अंबुजा सीमेंट्स और एसीसी के अधिग्रहण के साथ अदाणी समूह इन दोनों कंपनियों के जरिये अपनी क्षमता बढ़ाकर मौजूदा 7 करोड़ टन से बढ़ाकर 10 करोड़ टन सालाना करने पर ध्यान दे रहा है। इसके साथ ही अदाणी समूह उद्योग दिग्गज अल्ट्राटेक को मात देने में सक्षम हो सकता है।
विश्लेषकों ने सोमवार को कहा कि अंबुजा और एसीसी अपनी स्वयं की नकदी और ताजा ऋण के साथ नई क्षमताओं में निवेश करेगी। बैंकों का कहना है कि नए मालिकों के साथ, दोनों कंपनियों की विस्तार योजनाएं क्षमता बढ़ाकर सालाना 14 करोड़ टन करने के लक्ष्य के साथ तेजी गति से आगे बढ़ाई जाएंगी।
बैंकरों और विश्लेषकों का कहना है कि अदाणी समूह के शुरुआती कार्यों में से एक है अंबुजा और एसीसी को एक इकाई में विलय करना, जिससे कि दोनों के बीच आपसी तालमेल का लाभ उठाया जा सके। अंबुजा और एसीसी की मौजूदा योजनाओं के अनुसार, संयुक्त क्षमता बढ़ाकर अगले साल तक 7.3 करोड़ टन सालाना की जाएगी, जो बाजार क्षमता का 12 प्रतिशत है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषकों का कहना है कि विभिन्न लागत कटौती प्रयासों (विलय के बाद आपसी तालमेल संबंधित लाभ समेत) से अदाणी की सीमेंट क्षमता 10 करोड़ टन सालाना पर पहुंच सकती है।
सौदे के अनुसार, अदाणी को अंबुजा को 385 रुपये प्रति शेयर और एसीसी के लिए 2,300 रुपये (जो मौजूदा बाजार भाव के मुकाबले 8-9 प्रतिशत ज्यादा है) के हिसाब से होल्सिम को शुरू में 6.5 अरब डॉलर का भुगतान करना होगा।
अंबुजा सीमेंट्स का शेयर 2.6 प्रतिशत चढ़कर 368 रुपये, जबकि एसीसी का शेयर 3.84 प्रतिशत की बढ़त के साथ 2,195 रुपये पर बंद हुआ।
पूंजीगत लाभ कर नहीं: होल्सिम
स्विटजरलैंड की सीमेंट दिग्गज होल्सिम द्वारा अपना भारतीय व्यवसाय अदाणी परिवार को बेचने के लिए हुए समझौते से भारत में पूंजीगत लाभ कर लागू नहीं होगा। यह जानकारी होल्सिम के मुख्य कार्याधिकारी जैन जेनिश्च ने सोमवार को विश्लेषकों के साथ बातचीत में दी। मॉरिशस स्थित होल्डरिंड इन्वेस्टमेंट्स ने अदाणी समूह के स्वामित्व वाली ऑफशोर इकाई को अपनी 63 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची है। इसके बदले होल्डरिंड पर डच इकाई का स्वामित्व है। जेनिश्च ने कहा, ‘हमारे विश्लेषण से यह निष्कर्ष सामने आया है कि इस सौदे से कोई पूंजीगत लाभ कर या अन्य कर जुड़ा हुआ नहीं है।’
कर विश्लेषकों का कहना है कि भारतीय कंपनी में होल्सिम की हिस्सेदारी 1 अप्रैल 2017 से पहले मौजूद थी, इसलिए द्विपक्षीय संबंधित समझौते से अप्रैल-पूर्व 2017 की शेयरधारिता और निवेश को कर छूट के दायरे में रखा गया है। भारत-मॉरिशस समझौता 1990 के दशक के शुरू में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए किया गया था और तब विदेशी विनिमय भंडार काफी कम था। उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी कर रियायत के लिए कर आकलनकर्ता के पक्ष में निर्णय सुनाया था।