बंबई उच्च न्यायालय ने रिलायंस कमर्शियल फाइनैंस (आरसीएफ) के बॉन्डधारकों की 8 दिसंबर को होने वाली बैठक पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। बैठक में कंपनी के समाधान योजना पर मतदान का आयोजन किया गया है। इसी साल जुलाई में समधान योजना को बैंकों द्वारा मंजूरी दी गई थी।
उच्च न्यायालय ने सभी पक्षों को 12 दिसंबर तक लिखित दलील जमा कराने के लिए कहा है। मामले की सुनवाई 16 दिसंबर को होगी। उच्च न्यायालय रिलायंस कमर्शियल फाइनैंस के लेनदारों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में कंपनी की समाधान योजना पर मतदान की अनुमति मांगी गई थी लेकिन बाजार नियामक सेबी ने एक कैविएट दायर कर दिया। इसमें बाजार नियामक ने कहा कि अक्टूबर में ऋण समाधान से संबंधित सभी मतदान में शृंखला के अनुसार 100 फीसदी मतदान की आवश्यकता होगी।
लेनदारों की याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने डिबेंचर ट्रस्टीशिप को डिबेंचरधारकों की एक बैठक आयोजित कर समाधान योजना पर मतदान करने का निर्देश दिया।
रिलायंस कमर्शियल फाइनैंस के लेनदारों ने 15 जुलाई को ऑटम इन्वेस्टमेंट ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर की समाधान योजना का चयन किया था। इसके तहत कंपनी पर बैंकों के करीब 8,200 करोड़ रुपये के बकाये के लिए 1,600 करोड़ रुपये की पेशकश की गई है। इस योजना का कार्यान्वयन गैर-आईसीए लेनदारों की मंजूरी पर निर्भर करेगा जिसमें डिबेंचरधारक भी शामिल हैं। लेकिन लेनदारों द्वारा समाधान योजना को मंजूरी दिए जाने के करीब 5 महीने बाद भी हाल तक बैठक का आयोजन नहीं किया गया था। डिबेंचरधारकों ने ऐसे नजरिये पर चिंता जताई है जिससे डिबेंचर ट्रस्ट डीड में परिभाषित उनके संविदात्मक अधिकारों को कमजोर करता है जिसके लिए मूल्य के लिहाज से 75 फीसदी बहुमत की आवश्यकता होती है। लेनदारों इस बात को लेकर भी चिंता जताई है कि समाधान प्रक्रिया में हो रही देरी से आरसीएफएल की पहले से ही कमजोर हो चुकी परिसंपत्ति गुणवत्ता और खराब होगी। कर्मचारियों द्वारा कंपनी छोड़कर जाने के बढ़ते मामलों से भी आरसीएफएल की ऋण वसूली प्रभावित हो रही है।
सूत्रों ने कहा कि किसी भी देरी से खुदरा डिबेंचरधारक प्रभावित होंगे जिन्होंने योजना के तहत पूरा भुगतान किया था। लेकिन अब यदि योजना विफल हो जाती है और कंपनी को परिसमापन में भेजा जाता है तो उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा।
