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बल्क दवाओं का आयात बढ़ा, दाम कम होने से अप्रैल-मई में इम्पोर्ट ने पकड़ा जोर

उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि भारतीय फार्मा कंपनियां कम दाम पर एपीआई का भारी स्टॉक अपने पास जमा कर रही हैं।

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सोहिनी दास   
श्रेया नंदी   
Last Updated- June 20, 2024 | 9:54 PM IST

वित्त वर्ष 2024-25 के पहले दो महीनों के दौरान बल्क दवाओं (एपीआई या दवा में इस्तेमाल कच्चा माल ) के आयात में 13.06 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। इसकी वजह इस समय एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट (FPI) या बल्क दवाओं की कीमतें कम होना है। उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि भारतीय फार्मा कंपनियां कम दाम पर एपीआई का भारी स्टॉक अपने पास जमा कर रही हैं।

फार्मास्युटिकल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (फार्मेक्सिल) के आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल और मई 2024 के दौरान भारत ने 1.44 अरब डॉलर बल्क दवाओं का आयात किया जो अप्रैल और मई 2023 के 1.27 अरब डॉलर की तुलना में 13 प्रतिशत उछाल है। अकेले मई में ही भारत ने 8.67 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 76.343 करोड़ डॉलर की बल्क दवाओं और इंटरमीडिएट्स (तैयार कच्ची दवा) उत्पादों का आयात किया।

फार्मेक्सिल के महानिदेशक उदय भास्कर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया ‘उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का फायदा मिलने में वक्त लगता है, लेकिन यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। भारतीय कंपनियां न केवल एपीआई के लिए, बल्कि केएसएम, रसायन, सॉल्वैंट आदि के लिए भी चीन पर निर्भर हैं। इसलिए किसी न किसी चीज का आयात किया जाता है।

पिछले दो से तीन महीने में एपीआई की कीमतों में कुछ नरमी देखी गई है। मिसाल के तौर पर पैरासिटामोल एपीआई की कीमतें कुछ समय पहले के 600 रुपये प्रति किलोग्राम से घटकर 250 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई हैं।

कोविड-19 के दौरान इसकी कीमतें 900 रुपये प्रति किलोग्राम तक थीं। मेरोपेनम जैसी कुछ एंटीबायोटिक दवाओं के एपीआई के दाम भी घटकर लगभग 45,000 से 50,000 रुपये प्रति किलोग्राम रह गए हैं, जो कुछ महीने पहले 75,000 से 80,000 रुपये प्रति किलोग्राम थे।

गुजरात की एक मझौली फॉर्म्यूलेशन विनिर्माता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पीएलआई की बदौलत एपीआई के स्थानीय उत्पादन में वृद्धि के कारण चीन से कुछ एपीआई की मांग घट गई है। इससे कीमतों में गिरावट आई है।’

उन्होंने कहा हालांकि अगर अब आयात में वृद्धि हुई है, तो इसकी वजह यह हो सकती है कि स्थानीय फॉर्मूलेशन कंपनियां स्टॉक कर रहीं हैं। उद्योग के अंदरूनी सूत्र इस बात से सहमत हैं कि जब भी भारतीय स्थानीय उद्योग के उत्पादन में कुछ इजाफा होता है, तो चीन कुछ रसायनों, की स्टार्टिंग मैटीरियल (केएसएम) के दाम घटा देता है।

दरअसल भारत ने हाल में पेनिसिलिन जी और क्लैवुलैनिक एसिड के लिए केएसएम बनाना शुरू किया है। इन प्रमुख सामग्रियों का उत्पादन लगभग तीन दशक पहले बंद कर दिया गया था। इनका उपयोग एंटीबायोटिक और यौगिक दवाओं को बनाने में किया जाता है। अरबिंदो फार्मा और किनवन क्रमशः पेनिसिलिन जी केएसएम और क्लैवुलैनिक एसिड केएसएम लेकर आ रही हैं। बल्क दवाओं के लिए भारत चीन पर अत्यधिक निर्भर है।

फार्मेक्सिल के आंकड़ों के अनुसार साल 2023-24 में फार्मास्युटिकल उत्पादों (जिसमें बल्क दवाएं, फॉर्मूलेशन, सर्जिकल सामान, टीके आदि शामिल हैं) के आयात की बात करें तो चीन की हिस्सेदारी सबसे अधिक 43.45 प्रतिशत थी।

इसके विपरीत फार्मा आयात में अमेरिका की हिस्सेदारी 9.12 प्रतिशत रही। इसके बाद 5.06 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ जर्मनी का स्थान रहा। भारत ने साल 2023-24 के दौरान चीन से 3.6 अरब डॉलर के फार्मा उत्पादों का आयात किया था।

First Published : June 20, 2024 | 9:46 PM IST