दबाव कम होगा। नीति-निर्माताओं का दूसरा सुझाव यह है कि देश भर में कई मौजूदा सोलर प्लांट ग्रिड से जुड़े हैं। लेकिन वे इस इन्फ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल सिर्फ 8 घंटे ही करते हैं। इसलिए, इस पर चर्चा हो रही है कि मौजूदा कनेक्टिविटी का अधिकतम उपयोग कैसे किया जाए और बाकी 16 घंटों के लिए इसका इस्तेमाल कैसे शुरू किया जाए। इन सभी कारकों के संयोजन और इस तथ्य के साथ कि पिछले दस वर्षों में बैटरी की लागत लगभग 90 प्रतिशत घट गई है, अब स्टोरेज-इंटीग्रेटेड परियोजनाओं को और अधिक व्यवहारिक बनाया जा रहा है।
क्या हमारे पास मांग पूरी करने के लिए पर्याप्त उपकरण निर्माण क्षमता है?
पूरी नवीकरणीय ऊर्जा वैल्यू चेन में घरेलू उत्पादन क्षमता के मामले में भी सकारात्मक बदलाव आए हैं। अब, मॉड्यूल के लिए एडवांस लिस्ट ऑफ मॉडल्स ऐंड मैन्युफैक्चरर्स (एएलएमएम) के अलावा हमारे पास सेल के लिए भी एएलएमएम है और सरकार ने वेफर के लिए एएलएमएम लाने का प्रस्ताव दिया है। इसका मकसद ज्यादा से ज्यादा अपस्ट्रीम क्षमता का विकास करना है। जहां पीएलआई से मदद मिली है, वहीं एएलएमएम से कंपनियां उत्पादन क्षमता स्थापित करने के लिए बाध्य होंगी। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और भू-राजनीति में उतार-चढ़ाव को देखते हुए अगर हम इन क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ा पाते हैं तो भारत इस अस्थिरता के प्रभाव से उतना ही सुरक्षित रहेगा। दूसरा महत्वपूर्ण ट्रेंड यह है कि जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा अधिक विश्वसनीय होती जाएगी, वैसे-वैसे उन क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन कम करने की क्षमता भी बढ़ेगी।
तो, क्या आपकी कंपनी वेफर और पॉलिसिलिकन जैसे क्षेत्रों में उत्पादन में उतरेगी?
एक डेवलपर के लिए उपकरण निर्माण में इंटिग्रेटिंग के अपने फायदे और नुकसान हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत अब पूरी वैल्यू चेन में सोलर मॉड्यूल निर्माण क्षमता के लिए एक इकोसिस्टम विकसित कर रहा है। देश का लक्ष्य हर साल 40-50 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाना है। इसमें से लगभग 30-40 गीगावॉट सोलर ऊर्जा होगी। इसके मुकाबले, घरेलू सेल निर्माण क्षमता लगभग 15 गीगावॉट है। इसे तेजी से बढ़ाना होगा। वेफर के मामले में घरेलू क्षमता बहुत कम है। इसलिए, वैल्यू चेन में भारी वृद्धि की आवश्यकता है।
डिस्कॉम के पीपीए पर हस्ताक्षर करने में देरी की समस्या का वृद्धि की संभावनाओं पर कितना असर पड़ा?
पीपीए से संबंधित बैकलॉग को अब ठीक किया जा रहा है। चूंकि इंटीग्रेटेड टेंडर में टैरिफ कम होने लगे हैं, इसलिए मेरा मानना है कि डिस्कॉम अब कई नए टेंडर पर पीपीए साइन करने में अधिक सहज महसूस कर रही हैं।