पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को फूलों की महक भाने लगी है। नकदी फसल के रूप में वे इन दिनों फूलों की खेती को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। साथ ही आने वाले दिनों में वे सब्जी की खेती के विस्तार की योजना बना रहे हैं।
भारतीय किसान संगठन की तरफ से इलाहाबाद में आयोजित होने वाले चिंतन शिविर में इन योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की रणनीति तैयार की जाएगी। शिविर का आयोजन 16,17,18 जनवरी को किया जाएगा जिसमें उत्तर प्रदेश के सैकड़ों किसानों के साथ कई अन्य प्रदेश के किसान नेता भी भाग लेंगे।
गाजियाबाद जिले के भोजपुर ब्लाक में तो इन दिनों फूलों की खुशबू लगातार बढ़ती जा रही है। महज 7-8 साल पहले ही इस इलाके में फूलों की खेती शुरू हुई है। तब 30-40 हेक्टेयर जमीन पर इसकी खेती होती थी।
इन फूलों से होने वाली तात्कालिक आय ने यहां के किसानों को इस कदर प्रभावित किया कि इस ब्लॉक में 300-350 हेक्टेयर जमीन पर फूलों की खेती होने लगी।मुख्य रूप से यहां गुलाब के फूल की खेती की जाती है।
किसान कहते हैं, ‘फूलों को लेकर वे सुबह 10 बजे तक आसपास की मंडियों में जाते हैं और दो घंटे में उनका काम खत्म हो जाता है। और भुगतान भी हाथ के हाथ हो जाता है।’ इस ब्लॉक के किसानों की आमदनी को देखकर हापुड़ व सिंभावली ब्लॉक में भी फूलों की खेती का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।
गाजियाबाद जिले के किसान नेता राजबीर सिंह कहते हैं, ‘1968 में उन्होंने एक अन्य किसान को 700 रुपये प्रति बीघा की दर से तीन बीघे जमीन खेती के लिए दी।
उसने गेंदे के फूलों की खेती की और उसे तीन महीने में 6,000 रुपये का कारोबार किया।’ वे कहते हैं कि उन्हें तभी लग गया था कि फूलों की खेती में अच्छी कमायी है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान फूलों के साथ सब्जी व जैविक खेती को भी फायदे का सौदा मान रहे हैं। किसानों के मुताबिक शहर से 10-15 किलोमीटर की दूरी तक के गांवों में धान, गेहूं की खेती काफी सीमित होती जा रही है।
सब्जी की बिक्री से अधिक आमदनी होने के कारण इन गांवों में अब सिर्फ सब्जियों की खेती की जा रही है। इन्हें देखकर शहर से दूर गांव के किसान भी सब्जी की खेती की योजना बना रहे हैं। उनका रुझान गैर-मौसमी सब्जियों की ओर भी है।
जैविक खेती के बारे में किसानों का मानना है कि इस माध्यम से उन्हें दोहरा लाभ है। एक तो जैविक तरीके से उगायी गयी फसलों की अधिक कीमत मिलती है और दूसरा उनके खेत की मिट्टी की उर्वरता भी बरकरार रहती है।
सिंह कहते हैं, ‘चिंतन शिविर में आगामी छह महीनों के लिए किसानों की कार्ययोजना तैयार की जाती है। और इस बार परंपरागत खेती को त्याग कर सिर्फ नकदी फसल उगाने की रणनीति बनायी जाएगी।’
उन्होंने यह भी बताया कि अब धान की खेती भी किसानों को आकर्षित करने लगी है क्योंक यह 120 दिनों में मंडी में पहुंच जाती है और भुगतान में भी खास विलंब नहीं होता है।