भारत के व्यापार पर रूस-यूक्रेन के बीच जंग का सीधा असर मुख्य रूप से कम रेटिंग वाली छोटी इकाइयों तक सीमित है, जिसका प्रबंधन किया जा सकता है।
इंडिया रेटिंग्स के मुताबिक फार्मा और सब्सिडी से जुड़े क्षेत्रों जैसे उर्वरकों क्षेत्रों के क्रेडिट पर असर ज्यादा नजर आएगा।
युद्ध का क्रेडिट पर अप्रत्यक्ष असर देखा जाए तो रेटिंग एजेंसी ने कहा कि शीर्ष 1,400 कॉर्पोरेट इकाइयों (तेल व वित्तीय इकाइयों को छोड़कर) के कुल कर्ज पर अध्ययन से पता चलता है कि इन पर असर सीमित से लेकर मामूली रहेगा। अगर जिंसों की कीमत मौजूदा स्तर पर बनी रहती हैं, रुपये में 10 प्रतिशत गिरावट आती है और ब्याज दरों में 1 प्रतिशत बढ़ोतरी होती है तो जिंस खपत वाले क्षेत्रों के इबिटा मार्जिन पर 100 से 200 बीपी असर पड़ सकता है।
जोखिम वाले कर्ज की मात्रा युद्ध के पहले लगाए गए अनुमाान की तुलना में 1.2 लाख करोड़ रुपये ज्यादा हो सकता है, या स्थिर अवस्था में रह सकता है। रेटिंग एजेंसी अपनी इकाइयों की पोर्टफोलियो की समीक्षा कर रही है और जब उचित होगा तो वह रेटिंग कार्रवाइयों के बारे में सूचित कर देगी।
राष्ट्रमंडल स्वतंत्र राज्य वाले देशों में दवा का उल्लेखनीय निर्यात होता है और दवाओं की कीमतों के दबाव के साथ कुछ कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ सकता है।
खाद्यान्न, उर्वरकों व तेल की ज्यादा कीमतों का दबाव भारत सरकार के सब्सिडी आवंटन पर पड़ सकता है। अगर सरकार उर्वरक की कीमत बढ़ाने से बचती है तो ऐसे में उर्वरक कंपनियों के बैलेंस शीट से घाटे की भरपाई करनी होगी और इस तरह से कर्ज की गणित बिगड़ेगी। इंडिया रेटिंग्स ने कहा है कि जिंसों के दाम में बढ़ोतरी से छोटे व मझोले उद्यमों की कार्यशील पूंजी चक्र पर असर पड़ सकता है और इससे उनकी कर्ज चुकाने की क्षमता प्रभावित होगी।
