विकसित मुल्कों में मांग कम होने और मंदी की वजह से हिंदुस्तानी निर्यातकों की हालत दिनोंदिन पतली होती जा रही है। निर्यातकों को तो अब अगले वित्त वर्ष से भी उन्हें कुछ ज्यादा आशाएं नहीं हैं।
उनका दावा है कि उनके लक्षित बाजारों में मंदी की वजह से ग्राहक अपनी खरीदारी की योजनाओं को टाल रहे हैं, जिस वजह से अगले साल में भी मंदी का भूत उनका पीछा नहीं छोड़ने वाला।
उनका कहना है कि अगर हालात ऐसे ही बने रहे, तो उन्हें अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ेगी और छंटनी का भी सहारा लेना पड़ेगा।
इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल, हथकरघा और रत्न व आभूषण उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि मार्च के बाद उनके पास आधे या फिर एक भी ऑर्डर नहीं हैं। मुल्क के कुल मकर्डाइज निर्यात का 40 फीसदी हिस्सा इन्हीं उद्योगों से आता है।
उनकी मानें तो इस वित्त वर्ष के बाकी बचे दिनों में भी निर्यात की हालत कोई बहुत अच्छी नहीं रहने वाली। उनके मुताबिक इसकी वजह से निर्यात सेक्टर में विकास की रफ्तार धीमी या नकारात्मक भी हो सकती है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस (फियो) के महानिदेशक अजय सहाय का कहना है कि, ‘इस वक्त निर्यात के ऑर्डरों की तादाद औसत स्तर से 20 फीसदी तक कम है। एक ऑर्डर को पूरा करने में कम से कम तीन महीने का वक्त लगता है।
इसलिए इस वित्त वर्ष में तो निर्यात में इजाफे की रफ्तार धीमी ही रहेगी। मार्च के बाद तो यह रफ्तार और भी कम हो सकती है।’
नवबंर के लिए जो आंकड़े आए हैं, उनके मुताबिक लगातार दूसरे महीने में भी निर्यात गिरा है। वजह है, सितंबर के बाद अमेरिका और यूरोप में मांग का कम होना। एक बात तो साफ हो चुकी है कि इस वित्त वर्ष में भारत 200 अरब डॉलर के अपने निर्यात लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगा।
उम्मीद यह है कि इस वित्त वर्ष में निर्यात हद से हद 175 अरब डॉलर के बिंदु को छू सकता है, जबकि मार्च 2008 में निर्यात 162 अरब डॉलर के स्तर पर था।
इंजीनियरिंग वस्तुओं से जुड़े निर्यातकों का कहना है कि मार्च 2009 के बाद तो पिछले साल के मुकाबले उनके पास ऑर्डरों की तादाद आधी रह गई है।
इस मंदी से निपटने के लिए इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन कॉउंसिल ने एक टास्क फोर्स की स्थापना की है। इसके मुखिया राकेश शाह का कहना है कि, ‘असल चुनौती तो इतने कम ठेके के साथ उत्पादन के स्तर को बरकरार रखना है। इसके लिए उत्पादन में कटौती और अस्थायी कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ सकती है।’
कृषि मशीनरी बनानी वाली खुद शाह की कोलकाता स्थित फर्म, द निफा ग्रुप, के पास मार्च के बाद पिछले साल के मुकाबले आधे ठेके रह गए हैं।
अहम बात यह है कि हिंदुस्तान के कुल मकर्डाइज निर्यात का 22 फीसदी हिस्सा इंजीनियरिंग वस्तुओं का ही होता है। यह निर्यात में तेज विकास के लिए अहम सेक्टरों में से एक है। जाहिर सी बात है कि इंजीनियरिंग वस्तुओं के सेगमेंट में सबसे बुरा प्रदर्शन ऑटो निर्यात का रहा है।
संख्या के हिसाब से मुल्क की नंबर एक कार निर्यातक कंपनी हुंदई मोटर इंडिया लिमिटेड(एचएमआईएल)ने पास अगले तीन महीनों के लिए 24 हजार कारों के ऑर्डर हैं। पिछले साल उसके पास इससे दोगुनी तादाद के ऑर्डर थे। कंपनी के मुताबिक मार्च 2009 के बाद हालात और भी खराब हो सकते हैं।
कंपनी के प्रबंध निदेशक और सीईओ एच. एस. ल्हीम का कहना है, ‘मुझे तो असल चिंता इस बात की है कि अगले साल के लिए हमारे पास काफी तादाद में ऑर्डर हैं। चूंकि मुल्क से निर्यात होने वाली कुल कारों में से 90 फीसदी कारों को हम बनाते हैं, इसलिए हमें सरकार से मदद चाहिए।’
मारुति सुजुकी को भी अपनी नई-नवेली कार ए-स्टार के लिए उम्मीद से कम निर्यात ऑर्डर मिले हैं। वहीं टीवीएस ने निर्यात के लिए लक्षित दर को आधा करके 10 फीसदी कर दिया है।
दूसरी तरफ, मार्च के बाद ठेकों के मामले में टैक्सटाइल उद्योग की भी हालत इंजीनियरिंग सेक्टर जैसी ही पतली नजर आ रही है।
भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (सीटी)के महासचिव डी. के. नायर का कहना है कि, ‘हम तो अब तक बर्बाद हो चुके होते, अगर चीनी कपड़ा निर्यातक हमसे बड़ी मुसीबत में नहीं फंसे होते।
लेकिन अब भी ज्यादातर कपड़ा निर्यातकों को मार्च के बाद के लिए ऑर्डरों का इंतजार है। इस वित्त वर्ष में तो हमारे मुताबिक हिंदुस्तानी कपड़ा निर्यात में कम से कम पांच फीसदी की गिरावट तो आएगी ही आएगी। सबसे बुरी गत तो धागा और परिधान सेक्टर पर पड़ेगा।’
हिंदुस्तानी निर्यात में 10 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले रत्न और आभूषण उद्योग की भी हालत खस्ता है। यहां भी ऑडरों में कमी आई है।
जेम्स ऐंड ज्यूलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन कॉउंसिल के अध्यक्ष वसंत मेहता का कहना है कि, ‘बड़े रिटेलरों की तरफ से कोई बड़े ऑर्डर नहीं आ रहे हैं। हमारे पास अक्सर तिमाही जरूरतों के हिसाब से ऑर्डर आते हैं। अब उन्हें इसे कम करके आधा कर दिया है। क्रिसमस के खत्म होने के बाद उम्मीद है कि अब विदेशों से मांग में तेजी आएगी।
मुश्किलें हैं आगे
विकसित मुल्कों में मांग कम होने से गिरेगी नौकरियों पर भी गाज
इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल, हथकरघा और रत्न व आभूषण की बुरी है हालत
निर्यातकों के पास भारी टोटा है सौदों का अगले वित्त वर्ष में और बुरी होगी गत