सरकार ने स्टारलिंक से पाकिस्तान और बांग्लादेश में उसके आगामी परिचालन के संदर्भ में ब्योरा मांगा है। घटनाक्रम से अवगत सूत्रों ने इसकी जानकारी दी। ईलॉन मस्क की इकाई स्पेसएक्स की सहायक कंपनी लंबे समय से भारत में उपग्रह संचार सेवाएं शुरू करने के लिए सरकार की मंजूरी का इंतजार कर रही है। हाल ही में एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में एयरटेल और रिलायंस जियो (दोनों सैटकॉम लाइसेंसधारक) ने स्टारलिंक के साथ वितरण गठजोड़ करने की घोषणा की है। इससे संकेत मिलता है कि अमेरिकी कंपनी भारत आने की तैयारी में है।
दूरसंचार विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘सुरक्षा को लेकर कुछ चिंता बनी हुई है। भारत में संचार सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी को ढेर सारी तकनीकी जटिलाओं से गुजरना पड़ता है। स्टारलिंक को पड़ोसी देशों में परिचालन की अपनी योजना को स्पष्ट करने के लिए कहा गया है।’
पिछले महीने सैटकॉम ऑपरेटर स्टारलिंक को पाकिस्तान के अंतरिक्ष नियामक से अस्थायी पंजीकरण प्राप्त हुआ है। पाकिस्तान की सरकार ने कहा है कि उसे उम्मीद है कि स्टारलिंक को पूरी मंजूरी मिल जाएगी और 2025 के अंत तक परिचालन शुरू हो जाएगा। उधर, बांग्लादेश के दूरसंचार अधिकारियों ने इस सप्ताह की शुरुआत में स्टारलिंक को परिचालन शुरू करने का लाइसेंस दिया है।
अमेरिकी कंपनी स्टारलिंक ने भारत के सर्वर में डेटा स्टोर करने और भारतीय क्षेत्र में केवल अधिकृत सेवाओं के लिए उपग्रहों का उपयोग करने का वादा किया है। उसने अभी सीमा पार प्रभाव वाली तकनीकी शर्तों जैसे कि निगरानी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के साथ डेटा बफर क्षेत्र बनाने आदि को औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है। डेटा बफर क्षेत्र में सेवाओं पर प्रतिबंध होता है और इस क्षेत्र का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है।
अधिकारियों ने कहा कि सरकार ने स्टारलिंक को ताजा संदेश में कहा है कि उसके आवेदन के मूल्यांकन में देर नहीं की जा रही है बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों के लिए नियमित जांच प्रक्रिया का हिस्सा है। इस बारे में जानकारी के लिए दूरसंचार विभाग से संपर्क किया गया मगर कोई जवाब नहीं आया।
स्टारलिंक 7,000 से अधिक लो अर्थ ऑर्बिट उपग्रहों के माध्यम से 100 से ज्यादा देशों में सैटकॉम सेवाएं मुहैया कराती हैं। इन उपग्रहों का परिचालन ईलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स करती है और स्टालिंक का स्वामित्व भी मस्क के पास ही है। भारत में उपग्रह आधारित ब्रॉडबैंड सेवाओं के लाइसेंस के लिए स्टारलिंक ने नवंबर 2022 में आवेदन किया था और अभी तक उसका आवेदन लंबित है।
दूरसंचार विभाग द्वारा एयरटेल के निवेश वाली यूटेलसैट वनवेब और रिलायंस जियो की सैटेलाइट इकाई जियो स्पेस लिमिटेड को पहले ही लाइसेंस प्रदान किया जा चुका है। पिछले महीने दूरसंचार ऑपरेटरों भारती एयरटेल और रिलायंस जियो ने स्टारलिंक के साथ अलग-अलग सौदा करने की घोषणा की थी। इसके तहत एयरटेल व जियो ग्राहकों के लिए भारत में स्टारलिंक उपकरण और सेवाओं को वितरित करने में सहूलियत होगी।
स्टारलिंक ने भारत में परिचालन के लिए तकनीकी सीमाओं का हवाला देते हुए कुछ प्रावधानों से छूट की मांग वाली जो लंबी सूची सौंपी है, उसके कारण भी आवेदन में देरी हो रही है। एमपीसीएस नियमों के अनुसार लाइसेंसधारक को भारतीय क्षेत्र में केवल अधिकृत सेवाओं के लिए उपग्रहों का उपयोग करना चाहिए, जिसमें राष्ट्रीय संप्रभुता और सुरक्षा से समझौता करने वाली गतिविधियां शामिल नहीं हैं।
भारत में सैटकॉम सेवाएं देने के लिए स्टारलिंक के आवेदन को उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा अनिवार्य स्वामित्व खुलासा मानदंडों का पालन करने में कंपनी की असमर्थता के कारण रोक दिया गया था। इसके अलावा लाइसेंसधारक को अनुरोध पर सुरक्षा एजेंसियों को कॉल डेटा रिकॉर्ड प्रदान करना होगा और सरकार के निर्देश के तहत संकट के समय सेवाएं बंद करनी होगी, ऐसे नियमों को लेकर स्टारलिंक का सरकार के साथ थोड़ा टकराव भी हुआ था।
स्टारलिंक को भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र से अंतिम मंजूरी का भी इंतजार है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण को सैटेलाइट स्पेक्ट्रम पर अपनी सिफारिशें देनी हैं।