रीपो दर में 100 आधार अंक की कमी और बजट में आयकर सीमा में इजाफे के बाद भी आने वाली तिमाहियों में देश भर में नए किफायती मकान कम ही आने का अंदेशा है। रियल्टी उद्योग के अधिकारियों और विश्लेषकों को लग रहा है कि दर कटौती, आयकर सीमा वृद्धि और प्रधानमंत्री आवास योजना के विस्तार से भी इसे बल मिलना मुश्किल है। हालांकि 50 लाख रुपये से कम कीमत वाले मकानों की मांग बनी हुई है मगर बाजार के जानकारों का कहना है कि जमीन महंगी होने, निर्माण की लागत बढ़ने और मार्जिन में कमी आने के कारण इन परियोजनाओं को झटका लग रहा है। महिंद्रा लाइफस्पेस जैसी कुछ कंपनियां इस श्रेणी से बाहर निकल रही है और कई प्रमुख कंपनियां अपनी कुल परियोजनाओं में किफायती मकानों की हिस्सेदारी घटा रही हैं।
हीरानंदानी समूह के चेयरमैन और नैशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (नारेडको) के अध्यक्ष डॉ. निरंजन हीरानंदानी का कहना है, ‘महानगरों में किफायती आवास परियोजनाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। मांग धीरे-धीरे ठहर गई है और प्रधानमंत्री आवास योजना-ऋण सब्सिडी योजना (सीएलएसएस) आदि से मकान खरीदने वाले को फायदा मिल रहा है मगर मकान बनाने वाली कंपनियों के लिए स्थितियां लगातार प्रतिकूल बनी हुई हैं।’
हीरो रियल्टी के मुख्य कार्य अधिकारी रोहित किशोर ने कहा, ‘निर्माण की लागत बढ़ रही है, जिससे आपका पूरा खर्च बढ़ जाएगा। जमीन महंगी हो रही है, इसलिए मार्जिन कम हो रहा है।’ यह कंपनी 1 करोड़ रुपये से 3 करोड़ रुपये तक के मकान ज्यादा बनाती है। किशोर ने कहा कि कोविड महामारी के बाद उपभोक्ता भी बड़ा मकान लेना चाहते थे, जिसके लिए वे अधिक खर्च करने के लिए भी तैयार थे। इसलिए पिछले कुछ साल में महंगे और लक्जरी मकान ज्यादा आए हैं।
कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) के प्रेसिडेंट शेखर पटेल ने किफायती मकानों के लिए 45 लाख रुपये की सीमा हटाने की वकालत की। इससे बाजार का सही अंदाजा लगेगा और डेवलपर भी किफायती मकान बनाने आएंगे। पटेल अहमदाबाद की गणेश हाउसिंग कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक भी हैं। उन्होंने कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक के आवास मूल्य सूचकांक और अन्य आंकड़ों को देखें तो 2017 से 1019 के बीच जिस मकान की कीमत 45 लाख रुपये थी, आज वही बढ़कर 75 लाख रुपये का हो गया है। इसका साफ मतलब है कि लागत बढ़ चुकी है।’
मगर डेवलपर लक्जरी मकानों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं क्योंकि यूजर चार्ज अधिक होने के कारण ऊंची लागत की भरपाई हो जाती है और एबिटा स्तर पर मार्जिन भी सुधर जाता है। उद्योग के सूत्रों का कहना है कि किफायती मकानों में मार्जिन 10 से 15 फीसदी होता है मगर महंगे मकानों में 25 से 30 फीसदी एबिटा मार्जिन मिल जाता है। परियोजनाएं लटक जाएं तो किफायती मकानों पर मार्जिन और कम हो जाता है।
मुंबई की महिंद्रा लाइफस्पेस डेवलपर्स ने हाल ही में कहा कि 2028-29 तक वह किफायती मकानों के बाजार से बाहर निकल जाएगी। 2024-25 की चौथी तिमाही के नतीजे बताते समय कंपनी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी अमित कुमार सिन्हा ने कहा कि किफायती मकानों की कतार में आने की कंपनी की अभी कोई योजना नहीं है क्योंकि यह थोड़ मुश्किल बाजार है।
किफायती मकानों से शुरुआत करने वाली गुरुग्राम की सिग्नेचर ग्लोबल ने जमीन की बढ़ती कीमतें देखकर पिछले कुछ साल से मध्यम आय वर्ग के लिए 2 से 4 करोड़ रुपये के प्रीमियम मकान बनाना शुरू कर दिया। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के नतीजे घोषित करते समय कंपनी के मुख्य कार्य अधिकारी रजत कथूरिया ने कहा, ‘हम लगातार मकान देते रह सकते हैं और मध्यम आय के इस शुरुआती बाजार में पैठ बनाना चाहते हैं, जहां कोई और नहीं है। कंपनी के लिए यह बहुत फायदेमंद होगा, जो साल दर साल हमारी वृद्धि से नजर ही आ रहा है।’
किफायती मकान बनाने वाली सुरक्षा स्मार्ट सिटी के प्रवर्तक जश पंचमिया कहते हैं कि प्रधानमंत्री आवास योजना के दूसरे चरण का ऐलान कुछ महीने पहले ही किया गया है मगर इसका असर कुछ देर में दिखेगा। शेयर बाजार में सूचीबद्ध रियल एस्टेट डेटा एनालिटिक्स फर्म प्रॉपइक्विटी के मुताबिक कैलेंडर वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही के दौरान मुंबई, दिल्ली-एनसीआर और बेंगलूरु जैसे बड़े शहरों में उस तरह के किफायती मकान बिल्कुल भी नहीं थे, जैसे साल भर पहले दिखते थे। नवी मुंबई, ठाणे, हैदराबाद और कोलकाता में भी ऐसे मकान बहुत कम आ रहे हैं। कैलेंडर वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में किफायती मकानों की आवक साल भर पहले से 71.54 फीसदी घट गई।
क्रिसिल इंटेलिजेंस का अनुमान है कि शीर्ष सात शहरों में आ रहे नए मकानों में बमुश्किल 18 फीसदी किफायती मकानों की श्रेणी में होंगे। इनके उलट करीब 45 फीसदी मकान लक्जरी श्रेणी के होंगे।