वित्त वर्ष 2020-21 में खाद्य सब्सिडी के रूप में 4.23 लाख करोड़ रुपये के भारी-भरकम बजट आवंटन के बाद वित्त वर्ष 22 में 2.42 लाख करोड़ के अन्य आवंटन के बावजूद भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास अब भी अगले वित्त वर्ष (22) के अंत तक करीब 59,000 करोड़ रुपये का बिना भुगतान किया गया ऋण बचेगा। व्यय सचिव टीवी सोमनाथन ने यह जानकारी दी है।
इस गणित के बारे में बताते हुए सोमनाथन ने कहा कि खाद्य सब्सिडी के लिए चालू वित्त वर्ष (21) की शुरुआत तकरीबन 1.2 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान के साथ हुई है।
गरीब कल्याण पैकेज के लिए 1.33 लाख करोड़ रुपये की और आवश्यकता थी जिससे यह राशि 2.53 लाख करोड़ रुपये (1.2 लाख करोड़ रुपये + 1.33 लाख करोड़ रुपये) हो जाती है। उन्होंने कहा कि सरकार केवल 2.53 लाख करोड़ रुपये ही प्रदान कर सकती थी जिससे मौजूदा वर्ष की आवश्यकता और गरीब कल्याण पैकेज के कारण अतिरिक्त खर्च पर ध्यान दिया जाएगा।
लेकिन 4.23 लाख करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि प्रदान करते हुए केंद्र ने मूल रूप से पिछले कुछ सालों के दौरान एफसीआई को दिए गए एनएसएसएफ ऋणों के काफी हिस्से को चुकता किया है और अब एफसीआई के पास वित्त वर्ष 22 के आखिर तक एनएसएसएफ ऋण का केवल 59,000 करोड़ रुपये ही बचेगा।
एफसीआई के सूत्रों ने कहा कि वित्त वर्ष -21 के लिए आवंटित किए गए 4.23 लाख करोड़ रुपये में से करीब 2.18 लाख करोड़ रुपये एनएसएसएफ ऋण में जाएंगे। एफसीआई द्वारा यह ऋण खाद्य सब्सिडी के लिए बजटीय आवंटन में कमी को दूर करने के लिए लिया गया था, क्योंकि केंद्र ने अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रण में रखने के लिए बजट से इतर उधारी का सहारा लिया था, मुख्य रूप से राष्ट्रीय लघु बचत निधि (एनएसएसएफ) से।
एक साक्षात्कार में सोमनाथन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि अगर कोई अनुकूल अप्रत्याशित घटना (राजस्व के मोर्चे पर) होती है, तो हम इसे कुछ समय में चुकता कर देंगे। अन्यथा यह पिछले सालों से कम होकर करीब 59,000 करोड़ रुपये रह गया है। यानी यह वह चीज है कि अगर मुझे मौका मिले तो मैं इसे चुकता कर दूंगा, अन्यथा यह बना रहेगा। यह पिछले वर्षों का हैं करीब 2017-18 या 2018-19 से, जिसके लिए हम सब कुछ भुगतान कर चुके हैं। एफसीआई के शीर्ष सूत्रों ने और जानकारी देते हुए कहा कि वित्त वर्ष -21 में खाद्य सब्सिडी के लिए आवंटित 4.22 लाख करोड़ रुपये में से एफसीआई का हिस्सा लगभग 3.44 लाख करोड़ रुपये है, जबकि शेष विकेंद्रीकृत खरीद करने वाले राज्यों को भुगतान करने पर खर्च किया जाएगा।
विकेंद्रीकृत खरीद प्रक्रिया में राज्य स्वयं धान और चावल की खरीद, भंडारण और वितरण करते हैं, जबकि केंद्र केवल पूर्व निर्धारित दर पर लागत को पूरा करता है।