भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने माना है कि 6 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम बैंड के निचले सिरे को वाईफाई जैसे बिना लाइसेंस वाले उपयोग के लिए आवंटित किया जा सकता है, जबकि ऊपरी सिरा दूरसंचार कंपनियों के उपयोग के लिए लाइसेंस युक्त है। नियामक ने आज 6 गीगाहर्ट्ज बैंड के संबंध में श्वेत पत्र जारी किया।
इसमें कहा गया है कि यह वैश्विक स्वरूप के अनुरूप होगा और भारत में अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बिना लाइसेंस के उपयोग के लिए समर्पित स्पेक्ट्रम काफी कम है।
स्पेक्ट्रम का 6 गीगाहर्ट्ज बैंड अप्रयुक्त स्पेक्ट्रम के सबसे बड़े ब्लॉक का प्रतिनिधित्व करता है और 5जी कनेक्टिविटी तथा वाईफाई विस्तार के लिए इसकी महत्वपूर्ण क्षमता की वजह से क्रमश: दूरसंचार कंपनियों और तकनीकी कंपनियों द्वारा इसके लिए खींचतान की जा रही है। यह 5.925 गीगाहर्ट्ज से लेकर 7.125 गीगाहर्ट्ज तक फैली आवृत्तियों की विशिष्ट श्रृंखला है, जो मध्य-बैंड आवृत्ति रेंज होती है।
श्वेत पत्र में भारत में 6 गीगाहर्ट्ज बैंड के स्पेक्ट्रम प्रबंधन पर चर्चा की गई है और बताया गया है कि भारत में उपलब्ध बिना लाइसेंस वाले स्पेक्ट्रम का कुल दायरा मात्र 689 मेगाहर्ट्ज है, जो अमेरिका और ब्रिटेन में उपलब्ध 15,403 मेगाहर्ट्ज से काफी कम है। यह संख्या चीन के समान है, जिसकी दूरसंचार जरूरतें समान हैं।
इसमें कहा गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पूरे 6 गीगाहर्ट्ज बैंड को बिना लाइसेंस के उपयोग के लिए उपलब्ध कराए जाने की खबर ने ब्राजील और सऊदी अरब जैसे कई देशों में यह प्रवृत्ति पैदा कर दी है।
दूसरी ओर चीन 5जी के लिए 6 गीगाहर्ट्ज बैंड में पूरे 1,200 मेगाहर्ट्ज का उपयोग करेगा, जबकि यूरोप ने बैंड को विभाजित कर दिया है, ऊपरी हिस्से को 5जी के लिए माना जाता है और नया 500 मेगाहर्ट्ज हिस्सा वाई-फाई के लिए उपलब्ध रहता है।
रिपोर्ट में जीएसएमए के हवाले से यह जानकारी दी गई है, मोबाइल ऑपरेटरों का वैश्विक संगठन है। अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के कुछ हिस्से भी समान दृष्टिकोण अपना रहे हैं।
डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन के महानिदेशक टीआर दुआ ने कहा कि 23वें विश्व रेडियो संचार सम्मेलन 2023 की चर्चा और निर्णय यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होंगे कि दूरसंचार क्षेत्र में नवाचार और विकास का समर्थन करने के लिए इस बैंड का प्रभावी ढंग से उपयोग कैसे किया जाए।
तेज हो रही लड़ाई
भारत में सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई), जिसके सदस्यों में रिलायंस जियो, भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया भी शामिल है, ने तर्क दिया है कि भारत में मोबाइल संचार के लिए कम से कम 1,200 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम आवंटित करने की आवश्यकता है। फिलहाल भारत में मिड-बैंड में केवल 720 मेगाहर्ट्ज उपलब्ध है।