सेंसेक्स और निफ्टी में सूचीबद्ध कंपनियों की पिछले वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही और 2007-08 के वार्षिक नतीजे की समीक्षा के लिए ऑडिटरों की एक टीम बनाई गई थी, जिसने अभी तक काम भी शुरू नहीं किया है।
इसके काम करने के तरीके और नियुक्ति को लेकर अभी भी दुविधा बनी हुई है। सत्यम फर्जीवाड़े के खुलासे के दो दिन बाद 9 जनवरी से निवेशकों का भरोसा कायम रखने के ख्याल से भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने इस तरह की ऑडिट समीक्षा की व्यवस्था की थी।
इस समीक्षा के तहत 50 सूचकांकों वाली निफ्टी और 30 सूचकांकों वाली बंबई स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियों के दस्तावेजों की समीक्षा की जानी थी और यह काम फरवरी 2009 तक पूरी होनी थी।
इसके दो महीने बीत जाने के बाद भी यह काम शुरू नहीं हुआ। कुछ कंपनियों में यह थोड़ा बहुत शुरू हो गया है। इसमें मुख्य दिक्कतें काम की प्रकृति को लेकर आ रही है। दिल्ली में हाल ही में कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर आयोजित एक सेमिनार में सेबी के पूर्व अध्यक्ष एम. दामोदरन ने कहा कि समीक्षा के तहत की जाने वाली ऑडिट को द्वितीय स्तर पर समझा जाए।
कुछ मामलों में समीक्षा के प्रबंधन से अनुमति लेनी होती है, जो इसकी अप्रासंगिकता साबित करता है। विप्रो लिमिटेड के सीएफओ मनीष दुगर ने कहा, ‘यह कोशिश और लागत का नकलीकरण है।’ प्रमुख चार्टर्ड अकाउंटेंट और टाटा सन्स के निदेशक अरुण गांधी ने कहा कि दुविधा को दूर करने की जरूरत है और समीक्षा की प्रकृति को परिभाषित करने की जरूरत है।
गांधी ने कहा, ‘इसमें यह दिखाना होगा कि ऑडिट कंपनी और समीक्षा के लिए नई ऑडिट कंपनी एक ही साथ हैं।’ समीक्षा करने वाले से यह उम्मीद की जाती है कि पहले ऑडिटर द्वारा की गई ऑडिट के दस्तावेजों की जांच करे। इसके तहत यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जानी चाहिए कि ऑडिट करते समय सभी बातों का ध्यान रखा गया या नहीं।
अगर इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के मानदंडों के मुताबिक भी ऑडिट की जाती है, तो भी समीक्षाकर्ता उसकी समीक्षा करेगा। ऑडिट कंपनी बीडीओ हरिभक्ति के अध्यक्ष शैलेश हरिभक्ति कहते हैं, ‘स्वतंत्र ऑडिट कराने से तंत्र और प्रक्रिया के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ेगा। अगर कुछ लोग इसे द्वितीयक समझते हैं, तो वे इस व्यवस्था को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं।’
हालांकि दामोदरन ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘यह एक अच्छा उपाय है। लेकिन इसे इस तरह से इस्तेमाल नहीं करना चाहिए कि यह उत्पादन के खिलाफ हो जाए।’ आईसीएआई द्वारा अलग से समीक्षा की अवधि तीन वर्ष निर्धारित की गई है। अभी यह सेंसेक्स और निफ्टी कंपनियों के लिए अनिवार्य है, लेकिन सेबी इसके तहत कुछ और कंपनियों को इस तरह की समीक्षा करना आवश्यक कर सकता है।
